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लौंग की संम्पूर्ण जानकारी।

लौंग के विविध नाम : 

लवंग, लवंगक, देवकुसुम, प्रसून, शेखर, श्रीसंज्ञ श्रीपुष्प तीक्ष्ण तीक्षणपुष्प 

लौंग के सामान्य परिचय : 

हमारे देश में – सैग -सब्जी और विभिन्न प्रकार के भोजनों में कुछ विशेष वस्तु डाली जाती है जिन्हें ‘मसाला’ कहते हैं।  नमक, मिर्च, हल्दी, सूखा धनिया, जीरा, मेथी, अजवायन आदि मसाला माने जाते हैं।  ें मसलों का प्रयोग करने पर ही विभिन्न प्रकार की खाघ -सामग्रियाँ और भी अधिक स्वादिष्ट बन पति हैं।  ‘लौंग’ भी एक प्रकार का मसाला है। 

लौंग के उत्पत्ति एवं प्राप्ति -स्थान : 

दक्षिण -भारत में मलाबार -तट और केरल के क्षेत्रों में इस प्रकार की जलवायु है कि -वहाँ पर विभिन्न प्रकार के मसाले प्रचुर मात्रा में उत्पन्न होते हैं।  लौंग भी वहीं पर उत्पन्न होती है।  इसके अतिरिक्त वहाँ पर कालीमिर्च, इलायची, जाय फल, जावित्री, दालचीनी, सुपाड़ी आदि भी बहुतायत से उत्पन्न होते हैं।  

लौंग के स्वरूप :

 लौंग -बहुत ही छोटी (एक सेंटीमीटर से भी छोटी )होती है।  इसके एक सिरे पर पाँच पंखुड़ियाँ होती हैं और ें पंखुड़ियों के बिच में एक उभरा हुआ पठार जैसा होता है।  इनके पीछे एक बहुत छोटी -सी डण्डी होती है।  इसका रंग कला -भूरा होता है।  यह बाजार में -पंसारी, परचून की दुकान पर आसानी से मिल जाती है।   

वास्तव में, लौंग -एक लता का पुष्प है।  यह लता अपनी कमनीयता, शोभा और सुगन्ध के लिये प्रसिद्ध है -इसलिये विभिन्न कवियों ने अपने काव्यों में इसका उल्लेख किया है।  उदाहरण के लिये -जयदेव ने अपने काव्य ‘गीत गोविन्द’ में लिखा है – ‘ललित लवंग लते परिशीलन , कोमल मलय समीरे’।

लौंग के गुण -धर्म : 

 यह गर्म, तीक्ष्ण होती है।  लौंग में कीटाणु -नाशक शक्ति होती है।  लौंग का तेल निकालकर उसका विभिन्न प्रकार से प्रयोग किया जाता है लेकिन यह तेल तीक्ष्ण सुगन्ध वाला और उड़नशील होता है, अतः खुला नहीं छोड़ना चाहिये। 

लौंग के औषधीय प्रयोग : 

 जैसा कि हमने पिछली पंक्तियों में बताया है कि –लौंग एक प्रकार का मसाला है।  इसलिये इसका सबसे अधिक प्रयोग -दैनिक जीवन में विभिन्न प्रकार की सब्जियाँ, दालें सांभर आदि बनाने में किया जाता है। इसके अतिरिक्त, जबकि कुछ विशेष मसलों को मिलाकर पीस लिया जाता है तो -उनके सम्मिलित रूप को ‘गरम’ -मसाला’ कहते हैं  इस ‘गरम् मसाला’ में ‘लौंग’ को भी मिलाया जाता है।  

अनेक लोग तो ‘लौंग’ की यज्ञ में आहुति भी देते हैं।  विशेषकर वर्ष में दो बार आने वाले ‘नवरात्रों’ (नवदुर्गा )में घर -घर में जो यज्ञ किये जाते हैं, उनमें तो  ‘लौंग’ की आहुति अवश्य ही दी जाती है।  इसके अतिरिक्त, पैन (बीड़ा)बनाते समय भी उसमें लौंग डाली जाती है क्योंकि इससे मुख की शुद्धि होती है।  

दंतपीड़ा -नाशक प्रयोग –

लौंग चबाने से दाँत का दर्द दूर हो जाता है।  इसके अतिरिक्त -लौंग का तेल लगाने से दाँतों और मसूढ़ों की समस्त व्याधियाँ दूर हो जाती हैं।  यदि आप कोई सूखा मंजन करते हों तो उसमें लौंग पीसकर अवश्य मिला दें -करने से उसकी गुणवत्ता बढ़ जायेगी। 

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कमल की संपूर्ण सटीक जानकारी।

कमल के विविध नाम :

पुण्डरीक, अब्ज, अम्बुज, अमोज, अरविन्द, इन्दीवर, उत्पल, कंज, कुंज, कुवलय, जलज, वारिज, पदम्, शतदल, सहस्रदल, तामीस, तामरस, राजीव, नीरज, पुष्कर, पंकज, सारस, सरोज, पारिजात, श्रीपर्ण, श्रीपुष्प आदि।  परन्तु इसका सर्वाधिक प्रचलित यही नाम है -”कमल”। 

कमल के नामों के संदर्भ में एक दोहा भी प्रचलित है जो कि निम्नलिखित प्रकार से है –

पुण्डरीक, पुष्कर, कमल, अम्बुज, जलज, अमोज।  

पंकज, सारस, तामरस, कुवलय, कंज, सरोज।। 

कमल का सामान्य परिचय :

प्रायः  समस्त प्रकार के फूल -विभिन्न प्रकार के पौधों, लताओं और बेलों से उत्पन्न होते हैं।  किन्तु कुछ फूल ऐसे भी हैं जोकि पानी में पैदा होते हैं, ऐसे फूलों को -जल -पुष्प वारिजात – इत्यादि नामों से सम्बोधित किया जाता है।  

जलज -पुष्पों में सर्वोच्च स्थान ‘कमल’ को प्राप्त है। द्रितीय स्थान पर कोक (कुमुद )का नाम लिया जाता है।  यघपि ‘कमल’और ‘कुमुद’ में पर्याप्त समानताये हैं लेकिन इनमें अनेक अंतर भी होते हैं – रूप, गुण, प्रभाव आदि सभी द्रष्टियों से।  

कमल के उत्पत्ति एवं प्राप्ति स्थान : 

जैसा कि पिछली पंक्तियों में बताया गया है कि –कमल की उत्पत्ति पानी में होती है लेकिन वह पानी बहुत अधिक चलायमान (बहुत अधिक वेग से बहने वाला )नहीं होना चाहिये।  इसलिये कमल की उत्पत्ति – तालाबों, सरोवरों, दलदल वाले स्थानों पर होती है।  चूँकि नदियों का पानी बहुत अधिक चलायमान होता है इसलिये नदियों में कमल की उत्पत्ति नहीं होती है।  लेकिन कभी -कभी नदियों के किनारों की मिटटी -नरम और दलदली हो जाती है इसलिये कभी -कभी वहाँ पर कमल उत्पनं हो जाता है।  

धनवान लोग अपने घरों में कृत्रिम तालाब आदि बनवाते हैं और उनमें भी कमल आदि को उत्पन्न करवाते हैं।  

कमल के स्वरूप : 

कमल का फूल गुलाबी रंग का होता है (कभी -कभी सफेद रंग का कमल भी देखने को मिलता है )इसमें अनेक पंखुड़ियाँ होती हैं और वह पंखुड़ियाँ बहुत अधिक कोमल होती हैं।  कमल के फूल में से एक विशेष प्रकार की भीनी -भीनी सुगन्ध भी आती रहती है 

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पलाश के बारे में सटीक और सम्पूर्ण जानकारी।

 विविध नाम :

ढाक ,पलास ,तेसू ,रक्त पुष्प ,धारा ,सुपर्णी ,त्रिपत्रक।  

सामान्य परिचय : 

पलाश का पेड़ प्राय :पुरे देश में पाया जाता है।  हिन्दुओं में ऐसी मान्यता है कि जब देवताओं ने कामदेव को भगवान शंकर की समाधि भंग करने के लिये भेजा था तो कामदेव ने पलाश के पेड़ पर ही चढ़कर भगवान शंकर को पुष्पबाण मारा था।  इस प्रकार से जब भगवान शंकर की समाधि भंग हो गई तो उनहोंने क्रोधमें अपना तीसरा नेत्र खोलकर कामदेव को भस्म कर दिया, तब साथ में पलाश का पेड़ भी पूर्णतः भस्म हो गया था।  बाद में भगवान शंकर ने पलाश को पुनर्जीवित कर दिया था लेकिन उसको किसी भी प्रकार की गंध नहीं होती है।  लेकिन फिर भी इसके गुणों के कारण इसे बहुत अधिक सम्मान दिया जाता है।  

स्वरूप : 

पलाश का वृक्ष काफी बड़ा होता है।  इसके पत्ते भी बड़े -बड़े और गोल होते हैं।  इस पर मार्च -अप्रैल के महीने में फूल आते हैं जो कि लाल -पीले रंग के होते हैं।  इसका फल चपटा होता है और उसमे एक बीज होता है।  

गुण -धर्म : 

यह कसैला ,दीपन ,चटपटा ,दस्तावर और वीर्य बढ़ाने वाला होता है।  कुछ वैघों का कथन है कि इसके द्वारा बुखार (ज्वर )को ठीक करने की औषधि भी बनाई जा सकती है।

औषधीय प्रयोग :

विविध रोगों में – पलाश का उचित प्रयोग करने से घाव, दाद, रक्त – दोष, कोढ़, कृमि, संग्रहणी, गुल्म, मूत्रकृच्छ, आदि रोगों में आराम होता है। 

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जानें चमेली के बारे में सटीक और संपूर्ण जानकारी।

विविध नाम :

चमेली ,उपजाती ,वेशिका ,सुवर्षा ,सुरूपा ,यास्मीन। 

सामान्य परिचय :

चमेली अत्यंत उपयोगी और महत्वपूर्ण वनस्पति है। इसका दैनिक जीवन में बहुतायक से प्रयोग किया जाता है।  

उत्तपत्ति एवं प्राप्ति स्थान:

चमेली का पौधा प्राय :बाग बगीचों में पाया जाता है बहुत से लोग इसको अपने घरो में भी लगाते हैं।  

स्वरूप : 

चमेली का पौधा बेल की तरह का होता है।  इसके पत्ते हरे चिकने और कुछ गोल होते हैं।  इसके फूल आकार में छोटे होते हैं और सफ़ेद रंग के होते हैं जिसमें सामान्यता :केवल चार या पाँच पंखुड़ियाँ होती हैं और वह लम्बी डण्डी पर लगते हैं  

गुण -धर्म :

चमेली गर्म और खुश्क होती है।  चमेली का तेल सुगंधित ठण्डा और स्वाद में कड़वा होता है।  बहुत से लोग चमेली का तेल अपने सिर के बालों में लगाते हैं लेकिन विद्वानों का कहना है कि चमेली का तेल लगाने से बाल बहुत जल्दी (उम्र से पहले ही )सफेद होने लग जाते हैं अतः इसे बालों में नहीं लगाना चाहिये।  

औषधीय प्रयोग :

चमेली का प्रयोग – सिर ,आँख ,मुँह ,दाँत आदि के रोगों की दवा बनाने में भी किया जाता है।  इसके अतिरिक्त यह घाव ,कोढ़ ,लकवा ,गठिया आदि के रोगों में भी अत्यन्त लाभप्रद है।  

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तुलसी के पौधे के बारे में सटीक और सम्पूर्ण जानकारी

तुलसी का पौधा

Dark Holy Basil or Krishna Tulsi - GardenHunt

तुलसी के विविध नाम


वृंदा ,अमृता, सुगन्धा ,मंजरी , सुरभि, माधवी, पावनी, तीव्रा, पत्रपुष्पा ,पवित्रा , लक्ष्मी, विष्णुकान्ता, वैष्णवी,श्यामा सुलभा, हरिप्रिया, श्री |


तुलसी का सामान्य परिचय


यह एक पवित्र पौधा होता है | इसकी पत्तियों का प्रयोग भगवान की पूजा के समय पर उनको भोग लगाने के लिये किया जाता है। तुलसी की पत्तियाँ सूखने के बाद में भी पवित्र मानी जाती हैं और सूखी पत्तियों का भी शुभ कार्यो में निःसंकोच प्रयोग किया जाता है।

तुलसी की उत्तपत्ति एवं प्राप्ति-स्थान


तुलसी का पौधा प्राय: पुरे देश में पाया जाता है। इसे घरों में लगाया जाता है। इसे मंदिरों और उद्यानों में भी लगाया जाता है।ऐसी मान्यता है कि_तुलसी के पौधे को अपवित्र और गन्दे हाथो से नहीं छूना चाहिये क्योकि ऐसा करने से यह मुरझा जाता है और धीरे -धीरे नष्ट हो जाता है।

तुलसी के प्रकार


तुलसी का पांच प्रकार का होता है –

  1. श्यामा तुलसी {काली तुलसी या कृष्ण तुलसी }
  2. शवेत तुलसी {हरी सफेद तुलसी }
  3. दद्रिह तुलसी 
  4. तुकशमीय तुलसी
  5. बाबी तुलसी

लेकिन इन पाँचो में से सबसे ज्यादा ‘श्यामा तुलसी’ का ही प्रयोग किया जाता है। 

तुलसी का स्वरूप

:
श्यामा तुलसी प्राय : पुर देश में पाई जाती है | इसके पौधे की ऊंचाई लगभग तीन फुट तक होती है और इसके पत्ते छोटे तथा हरे रंग के होते हैं | यह पत्ते सूखने के बाद में काले पड़ जाते हैं इसलिये ही इस तुलसी को श्यामा तुलसी या काली तुलसी भी कहा जाता है | यह तुलसी भगवान श्रीकृष्ण को बहुत अधिक प्रिय है, इसीलिए इसे ‘कृष्णा तुलसी’ कहते हैं।

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अडेनियम के पौधे की देखभाल करने के 10 बेहतरीन उपाय।

  1. अडेनियम के पौधे आमतौर पर गमलों में उगाये जाते हैं इसलिए मिटटी को सावधानी से चुना जाना चाहिए। अडेनियम मिटटी का मिश्रण अच्छी जल निकासी और वायु प्रवाह वाला होना चाहिए। Casa De Amor Organic Adenium Potting Soil एक परफेक्ट मिटटी का मिश्रण होता है।
  2. अडेनियम के पौधों को डेज़र्ट रोज भी कहते हैं। अतः इन पौधों को ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती है। अडेनियम के पौधे अधिक तापमान को सहन कर सकते हैं। सर्दियों के मुकाबले गर्मियों में इन पौधों को थोड़ा अधिक पानी की आवश्यकता होती है। 
  3. अडेनियम के पौधे का बढ़ने का एक क्रम होता है। जब अडेनियम का पौधा सर्दियों के दिनों को पार कर, वसंत ऋतु में आता है तो इसे हफ्ते में दो बार हल्की खाद दें। गर्मियों के दिनों में हफ्ते में एक बार हल्की खाद दें और फिर सर्दियों में इसे आराम करने दें, कोई भी खाद न डालें। 
  4. अडेनियम के पौधे शुष्क परिस्थितियों को सहन कर सकते हैं। ये पौधे घर के वातावरण के लिए अनुकूल होते है। इनके लिए 25 डिग्री C या उससे अधिक का तापमान अच्छा रहता है। ये पूर्णतः धूप की रोशनी में बढ़ते हैं। इनके लिए सीधी धूप बेहतर होती है। खासकर जब ये बढ़ रहे होते हैं। 
  5. आप अडेनियम को बीज से ऊगा सकते हैं। अडेनियम के बीज 25 से 35 डिग्री C तापमान पर अच्छी ग्रोथ करते हैं। तापमान को स्थिर रखने के लिए आप वार्मिंग पैड का उपयोग कर सकते हैं। 
  6. आप अडेनियम के पौधों को किसी भी तरह के गमले में लगा सकते हैं। कई विशेषज्ञ मिट्टी के गमलों में इन्हें लगाने की सलाह देते हैं। इन्हें लगाने से पहले गमले की तली में छोटे – छोटे छेद कर लें। इससे वायु का संचरण अच्छा होता है। 
  7. अडेनियम के पौधे में सबसे व्यापक समस्या जड़ सड़ने की होती है और यह जल भराव के कारण होता है। अतः इसके बचाव के लिए कम से कम पानी दें और जल निकासी की उचित व्यवस्था हो। 
  8. आप अपने अडेनियम के पौधे की प्रूनिंग कर सकते हैं। अनियंत्रित विकास को काटें और जो शाखाएँ सूख रही हों उन्हें काट कर निकाल दें। 
  9. आप अपने अडेनियम के गमले की मिटटी की समय – समय पर हल्की गुड़ाई करते रहें। खर – पतवार और घास – फूस को निकालते रहें। 
  10. अडेनियम एक बहुत ही सुन्दर पौधा होता है। इसमें लाल रंग का फूल निकलता है। कभी – कभी इसे पाने में देर हो जाती है और यह पानी की अधिक मात्रा के कारण होता है। इसे सीमित मात्रा में पानी दें और नियमित धूप में रखें। यह आपके घर की शोभा को बढ़ाता है। 

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जानें साल के हर महीने में कौन – कौन सी सब्जियाँ उगाई जाती हैं।

आज हम आपको एक ऐसी जानकारी बताने वाले हैं जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं कि किस महीने में कौन – सी सब्जियों के बीज लगाने होते हैं। अक्सर लोग यही गलती करते हैं कि गलत समय पर गलत सब्जियों के बीज बो देते हैं और बीज उगता नहीं है। अगर वही बीज सही समय पर बोया जाये तो उस बीज से निकलने वाला पौधा आपको पौष्टिक सब्जियाँ दे सकता है। तो आईये जानते हैं कि किस महीने में कौन – कौन सी सब्जियों के बीज लगाने चाहिए। 

जनवरी माह में :- आप जनवरी माह में बैंगन, मिर्च, मूली, तरबूज, खरबूज, फ्रेंचबीन, गाजर, भिंडी और करेला के बीज लगा सकते हैं। जनवरी माह का मौसम इन बीजों के लिए अनुकूल होता है। 

फरवरी माह में :- आप फरवरी माह में पत्तागोभी, बैंगन, मिर्च, टमाटर, मूली, लौकी, कद्दू, करेला, खीरा, खरबूज और ककड़ी के बीज लगा सकते हैं। फरवरी माह का मौसम इन बीजों के लिए अनुकूल होता है। 

मार्च माह में :- आप मार्च माह में भिंडी, लौकी, कद्दू, करेला, खरबूज, मूली, तोरई, प्याज, ककड़ी, लोबिया और शलजम के बीज लगा सकते हैं।

अप्रैल माह में :- अप्रैल माह में आप मूली, अदरक, टमाटर, भिंडी, ककड़ी और खीरा के बीज लगा सकते हैं। 

मई माह में :- मई के महीने में आप बैंगन, चौलाई, ककड़ी, लौकी, शिमला मिर्च और करेला के बीज लगा सकते हैं। 

जून माह में :- आप जून माह में मेथी, टमाटर, बैंगन, मिर्च, भिंडी, हल्दी, अदरक, लौकी, कद्दू, करेला, तरबूज, तोरई और पत्तागोभी के बीज लगा सकते हैं। 

जुलाई माह में :- जुलाई के महीने में आप टमाटर, मिर्च, पत्तागोभी, भिंडी, हल्दी, लौकी, कद्दू, करेला, तरबूज और तोरई के बीजों को लगाना उचित रहता है। 

अगस्त माह में :- अगस्त माह का समय मूली, गाजर, आलू, मटर, लौकी, प्याज, सेम, बरबट्टी और धनिया के लिए सही होता है। 

सितम्बर माह में :- सितम्बर का महीना मिर्च, फूल गोभी, पत्ता गोभी, लहसून, मूली, आलू और गाजर आदि के बीजों को उगाने के लिए अच्छा माना जाता है। 

अक्टूबर माह में :- टमाटर, बैंगन, मिर्च, फूलगोभी, प्याज, लहसुन, मूली, धनिया, मेथी और सौंफ के बीजों को अक्टूबर के महीने में लगाना चाहिए। 

नवम्बर माह में :- नवम्बर के महीने में टमाटर, बैंगन, पत्तागोभी, प्याज, मूली, गाजर, धनिया, जीरा और मेथी के बीज लगाना उचित माना जाता है। 

दिसम्बर माह में :- आलू, तरबूज, खरबूज, शिमला मिर्च, मटर, गाजर, भिंडी और पालक के बीज दिसम्बर महीने में ही लगाना चाहिए। 

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Top 10 secrets to get a lot of fruits from mango tree

आम एक उष्णकटिबन्धीय फल है। आम के फल मिठास, प्रोटीन और कच्चे फाइबर से भरपूर होते हैं। आम में विटामिन – A और कैरोटीन अन्य फलों की अपेक्षा बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है। इसके आलावा विटामिन – C भी अधिक मात्रा में होता है। खनिज, प्रोटीन, वसा और शर्करा मुख्य पोषक तत्व हैं। आम की उपज और गुणवत्ता में सुधार कैसे करें। 

How to Grow Mango Trees

मौसम की जाँच करें :- बढ़ते हुए आम के पौधे को तेज धूप की जरुरत होती है लेकिन सीधी धूप की जरुरत नहीं। जब आपका आम का पौधा अच्छी तरह बढ़ने लगे तब उसे धूप की ज्यादा जरुरत होती है। जिसका मतलब यह है कि आपने जो आम के पौधे घर में गमले में लगायें हैं उन्हें बाहर धूप में रखने की जरुरत है। आम के पौधे को कम से कम 6 घंटे और अधिकतम 10 घंटे की धूप मिलनी ही चाहिए। यह आपके पौधे के लिए सबसे अच्छा रहेगा कि आप अपने पौधे को साउथ फेसिंग एरिया में रखें। सर्दियों में आपको ग्रो लाइट की आवश्यकता हो सकती है। 

तापमान और आर्द्रता :- आम के पौधों के लिए 50 % से अधिक नमी की जरुरत होती है। अगर हवा शुष्क है तो इनडोर लगे आम के पौधे को पानी की फुहार देते रहें। आप अपने पौधे को जीतना हो सके गर्म रखें और 50 डिग्री फारेनहाइट से ऊपर रखें। आम के पौधे 40 डिग्री से नीचे के तापमान को नहीं सह सकते इसका मतलब यह है कि आम के पौधे अधिक ठण्ड नहीं सह सकते, इसके आलावा इनके फल और फूल भी गिरने लगते हैं। ऐसी जगहें जहाँ का औसत तापमान 80 से 100 डिग्री फारेनहाइट हो वहाँ आम के पौधों को उगाया जा सकता है। 

मिटटी के कटाव को रोकने के लिए निराई और गुड़ाई :- किसी वयस्क फल के पेंड की जड़ें उसके आस – पास के क्षेत्रों में किसी जाल के सामान फैली होती हैं और उन जड़ों के आस – पास उगने वाला खर – पतवार जड़ों की वृद्धि में बाधा बनती हैं। इसीलिए उनकी सफाई होनी बहुत जरुरी है। मिटटी की गुड़ाई 1 – 2 इंच की गहराई पर करनी चाहिए। ऐसा करने से पौधे की जड़ें अच्छे से सांस ले सकती हैं। मिटटी की गुड़ाई करने से मिटटी का कटाव नहीं होता है। 

फलों की तुड़ाई के बाद पौधे की कटाई – छटाई :- एक बार फलों की तुड़ाई के बाद आम के पौधे की प्रूनिंग कर देनी चाहिए। कटाई – छटाई कर देने से पौधा अधिक दिनों तक चलता है। प्रकाश संचरण की स्थिति में सुधार होता है। फलों की उपज को बढ़ाता है। कीट और बिमारियों से पौधे की रक्षा है। 

खाद और पानी की सुविधा :- बागों में गहराई से यह जाँच करना अति आवश्यक है कि आम के पौधों को कब खाद – पानी की जरुरत है। फलों के पेड़ों की वृद्धि और वृद्धि विषेशताओं के अनुसार आम के पेड़ों को पर्याप्त फल उर्वरक और फूल उर्वरक देना चाहिए। 

टहनियों को नियंत्रित और फूलों को बढ़ावा :- टहनियों के नियंत्रण और फूलों को बढ़ावा देने के लिए रसायनों का उपयोग वैज्ञानिक ढंग से करना आवश्यक होता है। जिससे अनावश्यक नुकसान से बचा जा सकता है।

परागण और फलों में सुधार :- जब आम के पेंड में फूल आ रहें हो तो आप आम के बाग में जानवरों की आँतों, सड़ी हुयी मछलियाँ या सड़ा हुआ मांस डालने से मक्खियाँ और चीटियाँ आकर्षित होंगी और जिनकी वजह से अधिक परागण होगा और मधुमक्खियों को भी बागों में छोड़ सकते हैं। पोटेशियम हायड्रोजन फॉस्फेट 0.3 %, बोरेक्स 0.2 % उच्च नाइट्रोजन पानी में घुलनशील उर्वरक 0.1 % का छिड़काव पेंड के ऊपरी भाग पर करना चाहिए। फूल आने के बाद एमिनो एसिड और 3 – 4 मिलीग्राम /किलोग्राम जिबरेलिन का छिड़काव करने से भी फल लगने की दर में वृद्धि होती है। 

फूलों और फलों की रक्षा करना :- हवा और गर्मी के वातावरण को बदलने और फल – फूलों के विकास और विकास के लिए अनुकूल वातावरण बनाने के लिए विंडब्रेक वनों का निर्माण किया जाना चाहिए। कम तापमान वाले मौसम, जैसे शुष्क मौसम और ठंडी हवा के मामले में, हवा को हर 10 मीटर पर बगीचे में रखा जाना चाहिए ताकि धुएं का ढेर लगाया जा सके। 

पेड़ों के क्षतिग्रस्त स्थान का उपचार :- उन क्षेत्रों में जहाँ अक्सर उष्ण कटिबंधीय तूफान आते हैं, तूफान के बाद शाखाएँ और पत्तियाँ टूट  जिसके कारण कीटों द्वारा घावों पर संक्रमण होता है और पूरे पौधे की मृत्यु हो जाती है। आँधी और बारिश के बाद या आपदा के बाद पेंड़ों का उपचार किया जाना चाहिए। आपदा के बाद क्षति ग्रस्त स्थान की जाँच करें। 

कीट और रोग नियंत्रण :- वयस्क आम के पेड़ों के कीट और रोग वही होते हैं जो सामान्य आम के पेड़ों के होते हैं। जब आम का उत्पादन हो रहा हो तो हमें आम की फसल पर लगने वाली बीमारियों जैसे :- एन्थ्रेक्नोज, पाउडर फफूँदी और गमोसिस को नियंत्रित करना चाहिए। आम की बागों में फैले आर्मीवर्म, लीफहॉपर और लॉन्गहॉर्न बीतल को मारना चाहिए, ताकि आम की सामान्य वृद्धि सुनिश्चित हो सके।  

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गमले में सूरजमुखी का पौधा कैसे उगाएं।

How to grow a sunflower plant in a pot

Plant House Live Surajmukhi/Sunflower Charming Flower Plant With Pot:  Amazon.in: Garden & Outdoors

आज हम बात करेंगे सूरजमुखी के पौधों के बारे में कि आप इन्हें अपने घर में कैसे लगायेंगे। सूरजमुखी चमकीले और सुन्दर फूल होते हैं जिनमें विटामिन, प्रोटीन, खनिज और फास्फोरस से भरपूर बीज होते हैं। जबकि कच्चे सूरजमुखी के बीजों में विटामिन B और E होता है और अंकुरित में विटामिन C होता है। सूरजमुखी के बीजों को नाश्ते के रूप में कच्चा खाया जा सकता है या किशमिश, चिप्स के साथ मिलाया जा सकता है। बीज को फलों या सब्जियों के सलाद में जोड़ा जा सकता है। सूरजमुखी के बीजों को मेवों के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं। 

सूरजमुखी का बीज और पौधा ( Sunflower seed and plant )

आप सूरजमुखी के बीजों को स्थानीय नर्सरी या बीज भण्डारों से खरीद सकते हैं या फिर आप उन्हें ऑनलाइन भी ऑर्डर कर सकते हैं। अगर आपके पास पहले से ही एक पूर्ण विकसित सूरजमुखी का पौधा है तो आप उससे निकलने वाले सूरजमुखी के फूलों से बीज निकाल सकते हैं। उन्हें फ्रिज के अंदर एक एयरटाइट कंटेनर में स्टोर करें और जितनी जल्दी हो सके उन बीजों को बोएं क्योंकि पुराने बीजों को उगाना कठिन होगा। 

सूरजमुखी की किस्में चुनें ( Choose varieties of sunflower )

आप जब भी अपने बगीचे में सूरजमुखी का पौधा लगाएं तो बौनी किस्म का ही पौधा लगाएं। खरीदते समय सूरजमुखी के बीज के पैकेट पर दी गयी जानकारी को जरूर पढ़ें। अगर ऑनलाइन ऑर्डर कर रहे हैं तो वेबसाइट पर उसके बारे में जो जानकारी दी गयी है, उसे भी पढ़ें। 

सही गमले का चयन करें ( Choose the right pot )

सूरजमुखी के पौधों की जड़ें काफी फैलती हैं। अतः सूरजमुखी को किसी बड़े गमले में लगाएं। जिसका आकार 12 से 16 इंच का हो। अगर आप बड़े सूरजमुखी को लगाना चाहते हैं तो उसको एक कंटेनर में लगाएं जिसकी क्षमता कम से कम 19 लीटर हो। अगर आप एक पुराने गमले का उपयोग कर रहें हैं तो उसे अच्छी तरह साफ कर लें और कीटाणुरहित कर लें। जल निकासी के लिए गमले की तली में एक छोटा – सा छेद कर दें अन्यथा आपके बीज या पौधे की जड़ें सड़ने लगेंगी। 

मिट्टी में खाद मिलाएं ( Add compost to soil )

सूरजमुखी के रोपण के लिए एक अच्छी गुणवत्ता, पोषक तत्वों से भरपूर ऊपरी मिट्टी का चयन करें। मिट्टी में खाद डालने से यह आपके सूरजमुखी के पौधों और बीजों के लिए पोषक तत्वों से भरपूर हो जाती है। उच्च गुणवत्ता वाली ऊपरी मिट्टी का उपयोग आपको किसी भी जल निकासी सामग्री जैसे रेत या पत्थरों को कंटेनर के नीचे जोड़ने से रोकती है। 

बीज या पौधा कैसे लगाएं ( How to plant a seed or plant )

आप अगर बीज लगा रहें हैं तो 1 इंच मिट्टी खोद के लगाएं और प्रत्येक बीज को 5 इंच की दूरी पर लगाएं। बीज बोन के बाद ऊपर से खाद की पतली परत भी डाल सकते हैं। अगर आप पौधा लगा रहें हैं तो उसको सावधानी से पॉलीबैग से निकालकर लगाए। ध्यान रहे पौधा लगाते समय जड़ें टुटनी नहीं चाहियें। 

देखरेख कैसे करें ( How to take care )

सूरजमुखी को अपने विकास काल में पानी की अधिक आवश्यकता होती है। बीजों के अंकुरण के समय अपने सूरजमुखी को सप्ताह में कम से कम 7 से 8 लीटर पानी दें। यदि आप उनके बढ़ते चरण के दौरान पर्याप्त पानी नहीं देते हैं तो सूरजमुखी के पतले और कमजोर तने होंगे, जो कि भारी फूल को ऊपर रखने में असमर्थ होंगे। आपको अधिक पानी भी नहीं देना है अन्यथा बीज और पौधे की जड़ें सड़ने लगेंगी। सूरजमुखी के बीज 7 से 10 दिनों में छोटे अंकुरों में विकसित होने लगते हैं। इसे नियमित रूप से पानी दें और सुनिश्चित करें कि मिटटी नम है। यदि आपके सूरजमुखी बाहर हैं, तो आपको उन्हें पक्षियों से बचाने के लिए जालीदार टोकरी या जाल से ढकना पड़ सकता है। 

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More useful 10 Tips For Gardening Beginners .

1. सही स्थान का चयन करें ( Pick the right spot )

Selecting the Best Location for a Garden | DIY

हमेशा बड़ी जीत को छोटे – छोटे कदम उठाने से ही जीता जा सकता है ठीक उसी प्रकार हमें अपने बगीचे की शुरुआत भी एक छोटी जगह से करनी चाहिए। आप यह भली – भांति जाँच परख लें कि आपने बागवानी के लिए जो स्थान चुना है वहां 5 – 6 घंटे की धूप आती हो, हवा का आना जाना ठीक हो और आपके द्वारा चुनी हुयी जगह पर पानी का ठहराव नहीं होना चाहिए। 

2. बगीचे का चयन ( Garden selection )

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एक बार जब आप अपने बगीचे के लिए सही जगह का चयन कर लेते हैं तो बागवानी की आपकी यात्रा का अगला चरण यह चुनना है की आपको किस प्रकार का बगीचा चाहिए। क्या आप फूलों से भरा रंग – बिरंगा बगीचा लगाना चाहते हैं, क्या आप मीठे फलों से लदे पौधों का बगीचा लगाना चाहते हैं या फिर आप पौष्टिक तत्वों से भरी सब्जियों का बगीचा लगाना चाहते हैं। कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या चुनते हैं। अपने पूरे बगीचे की तस्वीर को चित्रित करने के लिए एक छोटा कदम जरूर उठायें। 

3. मिट्टी पर काम करें ( Work on Soil )

Leveling Work, Soil Piles and Stock Footage Video (100% Royalty-free)  1037542334 | Shutterstock

पौधे हमेशा पोषक तत्वों से भरी मिटटी से लाभान्वित होते हैं। बगीचे के लिए चुने हुए स्थान की मिटटी की जाँच करें। मिटटी भुरभुरी होनी चाहिए क्योंकि कठोर मिटटी में पौधों की जड़ों को बढ़ने में मुश्किल होती है। अगर मिटटी में कंकड़ – पत्थर मौजूद हों तो उन्हें निकाल दें। मिटटी की गुणवत्ता बढ़ाना या सुधार करना उतना कठिन काम नहीं है जितना कि आप सोंचते हैं। आप मिटटी में जैविक खाद का उपयोग कर सकते हैं। 

4. बेसिक गार्डनिंग टूल्स ( Basic Gardening Tools )

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  • प्रूनिंग कैंची :- यह एक ऐसा उपकरण है जो हर गार्डनर के पास होना चाहिए। यह उपकरण पौधों और झांडियों को काटने में उपयोग आता है। साथ ही साथ पौधों के मृत भाग या सूखी टहनियों को काटकर पौधों को स्वस्थ बनाये रखते हैं। 
  • खुर्पी या छोटी कुदाल :- आप इन उपकरणों की सहायता से मिटटी की खुदाई कर सकते हैं। पौधे लगाने के लिए गड्डे खोद सकते हैं। निराई – गुड़ाई भी कर सकते हैं। 
  • पानी देने के लिए उपकरण :- इस उपकरण की सहायता से आप रोज सुबह – शाम अपने प्यारे पौधों को पानी दे सकते हैं। 

5. अपने पौधे चुने ( Choose your plants )

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यह बागवानी का सबसे रोमांचक हिस्सा होता है – अपने पौधों को चुनना। अब आप अपने पौधों को कैसे चुनेंगे। आप अपने आस – पड़ोस के बगीचों को देख सकते हैं कि उन बगीचों में किस तरह के पौधे लगे हैं या कौन से पौधे उन बगीचों की शोभा को अधिक बढ़ा रहे हैं। आप उन बगीचों के मालिकों से सलाह ले सकते हैं या फिर आप किसी ऐसे व्यक्ति से सलाह ले सकते हैं जो पौधों के बारे में अच्छी जानकारी रखता हो। यह चीज आपके काम को आसान बना देती है। 

6. पौधों के लिए सही स्थान चुनना ( Choosing the Right Location for Plants )

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बागवानी का यह सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। आप अपने बगीचे को पौधों की कटेगरी के हिसाब से उतने हिस्से में बाँट लें और तय कर ले कि एक हिस्से में एक ही प्रकार के पौधे लगाने हैं। आप बड़े पौधों को पीछे और छोटे पौधों को आगे लगाए। कुछ लोग बिना सोचे – विचारे काम करते हैं और बगीचे को खिचड़ी बना देते हैं। जो आपको बिल्कुल नहीं करना है। 

7. गार्डनिंग बेड्स ( Garden beds )

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जब आप यह तय कर लें कि किस हिस्से में कौन – कौन से पौधे लगाने हैं तो आप उन हिस्सों को ईंटों या टाइल्स की सहायता से एक रूप दे दें। 1 से 1.5 फीट के गार्डेन बेड्स बना सकते हैं और ये उठे हुए बेड्स आकर्षक लगने के साथ – साथ आपके बगीचे में काम करना भी आसान बनाते हैं।

8. पौधों को लगाने का सही तरीका( Right way to plant) 

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पौधों को बगीचे में सही ढंग से लगाना चाहिए। अगर आप पौधे लगा रहे हैं तो उनके बीच में 1 से 2 फीट का गैप जरूर रखें और अगर आप बीच लगा रहें हैं तो आप उन बीजों को 6 – 6 इंच की दूरी पर लगाए। 

9. अपने पौधों को सही ढ़ग से पानी दें ( Water your plants properly )

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पौधे या बीज लगाने के बाद अब आपको उन्हें पानी देने की जरुरत है। आप जब भी अपने पौधों को पानी दें तो धीरे – धीरे देना चाहिए ताकि पानी मिटटी को 3 – 4 इंच अंदर तक नम कर सके। लेकिन ध्यान रहे आपको अपने पौधों में ओवेरवाटेरिंग नहीं करनी है। जल – जमाव पौधों को नुकसान पहुँचा सकता है। गर्मियों में आपको सुबह – शाम दोनों समय पानी डालना चाहिए। 

10. जैविक उर्वरक दें ( Give organic fertilizer )

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आपको हमेशा अपने पौधों को जैविक उर्वरक देना चाहिए। कभी भी रासायनिक खाद का इस्तेमाल न करें। आप जैविक उर्वरक को अपने घर से निकलने वाले कूड़े – कचरे, छिलके या चाय की पत्ती की से बना सकते हैं और अपने बगीचे में उपयोग कर सकते हैं। आप अपने बगीचे में केंचुओं को भी डाल सकते हैं। केचुएँ मिटटी को उपजाऊ बनाने वाली नेचुरल मशीन होते हैं। इनकी सहायता से आपके पौधे अच्छी ग्रोथ करेंगे।