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जीरो बजट में शुरू करें गार्डनिंग, अपनाएं यह बेहतरीन तरीके।

गार्डनिंग करना एक शौक होता है और इसे सिर्फ शौकीन लोग ही करते हैं। भले ही उनके घर में जगह कम हो या ज्यादा, किसी न किसी तरह से घर में बगीचे के लिए जगह बना ही लेते है। उदाहरण के लिए – कुछ लोग छत पर गार्डनिंग शुरू कर देते हैं, कुछ लोग अपनी बालकनी में गार्डनिंग शुरू कर देते हैं, कुछ लोग हैंगिंग गार्डनिंग करते हैं और कुछ लोग अपने पसंदीदा पौधों को गमलों में लगाकर घर में रखते हैं। लेकिन ज्यादातर यह देखने को मिलता है कि अगर आप नए पौधों को लगाते हैं तो आपके काफी ज्यादा पैसे खर्च हो जाते हैं। जिस कारण से लोग ज्यादातर थोड़ी दूरी पर ही पौधे लगाना पसंद करते हैं। शायद आपके साथ भी ऐसा होता हो। अगर आप कम बजट में ही अपनी सुन्दर बगिया लगाना चाहते हैं तो आपको परेशान होने की जरुरत नहीं है, क्योंकि आज आप कुछ ऐसे तरीकों के बारे में जानने वाले हैं, जिनका उपयोग करके आप जीरो बजट में ही गार्डनिंग शुरू कर सकते हैं।

बिना पैसों के बगीचे को सुन्दर कैसे बनायें।

हर कोई चाहता है कि उनका बगीचा हरा-भरा और खूबसूरत दिखे और हरा-भरा बगीचा मन को भी भाता है, लेकिन इसके लिए आपको बाजार से महंगे कंटेनर या प्लांटर लाने की जरुरत नहीं है। इसके लिए आप घर की पुरानी चीजों जैसे प्लास्टिक की बोतल, जूतों व टायर आदि को ही बतौर कंटेनर इस्तेमाल कर सकते हैं। इन चीजों को और खूबसूरत बनाने के लिए आप स्प्रे पेंटिंग कर सकते हैं और कई प्रकार के अलग – अलग तरीके के डिजाइन आदि बना सकते हैं ताकि आपका बगीचा पैसों के बिना भी खूबसूरत नजर आये।

मुफ्त में कैसे मिलेंगे पौधे 

जब आप बगीचा लगवाते हैं तो आपको गमलों के साथ – साथ पौधों की भी जरुरत पड़ती है और मार्केट में एक सामान्य-सा पौधा 80 – 100 रुपये से कम में नहीं मिलता। ऐसे में अगर आप सात – आठ पौधे लगवाते हैं तो आपको अच्छे खासे पैसे खर्च करने पड़ जाते हैं। लेकिन वास्तव में आपको ऐसा करने की जरुरत नहीं है। अगर आप चाहें तो आपको मुफ्त में ही पौधे मिल जायेंगे। अगर आपके गार्डन एरिया में पहले से ही पौधे हैं तो ऐसे में आप उसे दो – तीन पौधे आसानी से बना सकते हैं। इसके लिए आपको पौधे को गमले से सावधानी पूर्वक निकलना होगा। अब आप खुर्ची की मदद से प्लांट को 2 – 3 हिस्सों में काट लें। हालाँकि, ध्यान रखें कि आप उसकी जड़ों को डिस्टर्ब न करें। इस तरह आप एक पौधे से दो – तीन पौधे तैयार कर सकते हैं। अब इन्हे अलग – अलग गमलों में मिटटी और कम्पोस्ट के मिश्रण में लगाएं।

पौधे की कटिंग कैसे करें।

मुफ्त में प्लांट्स तैयार करने का एक आसान तरीका यह भी है कि आप प्लांट से कटिंग तैयार करें और फिर उसे एक गमले में लगाएं। पौधों की कटिंग करना काफी आसान है। इसके लिए आप पहले पौधे का एक स्टेम कटर की मदद से काट लें। इस बात का ध्यान रखें कि आप कटिंग में मौजूद पत्तियों को हाथों से खींचकर ना तोड़ें, बल्कि कटर की मदद से ही काटें ताकि उसके साइड् में जो नई पत्तियां आएं, उन्हें नुकसान ना पहुँचे। अब आप कटिंग के एक सिरे पर रूट्स हार्मोन पाउडर को लगाकर उसे एक नए गमले में लगाएं। बस एक से डेढ़ महीने में आपका पौधा बढ़ना शुरू हो जायेगा।

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अपने घर के पौधों को कीटों से बचाने के लिए अपनायें, ये कारगर टिप्स।

आजकल लोगों को होम गार्डनिंग काफी पसंद आ रही है, कम स्पेस में ही कई तरह की सब्जियाँ, फल और फूल को आप अपने घर में ऊगा सकते हैं, जिसे किचेन गार्डन भी कहते हैं। सीधी बात कही जाये तो किचेन गार्डनिंग से आप स्वास्थ्य भी रहेंगे और पैसों की भी बचत होगी। मतलब घर में उगाई गयी सब्जियों को घर के किचेन में ही इस्तेमाल कर लीजिये।
लेकिन कभी – कभी आपके गार्डन एरिया में कुछ ऐसे मेहमान आ जाते हैं, जो आपको बिल्कुल भी पसंद नहीं होते हैं, क्योंकि यह आपके पुरे पौधों को खराब कर देते हैं। अगर आप समय रहते इनका इलाज नहीं करेंगे तो यह आपके पूरे बगीचे को बर्बाद कर देंगे। आप कुछ नेचुरल चीजों की मदद से ही इन कीटों से छुटकारा पा सकते हैं। तो चलिए जानते हैं इनके बारे में।

मित्र कीटों से करें दोस्ती

जहाँ कुछ कीट आपके पौधों को नुकसान पहुँचाते हैं, वहीँ ऐसे कई कीट भी होते हैं, जो इन नुकसान पहुँचाने वाले कीटों को खा जाते हैं और आपके पौधों का ख्याल रखने में मदद करते हैं। आप कोशिश करें कि आप अपने गार्डन एरिया की व्यवस्था कुछ इस तरह करें, जिसकी मदद से मित्र कीट आपके गार्डन एरिया में आएं और आपके पौधों को स्वस्थ रखने में मदद करेंगे। एफिड, रेड माइट और कैटरपिलर आपके पौधों को नुकसान पहुँचाते हैं और इनसे बचाव के लिए आप लेडीबग बीटल व ड्रैगन फ्लाई को अपने गार्डन में आकर्षित करें। आमतौर पर, पौधे पर किसी तरह के केमिकल का छिड़काव करने से यह लेडीबग बीटल व ड्रैगन फ्लाई नहीं आते हैं और आपके पौधों को भी नुकसान पहुँचता है।

पौधों को सही तरह से पानी दें

अगर आप अपने पौधों में पानी देने का तरीका बदलते हैं तो आप आपने पौधों को कई प्रकार के कीटों से बचा सकते हैं। इसके लिए, आप अपने पौधे पर हाँथ फिरायें और नीचे से पानी का स्प्रे करें। ऐसा करने से ही अधिकांश कीट आपके पौधे से हट जायेंगे। इसके आलावा टूथब्रश और हेयरब्रश की मदद से भी आप अपने पौधों को कीट मुक्त रख सकते हैं।

कबूतर और गिलहरी से पायें छुटकारा

अगर आप किचेन गार्डनिंग करते हैं तो कबूतर और गिलहरी की समस्या होना आम बात है। इनसे छुटकारा पाना काफी मुश्किल होता है, हालाँकि आप नेचुरल तरीके को अपनाकर इससे भी निजात पा सकते हैं। अगर आप कबूतरों को गार्डन एरिया से दूर रखने के लिए आप झांड़ू की कुछ सीख लेकर उसे गमले के किनारे रोप दें। इसके आलावा, आप अपने किचन गार्डन को गिलहरी से बचाने के लिए गौमूत्र का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए आप 10 – 20 ml  गौमूत्र को एक लीटर पानी में डालकर मिक्स करें और उसे एक स्प्रे बोतल में भर दें। आप इस पानी से पौधे को अच्छी तरह स्प्रे करें। ऐसा करने से गिलहरी आपके पौधों के पास नहीं आएगी। हालाँकि इस बात का ध्यान रखें कि अगर गौमूत्र अधिक हो जाता है तो इससे पौधों के पत्ते जलने की संभावना रहती है।

नीम के पानी का प्रयोग

यह भी एक नेचुरल तरीका है अपने पौधों को कीटों से बचाने का। बस आपको इतना करना है कि आप रात में कुछ नीम की पत्तियाँ भिगों दें और अगली सुबह, आप उस पानी का छिड़काव अपने पौधों पर करें।

हींग का भी करें इस्तेमाल

हींग की महक कीटों को पौधों से दूर रखती है। इसका इस्तेमाल करना बेहद ही आसान है। बस आपको इतना करना है कि आप एक चुटकी हींग को एक गिलास पानी में डालें और उसे तीन – चार घंटो के लिए ऐसे ही रख दें। अब आप इस पानी को कपडे की मदद से छान लें और इसे भी एक स्प्रे बोतल में डालकर पौधों पर इसका छिड़काव करें।  

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गूलर के पेड़ के बारे में सम्पूर्ण सटीक जानकरी।

 गूलर के पेड़ के विविध नाम : 

उदुम्बर, उडुम्बर, कालस्कन्ध, जन्तुफल, पवित्रक, पाणिमुख, पुष्पशून्य, पुष्पहीना, ब्र्हावृक्ष, यज्ञसार, यज्ञफल, सदाफल, सौम्य, हेमदुग्धक, हेमदुग्ध, क्षीरवृक्ष।  

गूलर के पेड़ का सामान्य परिचय :
गूलर एक सर्वसुलभ वृक्ष है, जो कहीं भी देख जा सकता है।सामान्य जनता इसे बहुत ही साधारण और अनुपयोगी समझती है लेकिन सच्चाई तो यह है कि -यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण और उपयोगी वृक्ष है। 

गूलर के पेड़ के स्वरूप :
यह भारी भरकम होता है।  गूलर में झरबेरी के बराबर फल लगते हैं जो क्रमश : बढ़ते हुये नीबू के बराबर तक हो जाते हैं। ये फल कच्ची अवस्था में हरे और पकने पर लाल हो जाते हैं।  पके फल -मीठे, पौष्टिक,ठण्डे और पाचक होते हैं लेकिन यहाँ पर सावधानी रखने की बात यह है कि -प्रायः छोटे -छोटे उड़ने वाले पतंगा (भुनगे )-गूलर के फलों में छेद करके अन्दर तक घुस जाते हैं और उसका रस चूसा करते हैं।  अतः गूलर खाने वाले को यह सावधानी बरतनी पड़ती है कि वे छेददार फल न ले।  कोई भी फल कहने के पहिले उसे तोड़कर भीतर भली -भाँति देख लें कि कहीं उसके अन्दर कोई पतंगा तो नहीं बैठा है।  यदि पतंगा बैठा हुआ है तो उसे निकलकर फेंक दें और तब ही उस फल को खायें।  कच्चे गूलर में पतिंगे नहीं होते हैं।  बहुत से लोग कच्चे गूलर की पकौड़ी बनवाकर बड़े चाव से कहते हैं। 
गूलर के पेड़ के गुण- धर्म :

इसकी लकड़ी जल में सड़ती नहीं है, अतः कुँआ बावने वाले लोग ईंटों की दीवार खड़ी करने के पूर्व आधार रूप में नींव के स्थान पर गूलर की लकड़ी का एक गोल पहिया जैसा बिठा देते हैं -उसी के ऊपर ईंटें जमाकर गोलाकार दीवार खड़ी की जाती है।  इस प्रकार नींव में गूलर की वह लकड़ी बहुत -बहुत लम्बे समय तक पानी में पड़ी रहने पर भी सड़ती नहीं है। 

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5 Famous Fruits plants that can be Grown in Pots, in West Bengal

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कनेर के पौधे की संम्पूर्ण जानकारी।

कनेर के पौधे के विविध नाम : 

करवीर, अशवरोधक, कुन्द, गौरीपुष्प, दिव्यपुष्प, प्रतिहास, प्रचण्ड शतप्रास शतकुम्भ, शतकुन्द, स्थलकुमुद।  

कनेर के पौधे का सामान्य परिचय :

कनेर का पौधा अत्यन्त उपयोगी होता है।  इसके द्वारा अनेक प्रकार के पयोगों को सम्पन्न किया जाता है।  

कनेर के पौधे का स्वरूप : 

कनेर (सफेद कनेर ) का पौधा 5 फुट से लेकर 10 फुट तक ऊँचा होता है।  इसके पत्ते -हरे रंग के, लम्बे और चिकने होते हैं।  इसके फूल सफेद रंग के होते हैं।  

कनेर के पौधे के प्रकार : 

कनेर अनेक प्रकार का होता है जैसे – सफेद कनेर (शवेत कनेर), लाल कनेर, गुलाबी कनेर, पीला कनेर, काला कनेर आदि।  लेकिन सबसे ज्यादा सफेद कनेर ही देखने को मिलता है, अन्य प्रकार के कनेर आसानी से देखने को नहीं मिलते हैं।  इसलिये आम बोल -चाल की भाषा में सफेद कनेर को ही कनेर कहकर पुकारा जाता है।  कहने का मतलब यह है कि – अगर कहीं पर ‘कनेर’ शब्द का उल्लेख हो तो उसे ‘सफेद कनेर’ ही समझना चाहिये।  

कनेर के पौधे के गुण -धर्म : 

इसका स्वाद कड़वा और विषैला होता है।  इसका गुण -धर्म -गर्म और खुश्क होता है।  

गणेश गई को प्रसन्न करने के लिये – ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री गणेश जी को लाल कनेर के फूल अत्यन्त प्रिय हैं।  लाल कनेर को – रक्त कनेर, गणेश पर वह आदि नामों से भी पुकारते हैं। लाल कनेर का फूल न मिलने पर गुलाबी कनेर का प्रयोग करना चाहिये – इससे भी वही लाभ प्राप्त होता है।  

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कनेर के पौधे का औषधीय प्रयोग : 

कनेर का अनेक रोगों के उपचार में प्रयोग किया जाता है जैसे – प्रमेह, कुष्ट रोग, फोड़ा, रक्त -विकार, बवासीर आदि।  कनेर – घरों और बगीचों में सजावट के लिये लगाया जाता है।

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Top 10 reasons why you must gift plants to your loved ones – Gifting Plants To Your Loved One

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जानिए, कैसे किसी सामान्य पौधे को बोन्साई पौधे में परिवर्तित करते हैं।

बोन्साई ट्री बनाने के लिए सही पौधे का चयन करना

Bonsai plant for pot

अपने क्षेत्र की जलवायु के अनुकूल पौधे का चयन करें।

आप सभी बोन्साई पेड़ों को एक जैसा बिल्कुल नहीं पाएंगे। हर प्रजाति के पौधों को बोन्साई नहीं बनाया जा सकता। बारामासी और यहाँ तक की उष्ण कटिबंधीय पौधों को बोन्साई पेड़ों में बनाया जा सकता है। किसी भी पौधे की प्रजाति का चयन करते समय यह जानना महत्वपूर्ण है कि वह पौधा उस स्थान की जलवायु के अनुकूल है। उदाहरण के लिए, कुछ पेंड ठंड के मौसम में मर जाते हैं क्योंकि वे पौधे अपने तापमान को बाहरी तापमान से नीचे नहीं गिरा पाते। जिस कारण से वे सूख जाते हैं। बोन्साई वृक्ष शुरू करने से पहले, सुनिश्चित करें कि आपके द्वारा चुनी गयी प्रजाति आपके क्षेत्र में रह सकती है। अगर आपको इस बारे में जानकारी नहीं है तो आप अपने स्थानीय उद्यान आपूर्ति स्टोर के कर्मचारी आपकी सहायता कर सकेंगे। 

  • बोन्साई पेंड की शुरुआत जुनिपर किस्म के पौधे पर करना अनुकूल रहता है। ये सदाबहार कठोर होते हैं। जुनिपर के पौधे पूरे उत्तरी गोलार्ध और दक्षिणी गोलार्ध के अधिक समशीतोष्ण क्षेत्रों में भी जीवित रहते हैं। इसके अलावा, जुनिपर के पेड़ों को उठाना आसान होता है। उनकी कटाई – छंटाई भी आसान होती है। ये पौधे अपनी पत्तियाँ कभी नहीं खोते क्योंकि ये सदाबहार होते हैं और धीमी गति से बढ़ते हैं।

इनडोर या आउटडोर तय करना जरुरी। 

इनडोर और आउटडोर बोन्साई पेड़ों की जरूरतें काफी भिन्न हो सकती हैं। आमतौर पर, इनडोर वातावरण शुष्क होते हैं और बाहरी वातावरण की तुलना में कम रोशनी भी प्राप्त करते हैं। इसीलिए आपको कम रोशनी और नमी की आवश्यकता वाले पेंड चुनने चाहिए। 
नीचे बोन्साई पेंड की कुछ आम किस्मों को सूचीबद्ध किया गया है, जिन्हे इंडोर या बाहरी वातावरण के लिए उपयुक्त माना गया है। 

  • इनडोर : फाइकस, हवाइयन अम्ब्रेला, सेरिसा, गार्डेनिया, कामेलिया और किंग्सविले बॉक्सवुड। 
  • आउटडोर: जुनिपर, सरू, देवदार, मेपल, सन्टी, बीच, जिन्कगो, लर्च, एल्म।

नोट : समशीतोष्ण प्रजातियों को शीतकालीन निष्क्रियता की आवश्यकता होती है या पेड़ अंततः मर जाएगा। इन्हें लंबे समय तक घर के अंदर नहीं उगाया जा सकता है।

अपने बोन्साई वृक्ष का आकार चुनना

बोन्साई के पेड़ों का आकार कई प्रकार का होता है। पूर्ण विकसित पेंड 6 इंच से लेकर 3 फीट तक लम्बे हो सकते हैं। यदि आप अपने बोन्साई पेंड को एक अंकुर या दूसरे पेंड से काटकर उगाना चाह रहे हैं तो ये और भी छोटे से शुरू कर सकते हैं। बड़े पौधों को अधिक पानी, मिटटी और धूप की आवश्यकता होती है।

अपने बोन्साई पेंड के आकार का निर्णय लेते समय बस कुछ बातों का ध्यान देना चाहिए :

  • आप जिस कंटेनर का उपयोग कर रहे हैं उसका आकार
  • आपके घर या ऑफिस में जो जगह उपलब्ध है
  • आपके घर या कार्यालय में सूर्य के प्रकाश की उपलब्धता
  • आप अपने पेड़ की कितनी देखभाल कर पाएंगे (बड़े पेड़ों को छँटाई में अधिक समय लगता है)

एक बार जब आपने तय कर लिया कि आप किस प्रकार का और किस आकार का बोनसाई चाहते हैं, तो आप नर्सरी या बोन्साई की दुकान पर जा सकते हैं और उस पौधे का चयन कर सकते हैं जो आपका बोन्साई वृक्ष बनेगा। एक पौधा चुनते समय यह सुनिश्चित कर लें कि पौधे की पत्तियाँ हरी हो हालांकि पतझड़ के मौसम में अलग -अलग रंग के पत्ते हो सकते हैं। अंत में जब एक स्वास्थ्य और सुन्दर पौधे का चयन हो जाये तो कल्पना करें की यह पौधा काटने के बाद कैसा दिखेगा। एक बोन्साई पेंड को उगाने का मजा उसे धीरे – धीरे काटने और उसे आकार देने में आता है। इस काम में आपको सालों भी लग सकते हैं। एक ऐसे पेंड का चयन करें जिसका आकार आपके मन के अनुकूल हो। 

  • ध्यान दें कि यदि आप अपने बोन्साई पेंड को बीज से उगाना चाहते हैं, तो आपको अपने पेंड की बहुत अधिक देखभाल करनी होगी। हालाँकि, एक बोन्साई पेंड को एक बीज से एक पूर्ण पेंड में विकसित होने में लगभग 5 साल तक का समय लग सकता है। यदि आप अपने पेंड को तुरंत काटने और आकार देने में रूचि रखते हैं तो आपके लिए एक बड़ा पौधा खरीदना बेहतर होगा।
  • आपके पास एक और विकल्प है कि आप अपने बोन्साई पेंड को काटकर उगाएं। किसी पौधे को बोन्साई में बदलने का यह उत्तम तरीका है।

सही गमले का चयन करें।

बोन्साई के पेड़ों की विशेषता यह है कि उन्हें ऐसे गमले में लगाया जाये जिसमें उनके विकास की गति धीमी हो सके। बोन्साई के पेड़ों को ऐसे गमलों में उगाना चाहिए जिनका गोलार्ध बड़ा हो और गहराई कम हो। गमले का आकार आपके पौधे के आकार पर निर्भर करेगा। यह सुनिश्चित कर लें कि उस पौधे की जड़ें उस गमले में सुरक्षित पूरी तरह मिटटी से ढक जाये। जब आप अपने पेड़ों को पानी देते हैं तो उनकी जड़ें मिटटी से पानी को अवशोषित करती हैं। गमले में मिटटी इतनी मात्रा में तो होनी चाहिए की वह पौधे के लिए नमी बरकरार रख सके। जड़ को सड़ने से रोकने के लिए आप गमले की तली में छोटे – छोटे छेद कर सकते हैं। जो पानी का संतुलन बनाये रखेंगे।

  • आपका गमला इतना बड़ा होना चाहिए की आपके पेंड को सहारा दे सके। अत्यधिक बड़े बर्तन आपके पेंड को स्वयं बौना बना देते हैं। जो एक पौधे को विचित्र या बेमेल रूप दे सकते हैं। 
  • कुछ लोग अपने बोन्साई पेंड को सादे, व्यावहारिक कंटेनरों में उगाना पसंद करते हैं, फिर जब वे बड़े हो जाते हैं तो उन्हें सुन्दर कंटेनरों में स्थानांतरित कर देते हैं। यह एक बहुत ही उपयोगी प्रक्रिया है। यदि बोन्साई पेंड की आपकी प्रजाति नाजुक है तो इसे आप तब तक किसी दूसरे गमले में स्थानांतरित नहीं कर सकते जबतक कि आपका पेंड स्वास्थ्य, सुन्दर और मजबूत न हो जाये।

गमले में बोन्साई पेंड तैयार करना।

How to prepare bonsai live plant

पौधा तैयार करें

यदि आपने जल्दी ही आपके नजदीकी नर्सरी से या ऑनलाइन नर्सरी से बोन्साई का पेंड खरीदा है और वह किसी ऐसे प्लास्टिक कंटेनर में आया है जो आपको शायद पसंद नहीं है या फिर आप उसे किसी दूसरे सुन्दर गमले में करना चाहते हैं। या फिर आप अपना खुद का बोन्साई पेंड ऊगा रहे हैं और अंत में इसे सही गमले में रखना चाहते हैं, तो आपको इसे ट्रांसप्लांट करने से पहले तैयार करना होगा। सबसे पहले यह सुनिश्चित करें की आपका पेंड आपकी इच्छानुसार कटा है या नहीं। जब आप अपने पौधे को किसी पॉट में लगा देते हैं तो उसके बाद आप अपने पेंड को मजबूत तार के माध्यम से उसकी शाखाओं को बांध कर या मोड़ कर मनचाहे आकार में ढाल सकते हैं।

  • जान लें कि मौसमी जीवन चक्र वाले पेंड ( उदहारण के लिए कई पर्णपाती पेंड ) वसंत ऋतु में सबसे अच्छे तरीके से प्रत्यारोपित किए जाते हैं। वसंत ऋतू में कई पौधे बढ़ते तापमान के कारण वृद्धि की स्थिति में प्रवेश कर जाते हैं। लेकिन जब इनकी शाखाओं और जड़ों की छंटाई की जाती है तो इनकी वृद्धि संतुलन में आ जाती है।
  • जब आप पुनः रिपोटिंग करने की सोंच रहें हो तो पौधे में पानी डालने की मात्रा को कम कर दे। गीली मिटटी के मुकाबले सूखी मिटटी में काम करना आसान होता है। 

पौधे को निकालें और जड़ों को साफ करें।

सबसे पहले आपको सावधानी पूर्वक गमले से पौधे को निकालना है ध्यान रहे जड़ें टूटनी नहीं चाहिए खासकर मुख्य जड़। आप पोटिंग टूल का उपयोग करके पौधे को आसानी से गमले से बहुत आसानी से बाहर निकल आएगा। पौधे को बोन्साई पॉट में डालने से पहले उसकी अधिकांश जड़ों को काट दें। जड़ों को स्पष्ट रूप से देखने के लिए, उन पर चिपकी गंदगी को साफ करना आवश्यक है। पौधे की जड़ों को साफ करने के लिए रुट रेक, चॉपस्टिक, चिमटी और इसी तरह के उपकरणों का उपयोग कर सकते हैं।

जड़ों को पूरी तरह से साफ नहीं करना है – बस इतना साफ करें कि आप देख सकें कि आप उन्हें काटते समय क्या कर रहे हैं।

जड़ों को सही प्रकार से छाँटे :- अगर आपने अपने बोन्साई के पेड़ों की जड़ों को नियंत्रित नहीं किया तो आपको कुछ ही समय बाद उनको किसी दूसरे बड़े गमले में स्थानांतरित करना पड़ सकता है। अपने बोन्साई के पेंड की जड़ों को नियंत्रित करने के लिए उन्हें काट लें। जो पतली जड़ें मिटटी की सतह पर अपना जाल बना कर मिटटी में अपनी जकड़ बनाती हैं उन्हें छोड़कर, किसी भी बड़ी, मोटी  जड़ को और ऊपर की ओर जानें वाली जड़ों को काट लें। जड़ें पानी को अपनी युक्तियों से अवशोषित करती हैं,  इसीलिए एक छोटे कंटेनर में, कई पतली जड़ वाली किस्में आमतौर पर एक बड़े, गहरे गमले में अच्छे से ग्रोथ करता है।

गमले को तैयार करें :- पौधे को गमले में रखने से पहले, देख लें की उसकी तली साफ है या नहीं और गमले में मिटटी पौधे की ऊँचाई के हिसाब से होनी चाहिए। खाली गमले की तली में कंकड़ीली मिटटी की एक पतली परत बिछा दें। ऐसी मिटटी या माध्यम का उपयोग करें जिसमें पानी का बहाव अच्छा हो, बगीचे की मिटटी पानी को अधिक समय तक रोकती है जोकि जड़ों को सड़ा सकता है। गमले के ऊपरी भाग में 1 – 2 इंच की खाली जगह रखनी चाहिए। जिससे पौधे की जड़ों को ढका जा सके।

  • यदि आपका पेड़ आपके नए बर्तन में सीधा नहीं रह रहा है, तो बर्तन के नीचे से जल निकासी छेद के माध्यम से बर्तन के नीचे से एक भारी गेज तार चलाएं। पौधे को जगह पर रखने के लिए जड़ प्रणाली के चारों ओर तार बांधें।
  • आप मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए बर्तन के जल निकासी छेद पर जाल स्क्रीन स्थापित करना चाह सकते हैं, जो तब होता है जब पानी जल निकासी छेद के माध्यम से मिट्टी को बर्तन से बाहर निकालता है।

अपने बोन्साई पौधे की देखभाल करें

आपका नया पेंड अभी तक एक बहुत दर्दनाक प्रक्रिया से गुजरा है। अपने पेंड को दोबारा लगाने के बाद 2 – 3 सप्ताह के लिए इसे छायादार जगह पर ही रखें। पौधे को पानी दें लेकिन उर्वरक का उपयोग न करें, जब तक कि जड़ें खुद को स्थापित न कर लें। पुनः पोटिंग के बाद आप अपने पेंड को घर में रहने के अनुकूल बनायें और समय के साथ बढ़ने दें।

जब आपका बोन्साई पेंड स्थापित हो जाये तो आप उसके गमले में अन्य छोटे – छोटे पौधे लगा सकते हैं। यदि उन पौधों को सुव्यवस्थित ढंग से लगाया जाये तो उनको एक झाँकी के रूप में तैयार किया जा सकता है। उन पौधों का चयन करें जो आपके बोन्साई पौधे के समान क्षेत्र के मूल निवासी हो। ताकि एक पानी और हल्का आहार गमले में सभी पौधों को समान रूप से अच्छी तरह से सहारा दे सके।

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जानिये बरगद के बारे में सटीक और संपूर्ण जानकारी।

बरगद के विविध नाम :

वट, बड़, बर, अवरोही, जटिल, जटी,ध्रुव, नन्दी, बहुपाद, भण्डीर, भृंगी, मण्डली, यक्षतरु, विटपी, वृक्षानाथ, स्कन्ध रूह, स्कन्धज, क्षीरी।  

बरगद के सामान्य परिचय :

इस पूरे विश्व में बरगत का वृक्ष -सबसे अधिक समय तक जीवित रहने वाला (दीर्घतम आयु वाला , अत्यन्त विशालकाय और घनी छाया वाला होता है।  यघपि यह भी पीपल – पाकर वर्ग का वृक्ष है, तथापि उनसे यह कई बातों में भिन्न भी है।  

बरगद के उत्तपत्ति एवं प्राप्ति -स्थान : 

बरगद का वृक्ष पूरे देश में पाया जाता है। खाली जमीनों, नदियों के किनारों, खण्डहरों आदि में यह अपने – आप ही उग आता है लेकिन अनेक लोग इसका पौधा लाकर लागते भी हैं।  यह बिना किसी पोषण के स्वयं ही विशालकाय हो जाने में समर्थ होता है।  बरगत के संदर्भ में एक विशेष बात यह भी है कि – जब यह वृक्ष बड़ा होता है तो इसकी बड़ी -बड़ी टहनियाँ धरती की ओर झुकने लगती हैं और जटाओं जैसा रूप धारण कर लेती हैं।  फिर धीरे -धीरे काफी समय में वे जटायें धरती के निकट आ जाती हैं तो वह जटायें भी एक नए पेड़ के रूप में विकसित होने लगती हैं।  कहने का मतलब यह है कि वह जटाये ऊपर से तो पेड़ की टहनियों से जुड़ी हुई हैं और नीचे धरती पर से एक नये पेड़ के रूप में विकसित हो रही हैं। इस प्रकार से अनेक जटाये- अनेक पेड़ो के रु[रूप में विकसित होती हैं लेकिन वह सभी पेड़ पर ऊपर से आपस में जुड़ी हुई रहती हैं यह सब जटाये आपस में जुड़ती रहती हैं इसलिये इस वृक्ष का तना बहुत अधिक मोटा हो जाता है।  फिर धीरे -धीरे इन अलग -अलग जटाओं में से भी नई -नई जटायें निकलने लगती हैं और वह सब भी पेड़ों के रूप में विकसित होने लगती हैं।  इस प्रकार से यह पेड़ बहुत लम्बें समय तक बढ़ता रहता है – इस प्रकार से निरन्तर लम्बे समय तक लगातार बढ़ते रहने (वृध्दि करते रहने के कारण ही इसका नाम – ‘ब्द’ या ‘बढ़’ हो गया है।  

बरगद के स्वरूप :

बरगद का वृक्ष धीरे -धीरे वृध्दि करते हुये अत्यन्त विशाल हो जाता है।  यह चारो ओर वृध्दि करता है।  इसकी सबसे बड़ी पहचान यही है कि इस वृक्ष में से धीरे -धीरे जटायें निकलना प्रारम्भ हो जाती हैं जो कि नीचे (धरती की ओर )बढ़ती हैं  और फिर धरती तक पहुँचकर नये वृक्ष के रूप में विकसित होने लग जाती हैं।  इसके पत्ते – मध्यम आकार के कुछ अण्डाकार होकर गोलाई लिये हुये और गहरे हरे रंग के होते हैं।  

बरगद के गुण -धर्म : 

बरगद का पत्ता तोड़ने पर उस स्थान से थोड़ा -सा दूध जैसा निकलता हुआ दिखाई देगा – यह दूध अत्यन्त पौष्टिक होता है।  इसका सेवन करने से शरीर में बहुत अधिक शक्ति आती है। ‘बरगद’ का वृक्ष – हिन्दू -संस्कृति में अत्यन्त पवित्र एवं पूज्य माना जाता है।  सुहागिनी स्त्रियाँ ‘वट -सावित्री’ का पूजन करती हैं, उसके अन्तर्गत ‘बरगद’ के पेड़ की ही पूजा की जाती है।  ऐसी मान्यता है कि -प्राचीनकाल में ‘सावित्री’ ने अपने पति ‘सत्यवान’ के प्राणों की ‘यमराज’ से रक्षा की थी तो उस समय वह बरगद के पेड़ के नीचे ही बैठी हुई थी, अतः उसी सन्दर्भ में ही ‘वट -सावित्री का व्रत किया जाता है।
ऐसी भी मान्यता है कि -महाप्रलय के पश्चात जब समस्त पृथ्वी जलमग्न हो जाती है तो -भगवान कृष्ण (विष्णु )बाल – रूप में बरगद वृक्ष के पत्ते पर अकेले ही लेते हुये, क्षीर सागर की तलहटी में अपना अँगूठा चूसते रहते हैं।  भगवान श्रीकृष्ण के शयन की बाल – सुलभ छवि का वर्णन एक श्लोक में निम्नलिखित प्रकार से मिलता है
करारविन्देन पदारविन्द, मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम।  
वटस्य पत्रस्य पुटे शयनं, बालमुकुन्दं मनसास्मरामि।।
वास्तव में, इस प्रतीक का अर्थ यह है कि- बरगद के वृक्ष का नाश नहीं होता है।  कहने का मतलब यह है कि- बरगद का वृक्ष इस धरती पर से पूर्ण रूप से कभी  भी समाप्त नहीं हो सकता है और यह सदैव  कही -न -कही अवश्य ही प्राप्त होता रहेगा।  इस धरती पर कुछ ऐसे भी ‘वट- वृक्ष’ हैं, जो अनादि काल से (बहुत लम्बे समय से )पृथ्वी पर उपस्थित मने जाते हैं।  कहने का मतलब यह है कि यह वृक्ष इतने पुराने समय से उपस्थित हैं कि इनके विषय में यह ज्ञात नहीं है कि यह कब उगे थे।  इस प्रकार के बरगत के पेड़ों को होइ – ‘कल्पवृक्ष’ या ‘ अक्षयवट’ कहते हैं। ‘कल्पवृक्ष’ शब्द के दो अर्थ होते हैं – 1. ऐसा वृक्ष जो कि कई कल्पों (समय मापने की सबसे बड़ी ईकाई )से जीवित है, 2 ऐसा वृक्ष जिसके नीचे खड़े होकर कोई भी कल्पना की जाये और वह पूरी हो जाये।  इस प्रकार के वृक्षों के सन्दर्भ में दोनों ही अर्थ सही सिद्ध होते हैं।  वास्तव में, ऐसी मान्यता है कि इन वृक्षों के नीचे खड़े होकर उसे प्रणाम किया जाये और कोई भी शुभ इच्छा मन में लाई जाये तो वह अवश्य ही पूरी हो जाती है।  ‘अक्षयवट’ का अर्थ होता है – जिसका कभी भी क्षय (नाश )न हो पाये।  इस प्रकार के वृक्षों के सन्दर्भ में यह अर्थ भी बिल्कुल सही सिद्ध होता है।  
प्रयाग (इलाहाबाद )और उज्जैन में ऐसे अनेक बरगत के पेड़ हैं जिन्हें ‘कल्पवृक्ष’ या ‘अक्षयवट’ कहा जा सकता है।  

बरगद केऔषधीय प्रयोग :
दन्त -रोगों के उपचार के लिये -वट की जटा (हरी ताजी )लाकर, उसको दातुन की भाँति प्रयोग करें।  प्रतिदिन ऐसा करते रहने से समस्त दन्त -रोग मिट जायेंगे।  
मुख -रोगों के उपचार के लिये -रविपुष्य के दिन बरगत की जटा (बरोह )ले आयें।  उसे सुखाकर कूट लें और कपड़छन करके रख लें।  यह चूर्ण दाँतों पर भली -भाँति मलने से अनेक प्रकार के मुख -रोग दूर हो जाते हैं।  
जटा -जुट बनाने के लिये -त्यागी, सन्यासी, साधु लोग सन्यास धारण करते समय अपने केशों (सिर के बालों)को बढ़ाने लगते हैं और फिर उनकी जटा -जुट बनाते हैं।  इसके केशों में बरगद से निकलने वाला दूध लगाया जाता है क्योंकि इससे केश स्थिर बने रहते हैं और उनमे कोई विकार नहीं पनप पाता है। 

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बड़े – बड़े पोधों का गमला बदलने का सही तरीका – बड़े पौधे को गमले से सुरक्षित कैसे निकालें

 कभी -कभी हमें किसी बड़े पोधेय को गमले से निकल कर जमीन में लगाना होता है या उसका गमला बदलना पड़ता है।  लेकिन यह काम इतना आसान नहीं  होता क्युकि गलती होने पर पौधा मर भी सकता है. तो इस वीडियो में हम जानेंगे की बड़े पौधे को गमले से सुरक्षित कैसे निकालें

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नीम की संपूर्ण सटीक जानकारी।

नीम के विविध नाम : 

निम्ब, निम्बन, अरिष्ट,कीटक, पारिभद्रक, पीतसार, मालक, रविप्रिय, राजभद्रक, शीर्षपर्णी, सर्वतोभद्र, सुभद्र।  

नीम के सामान्य परिचय : 

नीम -इस धरती का सबसे अधिक उपयोगी, लाभदायक और महत्वपूर्ण वृक्ष है।  मानव -शरीर में होने वाले प्रत्येक रोग का उपचार नीम के द्वारा किया जा सकता है।  नीम की इतनी उपयोगिता के कारण ही तो किसी कवि ने लिखा है कि- 

सुना है अपने गाँव में, रहा न अब वो नीम।  

जिसके आगे मन्द थे, सरे वैध -हकीम।।

कहने का तात्पर्य यह है कि -इस पूरी धरती पर खिन भी नीम से अधिक श्रेष्ठ वनस्पति कोई नहीं है। 

नीम के उत्पत्ति एवं प्राप्ति -स्थान : 

यह प्रायः पुरे भारत देश में पाया जाता है।  इसकी उपयोगिता के कारण इसको -बड़े -बड़े घरों (कोठियों ), उद्यानों, मन्दिरों, सड़कों के किनारों आदि पर लगाया जाता है।  

नीम के स्वरूप : 

इसके पेड़ लगभग 8 फुट से लेकर 15-20 फुट की ऊँचाई तक जाते हैं।  इसके पत्ते नुकीले और छोटे होते हैं।  बसन्त में (मार्च के महीने के आस -पास )इस पर नई पत्तियाँ आती हैं जो कि प्रारम्भ में हल्के लाल रंग की होती हैं लेकिन धीरे -धीरे उनका रंग हरा हो जाता है।  फिर इस पर सफेद -पीले रंग के बहुत छोटे -छोटे फूल आते हैं और इन फूलों से ही फलों का निर्माण होता है जिन्हें ‘निबौरी’ खा जाता है।  यह निबौरी प्रारम्भ में हरे रंग की होती हैं और फिर वर्षा प्रारम्भ होने पर धीरे -धीरे पककर पिले रंग की हो जाती हैं।

 गुण -धर्म : 

नीम -शीतल, अत्यन्त पवित्र, विषनाशक, कृमिनाशक और सभी प्रकार के रोगों को दूर करने वाला होता।  यह वायुमण्डल को शुद्ध करता है। यों तो नीम की पत्तियाँ और निबौरी -कड़वी होती हैं लेकिन फिर भी यह अत्यन्त उपयोगी होती हैं।  मानव -शरीर में होने वाले प्रायः सभी रोगों का उपचार नीम से हो सकता है।  नीम का प्रयोग करने से -नेत्र रोग, दाँतों के रोग, रक्त -विकार, कृमि -रोग,कोढ़, विविध प्रकार के विष ,बुखार, प्रमेह, गुप्त -रोग आदि रोग स्थायी रूप से समाप्त हो जाते हैं।  

इसलिये प्रत्येक मनुष्य को इसके अधिक से अधिक पेड़ लगाने का प्रयास करना चाहिये क्योंकि इसके द्वारा मानव -जाति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।  

प्रकार : 

यों तो ‘नीम’ केवल एक ही प्रकार का होता।  लेकिन कहीं -कहीं पर एक अन्य प्रकार के नीम -‘मीठे नीम‘ -का उल्लेख भी मिलता है लेकिन यह ‘मीठा नीम’ उतना उपयोगी नहीं होता है और इसका प्रयोग केवल कुछ विशेष प्रकार के भोजन बनाने में ही किया जाता है।  अतः जँहा पर ‘नीम’ शब्द का प्रयोग किया गया हो तो उसका तात्पर्य ‘ कड़वे नीम’ से ही समझना चाहिये।

बिच्छू का विष उतारने के लिये -जबकि किसी व्यक्ति को बिच्छू ने काट लिया हो और विष नहीं उतर पा रहा हो तो कोई अन्य व्यक्ति नीम की 10 -12 पत्तियाँ अपने मुख में डालकर चबाये और फिर अपने मुख से पीड़ित व्यक्ति (जिसे बिच्छू ने कटा हो ) के कण में फूँक मार दे तो बिच्छू का विष उतर जाता है 

प्रत्येक प्रकार का विष दूर करने के लिये -जबकि कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार के विष से पीड़ित हुआ हो और उसका उपचार भी कराया जा रहा हो लेकिन उसको कोई लाभ नहीं हो रहा हो तो ऐसी दशा में यह प्रयोग करें –नीम की ढेर सारी पत्तियाँ लाकर बिछा दें और उसके ऊपर पीड़ित व्यक्ति को लिटा दें।  लिटाने से पहले व्यक्ति के सरे वस्र उतार देने चाहिये, केवल गुप्तांगों को ही ढका रहने देना चाहिये।  फिर उस व्यक्ति के ऊपर भी नीम की पत्तियाँ बिछा दें, केवल साँस लेने के लिये नाक -मुख को खुला हुआ छोड़ दें।  इस प्रकार से पीड़ित व्यक्ति को आवश्यकतानुसार समय तक लिटाये रखने से विष का प्रभाव कम हो जाता है।  लेकिन यदि इस प्रयोग से पहले ही पीड़ित व्यक्ति के आन्तरिक अंग पूरी तरह से क्षत -विक्षत हो चुके हों तो इस प्रयोग से कोई लाभ नहीं होगा।

नीम का औषधीय प्रयोग :

 पायोरिया, दाँतों में कीड़ा लगना  -पीड़ित व्यक्ति को प्रतिदिन सुबह -शाम नीम की दातुन करनी चाहिये।  

पेट में कीड़े होना, पुरानी कब्ज -रोगी को प्रतिदिन नीम की 10 -12 ताजी पत्तियाँ चबानी चाहिये।  यह प्रयोग लम्बे समय तक करना चाहिये, इससे उक्त समस्यायें पूर्ण रूप से समाप्त हो जाती हैं।  कुछ वैद्यों का कथन है कि -नीम की निबौलियों को पीसकर रोगी व्यक्ति की नाभि के निचे लेप करें।  यह प्रयोग कई दिनों तक करने से भी पेट के कीड़े मर जाते हैं।

चर्म -रोग, कोढ़ -शरीर में किसी भी प्रकार का चर्म -रोग हो और भले ही वह कितना ही पुराना हो -रोगी व्यक्ति को पतिदिन नीम की 15 -20 ताजी पत्तियाँ चबा -चबाकर खानी चाहिये।  इसके अतिरिक्त, नीम के पेड़ की पत्तियाँ आवश्यकतानुसार मात्रा में ले आयें और उनको पानी में डालकर उबाल लें फिर पानी को आग से उतारकर ठण्डा होने दें और तब इस पानी से अपने रोगग्रस्त अंग को धोयें।  इस प्रक्रिया से चर्म -रोग धीरे -धीरे दूर होने लगते हैं।  लेकिन ध्यान रखने की बात यह है कि -रोग जितना पुराना होगा, यह प्रयोग उतने ही अधिक समय तक करना होगा।  रोगी को मीठा  एवं नमक का प्रयोग कम क्र देना चाहिये।

उपंदश -जबकि किसी पुरुष या महिला के गुप्तांगों के आस -पास के क्षेत्र में फुन्सियाँ, दाने, घाव आदि हो जायें तो पीड़ित व्यक्ति को प्रतिदिन नीम की 15 -20 ताजी पत्तियाँ चबानी चाहिये और उपरोक्त बताई गई विधि से नीम की पत्तियों का पानी तैयार करके उससे अपने गुप्तांगों को धोना चाहिये।  यह प्रयोग कई दिनों तक करना चाहिये।  लेकिन ध्यान रखने की बात यह है कि -यह प्रयोग सूजाक रोग में नहीं करना चाहिये।  उपंदश रोग में -गुप्तांग के ऊपर फुन्सी -घाव होते हैं, जबकि, सूजाक रोग में  गुप्तांगों के अन्दर घाव आदि होते हैं दोनों में यह प्रमुख अन्तर होता है।  

साँप का विष दूर करने के लिये -जबकि किसी व्यक्ति को साँप ने काटा हो तो तुरन्त ही काटे गये पर किसी तेज धार वाले अस्त्र (जैसे -ब्लेड, चाकू आदि )से जोड़ के चिन्ह के रूप में (+)निशान लगाकर विषैला खून बहा दें।  इसके साथ ही, उस काटे गये स्थान के ऊपर और नीचे -रस्सी आदि से खूब कड़ा बाँध दें ताकि वह विषैला रक्त ह्रदय तक न पहुँचने पाये।  फिर पीड़ित व्यक्ति को नीम की ताजी पत्तियाँ चबाने के लिये दें।  जब तक शरीर में विष रहेगा -वह पत्तियाँ कड़वी लगने लगेंगी।  अतः जब तक पत्तियाँ मीठी लगती रहें, उस व्यक्ति को खिलाते रहें।  जब तक पत्तियाँ कड़वी लगने लगें तो विष का प्रभाव समाप्त समझें।