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जानिए कि घर की छत पर सब्जी कैसे उगा सकते हैं, क्या है इसका सही और सरल तरीका ?

 

जी हां । घर की छत पर बड़े-बड़े गमलों में सब्जियां और फल भी उगाए जा सकते हैं ।

इसके लिए आप खेत की अच्छी मिट्टी में एक चौथाई भाग बालू और आधा भाग कम्पोस्ट खाद या वर्मीपोस्ट मिला कर गमलों में भर दें ।

आप गमलों में टमाटर , लौकी , तोरई , शिमला मिर्च , हरी मिर्च , फूलगोभी , पत्तागोभी , सेम , पालक , मेंथी , मूली , खीरा , बैंगन, ककड़ी , गाजर , मूली , करैला आदि सभी उगा सकते हैं ।

नींबू , चीकू , आम्रपाली आम , चीकू , स्ट्राबेरी , अमरूद , अनार आदि भी घर में ही गमलों में बड़ी आसानी से उगाए जा सकते हैं।

मौसम के अनुसार बीज बोकर या बाजार से उनकी पौध लाकर अपने गमले में लगा दें । समय समय पर पानी डालते रहें , गमलों में उगे खरपतवारों को उखाड़ कर गुड़ाई करते रहें । बेल वाली सब्जियों जैसे खीरा , ककड़ी , लौकी , तोरई आदि के लिए बांस का एक मचान अवश्य बना दें । लौकी और तोरई में लोहे के यंत्र से गुड़ाई न करें अन्यथा फल कड़वे हो सकते हैं ।

एक बार आप घर की छत पर यह प्रयोग करके देखेंगे तो अपने अनुभव से सीखते जाएंगे और आपको बहुत आनन्द आएगा ।

 

गमलों में न केवल देसी सब्जियां उगाई जा सकती हैं, बल्कि थोड़ी सी मेहनत से विदेशी सब्जियों का भी आनंद ले सकती हैं..आजकल का मौसम सर्दियों में उगाई जाने वाली सब्जियों के लिए सबसे बेहतर है। वैसे तो अक्टूबर के पहले ही सब्जियों की बुवाई हो जानी चाहिए, लेकिन बारिश कम होने के कारण आप इन दिनों भी अपनी गृहवाटिका को सब्जियों के हिसाब से तैयार कर सकते हैं।पौध तैयार करनापौध तैयार करने के लिए कोकोपीट सबसे उपयुक्त माध्यम है। कोकोपीट को करीब 12 घंटे के लिए पानी में भिगो दें। इसके बाद कोकोपीट को मि˜ी के थालीनुमा बर्तन में करीब दो इंच की मोटाई में भर दें। इस पर लाइन से बीज बो दें। फिर इसे थोड़ा सा कोकोपीट डालकर बीजों को ढक दें। करीब चार दिन से लेकर एक हफ्ते के अंदर बीजों का अंकुरण हो जाएगा। ये अंकुरित पौधे 15 से लेकर 21 दिन के अंदर गमलों में लगाने लायक हो जाएंगे। एक बात का ध्यान रखें कि बीज हमेशा किसी अच्छी कंपनी के ही खरीदें।
गमलों को तैयार करना सब्जियों को गमलों में लगाने से पहले जरूरी है कि मि˜ी को इसके लिए तैयार कर लें। इसके लिए गोबर की खाद, मि˜ी व कोकोपीट बराबर मात्रा में मिला लें। इसमें प्रति गमले के हिसाब से 100 ग्राम हड्डी का चूरा, 50 ग्राम नीम की खली, चार-पांच ग्राम म्यूरेटा पोटाश और थोड़ा सा सल्फर मिला लें। सारी सामग्री को अच्छी तरह मिला लें। इस मिश्रण को गमले में भरने के बाद यह चेक कर लें कि गमले में नीचे से पानी निकलने की जगह बनी हुई है अर्थात गमले में पानी नहीं भरा रहना चाहिए। पौधों को गमलों में लगाने के बाद पानी जरूर देना चाहिए। दोबारा पानी तभी डालें जब पहले वाला पानी सूख जाए।देसी सब्जियांगोभी, बंदगोभी, विभिन्न प्रकार की हरी मिर्च, बैंगन, मूली, हरी मटर, टमाटर, पालक, बींस, सेम, सोयामेथी, धनियाविदेशी सब्जियांब्रोकोली, ब्रूसल स्प्राउट, चेरी टमाटर, रेड कैबेज, जुकीनी, लाल-हरी-पीली शिमला मिर्च, लाल मूली, लेट्यूस, ह‌र्ब्स जैसे बेसिल, थाइम्स, पार्सले, डिल आदि, चाइनीज कैबेजपौधों को पोषणपौधों को लगाने के करीब पन्द्रह दिन बाद 20-20-20 एनपीके का मिश्रण गमलों में डालें। बीस से पच्चीस ग्राम मिश्रण 15 लीटर पानी में मिलाकर प्रति सप्ताह डालें। इसे करीब सवा महीने तक डाल सकती हैं। सवा महीने बाद 13-0-45 एनपीके का मिश्रण उपरोक्त प्रकार से ही पानी में मिलाकर हर सप्ताह प्रयोग करें। अगर पौधों में कीड़े लग रहे हैं तो समय-समय पर दवा का उपयोग करें।

आप क्या उगाना चाहते हैं, इस बारे में तय करें: आप किन सब्जियों को सेवन करना पसंद करते है? सोचिए आप इन गर्मियों में कौन सी सब्जियाँ खाना पसंद करेंगे, और उसके मुताबिक अपनी शाक वाटिका में वह सब उगाने की योजना बनाएँ। वैसे तो ज़्यादातर सब्जियाँ अलग-अलग मौसम में अच्छी तरह से उग जाती हैं परन्तु कुछ भी उगानी से पहले यह जानना कि आपके क्षेत्र में सबसे बेहतरीन क्या उगता है, एक उच्च विचार होगा।[१]
ऐसी सब्जियों को चुनें जिन्हें अलग-अलग समय पर काटा जा सके। ऐसा करने से सभी सब्जियाँ एक समय पर मिलने के बदले वह आपको पूरी गर्मियों के दौरान मिलती रहेगी।

कुछ पौधे कुछ क्षेत्रों में ठीक से नहीं उग पाते हैं। पता करें कि जो सब्जियाँ आप उगाना चाहते हैं, कहीं उन्हें उगाने के लिए शुरुआत में ठंडे मौसम की ज़रूरत तो नहीं हैं, या तापमान के बढ़ने पर वह मुरझा या मर तो नहीं जाएंगे। यदि आप ऐसे क्षेत्र में रहते हैं जहाँ गर्मी कम पड़ती है, या बरसात ज़्यादा नहीं होती हैं, तो आपको सब्जियाँ उगाने के बारे में चुनिंदा रहना पड़ेगा।

आपको अपने क्षेत्र और जलवायु के अनुसार सब्जियों का चुनाव करना चाहिए ताकि आपकी सफलता की सम्भावना और भी प्रबल हो जाये। जैसे :-

पालक, बींस, पुदीना, धनिया, करी पत्ता, तुलसी, पुदीना, मेथी, टमाटर और बैंगन जैसी सब्जियां किसी भी छोटे गमले में आप बालकनी में आसानी से उगा सकते हैं। करेला और खीरा जैसी सब्जियों की बेलें न सिर्फ आपको फल देंगी बल्कि आपकी बालकनी की खूबसूरती भी बढ़ाएंगी। इनमें 45-50 दिन में सब्जियां आने लगती हैं।

गर्मियां: करेला, भिंडी, टिंडा, लोबिया, ककड़ी आदि। ककड़ी व बैंगन जनवरी के आखिर तक लगा दें

, जबकि बाकी सब्जियां फरवरी-मार्च में लगाएं।

सर्दियां: मूली, गाजर, टमाटर, गोभी, पत्तागोभी, पालक, मेथी, लहसुन, बैंगन, मटर आदि।

ये सभी सब्जियां अक्टूबर, नवंबर में लगाई जाती हैं।

 

सब्जियाँ उगाने के लिए सामान्य गमलों की तुलना मे 3 तरह के containers सबसे अच्छे रहते हैं –

  • grow bag
  • paint bucket
  • vegetable crate

सब्जियों की चुनिन्दा लिस्ट जिन्हें आप गमलों मे उगा सकते हैं –

  • टमाटर
  • मिर्च
  • बैंगन
  • करेला
  • लौकी
  • धनिया
  • लहसुन
  • लोबिया
  • आलू
  • पालक
  • भिंडी
  • शिमला मिर्च
  • खीरा
  • प्याज़
  • मूली
  • गाजर
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कनेर की संपूर्ण सटीक जानकारी।

 कनेर के विविध नाम : 

करवीर, अशवरोधक, कुन्द, गौरीपुष्प, दिव्यपुष्प, प्रतिहास, प्रचण्ड शतप्रास शतकुम्भ, शतकुन्द, स्थलकुमुद।  

कनेर के सामान्य परिचय :

कनेर का पौधा अत्यन्त उपयोगी होता है।  इसके द्वारा अनेक प्रकार के पयोगों को सम्पन्न किया जाता है।  

कनेर के स्वरूप : 

कनेर (सफेद कनेर ) का पौधा 5 फुट से लेकर 10 फुट तक ऊँचा होता है।  इसके पत्ते -हरे रंग के, लम्बे और चिकने होते हैं।  इसके फूल सफेद रंग के होते हैं।  

कनेर के प्रकार : 

कनेर अनेक प्रकार का होता है जैसे – सफेद कनेर (शवेत कनेर), लाल कनेर, गुलाबी कनेर, पीला कनेर, काला कनेर आदि।  लेकिन सबसे ज्यादा सफेद कनेर ही देखने को मिलता है, अन्य प्रकार के कनेर आसानी से देखने को नहीं मिलते हैं।  इसलिये आम बोल -चाल की भाषा में सफेद कनेर को ही कनेर कहकर पुकारा जाता है।  कहने का मतलब यह है कि – अगर कहीं पर ‘कनेर’ शब्द का उल्लेख हो तो उसे ‘सफेद कनेर’ ही समझना चाहिये।  

कनेर के गुण -धर्म : 

इसका स्वाद कड़वा और विषैला होता है।  इसका गुण -धर्म -गर्म और खुश्क होता है।  

गणेश गई को प्रसन्न करने के लिये – ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री गणेश जी को लाल कनेर के फूल अत्यन्त प्रिय हैं।  लाल कनेर को – रक्त कनेर, गणेश पर वह आदि नामों से भी पुकारते हैं। लाल कनेर का फूल न मिलने पर गुलाबी कनेर का प्रयोग करना चाहिये – इससे भी वही लाभ प्राप्त होता है।  

कनेर का औषधीय प्रयोग : 

कनेर का अनेक रोगों के उपचार में प्रयोग किया जाता है जैसे – प्रमेह, कुष्ट रोग, फोड़ा, रक्त -विकार, बवासीर आदि।  कनेर – घरों और बगीचों में सजावट के लिये लगाया जाता है।   

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जाने कनेर पौधे के बारे में संम्पूर्ण जानकारी।

कनेर पौधे के विविध नाम : 

करवीर, अशवरोधक, कुन्द, गौरीपुष्प, दिव्यपुष्प, प्रतिहास, प्रचण्ड शतप्रास शतकुम्भ, शतकुन्द, स्थलकुमुद।  

कनेर पौधे सामान्य परिचय :

कनेर का पौधा अत्यन्त उपयोगी होता है।  इसके द्वारा अनेक प्रकार के पयोगों को सम्पन्न किया जाता है।  

कनेर पौधे कस्वरूप : 

कनेर (सफेद कनेर ) का पौधा 5 फुट से लेकर 10 फुट तक ऊँचा होता है।  इसके पत्ते -हरे रंग के, लम्बे और चिकने होते हैं।  इसके फूल सफेद रंग के होते हैं।  

कनेर पौधे प्रकार : 

कनेर अनेक प्रकार का होता है जैसे – सफेद कनेर (शवेत कनेर), लाल कनेर, गुलाबी कनेर, पीला कनेर, काला कनेर आदि।  लेकिन सबसे ज्यादा सफेद कनेर ही देखने को मिलता है, अन्य प्रकार के कनेर आसानी से देखने को नहीं मिलते हैं।  इसलिये आम बोल -चाल की भाषा में सफेद कनेर को ही कनेर कहकर पुकारा जाता है।  कहने का मतलब यह है कि – अगर कहीं पर ‘कनेर’ शब्द का उल्लेख हो तो उसे ‘सफेद कनेर’ ही समझना चाहिये।  

कनेर पौधे गुण -धर्म : 

इसका स्वाद कड़वा और विषैला होता है।  इसका गुण -धर्म -गर्म और खुश्क होता है।  

गणेश गई को प्रसन्न करने के लिये – ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री गणेश जी को लाल कनेर के फूल अत्यन्त प्रिय हैं।  लाल कनेर को – रक्त कनेर, गणेश पर वह आदि नामों से भी पुकारते हैं। लाल कनेर का फूल न मिलने पर गुलाबी कनेर का प्रयोग करना चाहिये – इससे भी वही लाभ प्राप्त होता है।  

कनेर पौधे का औषधीय प्रयोग : 

कनेर का अनेक रोगों के उपचार में प्रयोग किया जाता है जैसे – प्रमेह, कुष्ट रोग, फोड़ा, रक्त -विकार, बवासीर आदि।  कनेर – घरों और बगीचों में सजावट के लिये लगाया जाता है।   

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अशोक के पेड़ के बारे में संम्पूर्ण जानकारी।

अशोक के पेड़ के विविध नाम :
आशा, केलिक, हेमपुष्प, रक्तपल्लव, ताम्रपल्लव, दोहली, प्रपल्लव, मधुपुष्प, विचित्र, विशोक, शोकहता, शोकविनाशन, सुभग। 

अशोक के पेड़ के विविध भाषाओं में नाम :
बंगाली -अस्याल।  गुजराती -आसोपालव। मराठी -अशोषक।  लैटिन -सरका इण्डिका, जोनोसिया अशोका।  

अशोक के पेड़ का सामान्य परिचय :
अशोक का वृक्ष -हम हिन्दुओं में बहुत ही अधिक सम्मान प्राप्त है।  प्रायः सभी शुभ अवसरों पर अशोक की पत्तियों को सुतली आदि की सहायता से गर के दरवाजों पर बाँधा जाता है – इस प्रकार से पत्तियों की तैयार लड़ियों को ‘बन्दनवार कहा जाता है।  ऐसी मान्यता है कि -इनको बाँधने से घर में प्रवेश करने वाली वायु शुध्द हो जाती है और सभी प्रकार की बाधायें आदि बाहर ही रह जाती हैं -इससे शुभ कार्य बहुत अच्छी तरह से सम्पन्न होते हैं और उनमे किसी प्रकार की कोई बाधा नहीं आती है। 

अशोक के पेड़ का उत्पत्ति एवं प्राप्ति -स्थान :
अशोक का वृक्ष प्रायः पूरे देश में पाया जाता है।  वर्तमान समय में इसको -उद्यानों, मन्दिरों, विद्यालयों आदि में लगाया जाता है।  इसके अतिरिक्त, धनवान लोग ऐसे अपने घरों में भी लगाते हैं

अशोक के पेड़ के स्वरूप : 
यह एक सदाबहार वृक्ष होता है जो कि पूरे वर्षभर हरा -भरा बना रहता है।  इसका तना एकदम सीधा होता है और पत्ते लम्बे व् नुकीले होते हैं वसन्त ऋतु में इस पर फूल आते हैं जो कि नारंगी -लाल रंग के और गुच्छेदार होते हैं।

अशोक के पेड़ के गुण -धर्म :
यह कषाय, कटु, ग्राही है।  यह बवासीर, दाह, अत्यधिक प्यास आदि रोगों को दूर करता है और त्वचा का रंग भी साफ करता है।  यह स्त्रियों के विशेष रोगों जैसे – मासिक -धर्म से संबंधित विकार प्रदर, गर्भाशय की शिथिलता आदि को दूर करता है। 

आशिक के पेड़ का औषधीय प्रयोग :
स्त्री -रोगों के नाश के लिये -स्त्रियोंके प्रायः सभी विशिष्ट रोगों में अशोक बहुत ही लाभप्रद सिध्द होता है।  अशोक के वृक्ष की छाल को उबालकर पीने से स्त्रियोंके रोग नष्ट होते हैं और उनका स्वास्थ्य उत्तम बना रहता है।

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जीरो बजट में शुरू करें गार्डनिंग, अपनाएं यह बेहतरीन तरीके।

गार्डनिंग करना एक शौक होता है और इसे सिर्फ शौकीन लोग ही करते हैं। भले ही उनके घर में जगह कम हो या ज्यादा, किसी न किसी तरह से घर में बगीचे के लिए जगह बना ही लेते है। उदाहरण के लिए – कुछ लोग छत पर गार्डनिंग शुरू कर देते हैं, कुछ लोग अपनी बालकनी में गार्डनिंग शुरू कर देते हैं, कुछ लोग हैंगिंग गार्डनिंग करते हैं और कुछ लोग अपने पसंदीदा पौधों को गमलों में लगाकर घर में रखते हैं। लेकिन ज्यादातर यह देखने को मिलता है कि अगर आप नए पौधों को लगाते हैं तो आपके काफी ज्यादा पैसे खर्च हो जाते हैं। जिस कारण से लोग ज्यादातर थोड़ी दूरी पर ही पौधे लगाना पसंद करते हैं। शायद आपके साथ भी ऐसा होता हो। अगर आप कम बजट में ही अपनी सुन्दर बगिया लगाना चाहते हैं तो आपको परेशान होने की जरुरत नहीं है, क्योंकि आज आप कुछ ऐसे तरीकों के बारे में जानने वाले हैं, जिनका उपयोग करके आप जीरो बजट में ही गार्डनिंग शुरू कर सकते हैं।

बिना पैसों के बगीचे को सुन्दर कैसे बनायें।

हर कोई चाहता है कि उनका बगीचा हरा-भरा और खूबसूरत दिखे और हरा-भरा बगीचा मन को भी भाता है, लेकिन इसके लिए आपको बाजार से महंगे कंटेनर या प्लांटर लाने की जरुरत नहीं है। इसके लिए आप घर की पुरानी चीजों जैसे प्लास्टिक की बोतल, जूतों व टायर आदि को ही बतौर कंटेनर इस्तेमाल कर सकते हैं। इन चीजों को और खूबसूरत बनाने के लिए आप स्प्रे पेंटिंग कर सकते हैं और कई प्रकार के अलग – अलग तरीके के डिजाइन आदि बना सकते हैं ताकि आपका बगीचा पैसों के बिना भी खूबसूरत नजर आये।

मुफ्त में कैसे मिलेंगे पौधे 

जब आप बगीचा लगवाते हैं तो आपको गमलों के साथ – साथ पौधों की भी जरुरत पड़ती है और मार्केट में एक सामान्य-सा पौधा 80 – 100 रुपये से कम में नहीं मिलता। ऐसे में अगर आप सात – आठ पौधे लगवाते हैं तो आपको अच्छे खासे पैसे खर्च करने पड़ जाते हैं। लेकिन वास्तव में आपको ऐसा करने की जरुरत नहीं है। अगर आप चाहें तो आपको मुफ्त में ही पौधे मिल जायेंगे। अगर आपके गार्डन एरिया में पहले से ही पौधे हैं तो ऐसे में आप उसे दो – तीन पौधे आसानी से बना सकते हैं। इसके लिए आपको पौधे को गमले से सावधानी पूर्वक निकलना होगा। अब आप खुर्ची की मदद से प्लांट को 2 – 3 हिस्सों में काट लें। हालाँकि, ध्यान रखें कि आप उसकी जड़ों को डिस्टर्ब न करें। इस तरह आप एक पौधे से दो – तीन पौधे तैयार कर सकते हैं। अब इन्हे अलग – अलग गमलों में मिटटी और कम्पोस्ट के मिश्रण में लगाएं।

पौधे की कटिंग कैसे करें।

मुफ्त में प्लांट्स तैयार करने का एक आसान तरीका यह भी है कि आप प्लांट से कटिंग तैयार करें और फिर उसे एक गमले में लगाएं। पौधों की कटिंग करना काफी आसान है। इसके लिए आप पहले पौधे का एक स्टेम कटर की मदद से काट लें। इस बात का ध्यान रखें कि आप कटिंग में मौजूद पत्तियों को हाथों से खींचकर ना तोड़ें, बल्कि कटर की मदद से ही काटें ताकि उसके साइड् में जो नई पत्तियां आएं, उन्हें नुकसान ना पहुँचे। अब आप कटिंग के एक सिरे पर रूट्स हार्मोन पाउडर को लगाकर उसे एक नए गमले में लगाएं। बस एक से डेढ़ महीने में आपका पौधा बढ़ना शुरू हो जायेगा।

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अपने घर के पौधों को कीटों से बचाने के लिए अपनायें, ये कारगर टिप्स।

आजकल लोगों को होम गार्डनिंग काफी पसंद आ रही है, कम स्पेस में ही कई तरह की सब्जियाँ, फल और फूल को आप अपने घर में ऊगा सकते हैं, जिसे किचेन गार्डन भी कहते हैं। सीधी बात कही जाये तो किचेन गार्डनिंग से आप स्वास्थ्य भी रहेंगे और पैसों की भी बचत होगी। मतलब घर में उगाई गयी सब्जियों को घर के किचेन में ही इस्तेमाल कर लीजिये।
लेकिन कभी – कभी आपके गार्डन एरिया में कुछ ऐसे मेहमान आ जाते हैं, जो आपको बिल्कुल भी पसंद नहीं होते हैं, क्योंकि यह आपके पुरे पौधों को खराब कर देते हैं। अगर आप समय रहते इनका इलाज नहीं करेंगे तो यह आपके पूरे बगीचे को बर्बाद कर देंगे। आप कुछ नेचुरल चीजों की मदद से ही इन कीटों से छुटकारा पा सकते हैं। तो चलिए जानते हैं इनके बारे में।

मित्र कीटों से करें दोस्ती

जहाँ कुछ कीट आपके पौधों को नुकसान पहुँचाते हैं, वहीँ ऐसे कई कीट भी होते हैं, जो इन नुकसान पहुँचाने वाले कीटों को खा जाते हैं और आपके पौधों का ख्याल रखने में मदद करते हैं। आप कोशिश करें कि आप अपने गार्डन एरिया की व्यवस्था कुछ इस तरह करें, जिसकी मदद से मित्र कीट आपके गार्डन एरिया में आएं और आपके पौधों को स्वस्थ रखने में मदद करेंगे। एफिड, रेड माइट और कैटरपिलर आपके पौधों को नुकसान पहुँचाते हैं और इनसे बचाव के लिए आप लेडीबग बीटल व ड्रैगन फ्लाई को अपने गार्डन में आकर्षित करें। आमतौर पर, पौधे पर किसी तरह के केमिकल का छिड़काव करने से यह लेडीबग बीटल व ड्रैगन फ्लाई नहीं आते हैं और आपके पौधों को भी नुकसान पहुँचता है।

पौधों को सही तरह से पानी दें

अगर आप अपने पौधों में पानी देने का तरीका बदलते हैं तो आप आपने पौधों को कई प्रकार के कीटों से बचा सकते हैं। इसके लिए, आप अपने पौधे पर हाँथ फिरायें और नीचे से पानी का स्प्रे करें। ऐसा करने से ही अधिकांश कीट आपके पौधे से हट जायेंगे। इसके आलावा टूथब्रश और हेयरब्रश की मदद से भी आप अपने पौधों को कीट मुक्त रख सकते हैं।

कबूतर और गिलहरी से पायें छुटकारा

अगर आप किचेन गार्डनिंग करते हैं तो कबूतर और गिलहरी की समस्या होना आम बात है। इनसे छुटकारा पाना काफी मुश्किल होता है, हालाँकि आप नेचुरल तरीके को अपनाकर इससे भी निजात पा सकते हैं। अगर आप कबूतरों को गार्डन एरिया से दूर रखने के लिए आप झांड़ू की कुछ सीख लेकर उसे गमले के किनारे रोप दें। इसके आलावा, आप अपने किचन गार्डन को गिलहरी से बचाने के लिए गौमूत्र का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए आप 10 – 20 ml  गौमूत्र को एक लीटर पानी में डालकर मिक्स करें और उसे एक स्प्रे बोतल में भर दें। आप इस पानी से पौधे को अच्छी तरह स्प्रे करें। ऐसा करने से गिलहरी आपके पौधों के पास नहीं आएगी। हालाँकि इस बात का ध्यान रखें कि अगर गौमूत्र अधिक हो जाता है तो इससे पौधों के पत्ते जलने की संभावना रहती है।

नीम के पानी का प्रयोग

यह भी एक नेचुरल तरीका है अपने पौधों को कीटों से बचाने का। बस आपको इतना करना है कि आप रात में कुछ नीम की पत्तियाँ भिगों दें और अगली सुबह, आप उस पानी का छिड़काव अपने पौधों पर करें।

हींग का भी करें इस्तेमाल

हींग की महक कीटों को पौधों से दूर रखती है। इसका इस्तेमाल करना बेहद ही आसान है। बस आपको इतना करना है कि आप एक चुटकी हींग को एक गिलास पानी में डालें और उसे तीन – चार घंटो के लिए ऐसे ही रख दें। अब आप इस पानी को कपडे की मदद से छान लें और इसे भी एक स्प्रे बोतल में डालकर पौधों पर इसका छिड़काव करें।  

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गूलर के पेड़ के बारे में सम्पूर्ण सटीक जानकरी।

 गूलर के पेड़ के विविध नाम : 

उदुम्बर, उडुम्बर, कालस्कन्ध, जन्तुफल, पवित्रक, पाणिमुख, पुष्पशून्य, पुष्पहीना, ब्र्हावृक्ष, यज्ञसार, यज्ञफल, सदाफल, सौम्य, हेमदुग्धक, हेमदुग्ध, क्षीरवृक्ष।  

गूलर के पेड़ का सामान्य परिचय :
गूलर एक सर्वसुलभ वृक्ष है, जो कहीं भी देख जा सकता है।सामान्य जनता इसे बहुत ही साधारण और अनुपयोगी समझती है लेकिन सच्चाई तो यह है कि -यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण और उपयोगी वृक्ष है। 

गूलर के पेड़ के स्वरूप :
यह भारी भरकम होता है।  गूलर में झरबेरी के बराबर फल लगते हैं जो क्रमश : बढ़ते हुये नीबू के बराबर तक हो जाते हैं। ये फल कच्ची अवस्था में हरे और पकने पर लाल हो जाते हैं।  पके फल -मीठे, पौष्टिक,ठण्डे और पाचक होते हैं लेकिन यहाँ पर सावधानी रखने की बात यह है कि -प्रायः छोटे -छोटे उड़ने वाले पतंगा (भुनगे )-गूलर के फलों में छेद करके अन्दर तक घुस जाते हैं और उसका रस चूसा करते हैं।  अतः गूलर खाने वाले को यह सावधानी बरतनी पड़ती है कि वे छेददार फल न ले।  कोई भी फल कहने के पहिले उसे तोड़कर भीतर भली -भाँति देख लें कि कहीं उसके अन्दर कोई पतंगा तो नहीं बैठा है।  यदि पतंगा बैठा हुआ है तो उसे निकलकर फेंक दें और तब ही उस फल को खायें।  कच्चे गूलर में पतिंगे नहीं होते हैं।  बहुत से लोग कच्चे गूलर की पकौड़ी बनवाकर बड़े चाव से कहते हैं। 
गूलर के पेड़ के गुण- धर्म :

इसकी लकड़ी जल में सड़ती नहीं है, अतः कुँआ बावने वाले लोग ईंटों की दीवार खड़ी करने के पूर्व आधार रूप में नींव के स्थान पर गूलर की लकड़ी का एक गोल पहिया जैसा बिठा देते हैं -उसी के ऊपर ईंटें जमाकर गोलाकार दीवार खड़ी की जाती है।  इस प्रकार नींव में गूलर की वह लकड़ी बहुत -बहुत लम्बे समय तक पानी में पड़ी रहने पर भी सड़ती नहीं है। 

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5 Famous Fruits plants that can be Grown in Pots, in West Bengal

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कनेर के पौधे की संम्पूर्ण जानकारी।

कनेर के पौधे के विविध नाम : 

करवीर, अशवरोधक, कुन्द, गौरीपुष्प, दिव्यपुष्प, प्रतिहास, प्रचण्ड शतप्रास शतकुम्भ, शतकुन्द, स्थलकुमुद।  

कनेर के पौधे का सामान्य परिचय :

कनेर का पौधा अत्यन्त उपयोगी होता है।  इसके द्वारा अनेक प्रकार के पयोगों को सम्पन्न किया जाता है।  

कनेर के पौधे का स्वरूप : 

कनेर (सफेद कनेर ) का पौधा 5 फुट से लेकर 10 फुट तक ऊँचा होता है।  इसके पत्ते -हरे रंग के, लम्बे और चिकने होते हैं।  इसके फूल सफेद रंग के होते हैं।  

कनेर के पौधे के प्रकार : 

कनेर अनेक प्रकार का होता है जैसे – सफेद कनेर (शवेत कनेर), लाल कनेर, गुलाबी कनेर, पीला कनेर, काला कनेर आदि।  लेकिन सबसे ज्यादा सफेद कनेर ही देखने को मिलता है, अन्य प्रकार के कनेर आसानी से देखने को नहीं मिलते हैं।  इसलिये आम बोल -चाल की भाषा में सफेद कनेर को ही कनेर कहकर पुकारा जाता है।  कहने का मतलब यह है कि – अगर कहीं पर ‘कनेर’ शब्द का उल्लेख हो तो उसे ‘सफेद कनेर’ ही समझना चाहिये।  

कनेर के पौधे के गुण -धर्म : 

इसका स्वाद कड़वा और विषैला होता है।  इसका गुण -धर्म -गर्म और खुश्क होता है।  

गणेश गई को प्रसन्न करने के लिये – ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री गणेश जी को लाल कनेर के फूल अत्यन्त प्रिय हैं।  लाल कनेर को – रक्त कनेर, गणेश पर वह आदि नामों से भी पुकारते हैं। लाल कनेर का फूल न मिलने पर गुलाबी कनेर का प्रयोग करना चाहिये – इससे भी वही लाभ प्राप्त होता है।  

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कनेर के पौधे का औषधीय प्रयोग : 

कनेर का अनेक रोगों के उपचार में प्रयोग किया जाता है जैसे – प्रमेह, कुष्ट रोग, फोड़ा, रक्त -विकार, बवासीर आदि।  कनेर – घरों और बगीचों में सजावट के लिये लगाया जाता है।

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