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लौंग की संम्पूर्ण जानकारी।

लौंग के विविध नाम : 

लवंग, लवंगक, देवकुसुम, प्रसून, शेखर, श्रीसंज्ञ श्रीपुष्प तीक्ष्ण तीक्षणपुष्प 

लौंग के सामान्य परिचय : 

हमारे देश में – सैग -सब्जी और विभिन्न प्रकार के भोजनों में कुछ विशेष वस्तु डाली जाती है जिन्हें ‘मसाला’ कहते हैं।  नमक, मिर्च, हल्दी, सूखा धनिया, जीरा, मेथी, अजवायन आदि मसाला माने जाते हैं।  ें मसलों का प्रयोग करने पर ही विभिन्न प्रकार की खाघ -सामग्रियाँ और भी अधिक स्वादिष्ट बन पति हैं।  ‘लौंग’ भी एक प्रकार का मसाला है। 

लौंग के उत्पत्ति एवं प्राप्ति -स्थान : 

दक्षिण -भारत में मलाबार -तट और केरल के क्षेत्रों में इस प्रकार की जलवायु है कि -वहाँ पर विभिन्न प्रकार के मसाले प्रचुर मात्रा में उत्पन्न होते हैं।  लौंग भी वहीं पर उत्पन्न होती है।  इसके अतिरिक्त वहाँ पर कालीमिर्च, इलायची, जाय फल, जावित्री, दालचीनी, सुपाड़ी आदि भी बहुतायत से उत्पन्न होते हैं।  

लौंग के स्वरूप :

 लौंग -बहुत ही छोटी (एक सेंटीमीटर से भी छोटी )होती है।  इसके एक सिरे पर पाँच पंखुड़ियाँ होती हैं और ें पंखुड़ियों के बिच में एक उभरा हुआ पठार जैसा होता है।  इनके पीछे एक बहुत छोटी -सी डण्डी होती है।  इसका रंग कला -भूरा होता है।  यह बाजार में -पंसारी, परचून की दुकान पर आसानी से मिल जाती है।   

वास्तव में, लौंग -एक लता का पुष्प है।  यह लता अपनी कमनीयता, शोभा और सुगन्ध के लिये प्रसिद्ध है -इसलिये विभिन्न कवियों ने अपने काव्यों में इसका उल्लेख किया है।  उदाहरण के लिये -जयदेव ने अपने काव्य ‘गीत गोविन्द’ में लिखा है – ‘ललित लवंग लते परिशीलन , कोमल मलय समीरे’।

लौंग के गुण -धर्म : 

 यह गर्म, तीक्ष्ण होती है।  लौंग में कीटाणु -नाशक शक्ति होती है।  लौंग का तेल निकालकर उसका विभिन्न प्रकार से प्रयोग किया जाता है लेकिन यह तेल तीक्ष्ण सुगन्ध वाला और उड़नशील होता है, अतः खुला नहीं छोड़ना चाहिये। 

लौंग के औषधीय प्रयोग : 

 जैसा कि हमने पिछली पंक्तियों में बताया है कि –लौंग एक प्रकार का मसाला है।  इसलिये इसका सबसे अधिक प्रयोग -दैनिक जीवन में विभिन्न प्रकार की सब्जियाँ, दालें सांभर आदि बनाने में किया जाता है। इसके अतिरिक्त, जबकि कुछ विशेष मसलों को मिलाकर पीस लिया जाता है तो -उनके सम्मिलित रूप को ‘गरम’ -मसाला’ कहते हैं  इस ‘गरम् मसाला’ में ‘लौंग’ को भी मिलाया जाता है।  

अनेक लोग तो ‘लौंग’ की यज्ञ में आहुति भी देते हैं।  विशेषकर वर्ष में दो बार आने वाले ‘नवरात्रों’ (नवदुर्गा )में घर -घर में जो यज्ञ किये जाते हैं, उनमें तो  ‘लौंग’ की आहुति अवश्य ही दी जाती है।  इसके अतिरिक्त, पैन (बीड़ा)बनाते समय भी उसमें लौंग डाली जाती है क्योंकि इससे मुख की शुद्धि होती है।  

दंतपीड़ा -नाशक प्रयोग –

लौंग चबाने से दाँत का दर्द दूर हो जाता है।  इसके अतिरिक्त -लौंग का तेल लगाने से दाँतों और मसूढ़ों की समस्त व्याधियाँ दूर हो जाती हैं।  यदि आप कोई सूखा मंजन करते हों तो उसमें लौंग पीसकर अवश्य मिला दें -करने से उसकी गुणवत्ता बढ़ जायेगी। 

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