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जानें Taiwan Pink Guava की खेती, खासियत और फायदे के बारे में।

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हमारे देश भारत में युवा पीढ़ी अधिकतर डॉक्टर या इंजीनियर बनते हैं और वर्तमान में अब युवाओं की रूचि खेती बाड़ी की तरफ भी जाने लगा है। इसीलिए बहुत से युवा अब किसान बन रहें हैं। बता दें इस काम को करके वह लाखों रुपये तक की कमाई भी कर रहे हैं। ऐसे ही सफल किसानों की बहुत लम्बी सूचि है। जिन्होंने ताइवान पिंक अमरुद की जैविक और आधुनिक खेती करके समाज में एक ऐसी मिसाल कायम की है जो अन्य लोगों के लिए भी काफी उपयोगी साबित हो सकती है। आज के इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि उन्होंने किस तरह ताइवान पिंक अमरुद की खेती की।

कैसे तैयार होते हैं पौधे 

ताइवान अमरुद के पौधे जितेंद्र बैंगलोर में स्थित टिश्यू कल्चर से तैयार करवाये जाते है। जहाँ पर इन्हे बनवाने के लिए कम से कम 6 माह पहले ही उस डिपार्टमेंट को बताना होता है ताकि समय पर पौधे मिल सकें। यहाँ तकरीबन हर साल 40 हजार पौधे तैयार करवाये जाते हैं। इस सब में तकरीबन एक से डेढ़ लाख तक खर्चा आता है। 

फल 6 महीनों में आने लगते हैं। 

यहां आपको जानकारी के लिए बता दें कि अगर 1 एकड़ जमीन में ताइवानी अमरुद के पौधे लगाए जायेंगे तो उसमें लगभग 800 पौधे लग जाते हैं। यह पौधे तकरीबन 6 महीने से लेकर एक साल के अंदर ही फल देना शुरू कर देते हैं। बता दें कि पहले वर्ष में ही हर पौधा 8 से 10 किलो तक फल देता है और इस प्रकार पहले ही साल में ही एक एकड़ जमीन पर 8 से 10 टन फलों का उत्पादन हो जाता है। इसी प्रकार दूसरे साल में प्रत्येक पौधे 20 से 25 किलो तक फल देते हैं जिसके कारण उत्पादन 25 टन पहुँच जाता है। 

खेती की तैयार और समय 

इस ताइवान अमरुद की खेती करने के लिए सर्वप्रथम खेत की अच्छी तरह से गहरी जुताई करनी चाहिए। उसके बाद खेत में पकी हुई गोबर की खाद डालने के आलावा उसमें बायो प्रोडक्ट्स भी डालें। फिर अपने ट्रैक्टर से एक पाल बनाये और इस बात का विशेषकर ध्यान रखें कि हर कतार से 9 फ़ीट तक की दूरी होना अनिवार्य है। इसी प्रकार से एक पौधे की दूरी दूसरे पौधे से 5 फीट तक होना आवश्यक है। इसके आलावा पौधे को बोने की गहराई आधा फ़ीट तक होनी चाहिए। साथ ही यह भी जान लीजिये की अगर आप ताइवान अमरुद के पौधे अपने खेतों में लगाना चाहते हैं, तो उसके लिए सबसे उचित समय जुलाई और अगस्त  का महीना है जिस समय बरसात का मौसम होता है। 

सिंचाई 

बता दें कि इसकी सिंचाई गर्मी के दिनों में 5 से 7 दिन में लगभग डेढ़ – दो घंटे तक करनी चाहिए। लेकिन आम दिनों में इसकी रेगुलर सिंचाई की जाती है। 

कब तक आते हैं फल 

यहां जानकारी के लिए बता दें कि ताइवान अमरुद की खेती में कम से कम 3 बार फल लगते हैं, परन्तु वह इसकी फसल को केवल नवम्बर के महीने में ही लेते हैं। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि उनकी फसल में जुलाई तक फल आ जाते हैं जो कि नवम्बर तक पाक जाते हैं और वह आगे फरवरी या मार्च तक चलता है। 

कीटों से बचाव 

अपने फलों को कीटों से बचाने और मक्खी नियंत्रण करने के लिए जितेंद्र फोरमैन ट्रैप और स्टिकी ट्रैप का इस्तेमाल करते हैं। फोरमैन ट्रैप से एक प्रकार की गंध निकलती है जो मक्खियों को आकर्षित करती है, और स्टिकी ट्रैप में एक चिपचिपा सा पदार्थ लगा हुआ होता है जिससे अगर कीट उनसे चिपकते हैं तो वह फिर मर जाता है। 

ताइवान अमरुद की खासियत 

1. यह फल अगर आप तोड़ कर रख लेंगे तो 8 दिनों तक भी खराब नहीं होता है। 

2. ताइवान अमरुद की खेती से 6 महीने से 12 महीने पश्चात ही फल मिलने लग जाते हैं। 

3. यह खाने में बहुत स्वादिष्ट होता है और इसका रंग अंदर से हल्का गुलाबी होता है। 

4. साथ ही बता दें की इसका वजन 300 ग्राम से लेकर 800 ग्राम तक हो जाता है। 

5. बरसात के मौसम में दूसरे अन्य फल पकने लगते हैं लेकिन बारिश होने पर भी यह फल पकता नहीं है। 

आमदनी कितनी होती है। 

मौजूदा समय में ताइवानी अमरुद की मांग दिल्ली के आलावा उत्तर प्रदेश और अन्य दूसरे राज्यों में भी काफी अधिक बढ़ गयी है। सीजन में यह 40 रुपये किलो के भाव से बिकता है। लेकिन जब इसका सीजन चला जाता है तो फिर यह 25 रुपये किलो से 30 रुपये किलो के भाव से बिकता है।

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जाने क्यों लगाया जाता है घरों में गिलोय का पौधा, होता है शुभ।

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कोरोना काल में रोग प्रति-रोधक क्षमता बढ़ाने के लिए औषधीय पौधे का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है। ‘एनबीटी जड़ी-बूटी ‘ अभियान में ऐसे औषधीय पौधों की पूरी जानकारी मिलेगी, ताकि आप इनका आसानी से इस्तेमाल कर सकें और अपनी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा सकें। इसके तहत आज गिलोय से जुड़ी हर जानकारी आपको मिलने वाली है। 

गिलोय, एक औषधीय पौधा है जो इन दिनों कोरोना की वजह से ज्यादा चर्चा में है और लोग इसका इस्तेमाल भी अभी खूब कर रहे हैं। इम्यून सिस्टम को स्ट्रांग करने और लिवर से जुड़ी बीमारियों में काफी असरदार गिलोय के बारे में हर घर में बाते हो रही हैं। जब से कोरोना का संक्रमण फैला है और इससे बचाव के लिए काढ़ा भी लाभकारी बताया गया है, तब से गिलोय का सेवन हर कोई कर रहा है। न केवल आयुष मंत्रालय बल्कि पीएम मोदी जी ने भी काढ़ा पीने की अपील की है और गिलोय का काढ़ा में इस्तेमाल भी खूब हो रहा है। इसीलिए आज हम आपको इस मेडिसिनल प्लांट से जुड़ी हर जानकारी उपलब्ध करा रहे हैं। आप अपने किचन गार्डन और बालकनी के गमले में इसे लगा सकते हैं और रोजगार की इच्छा रखते हैं तो इसकी खेती भी कर सकते हैं। 

गिलोय क्या है। ( What is Giloy )

गिलोय का वानस्पतिक नाम टोनोस्पोरा कार्डियोफेलिया है, जिसे आयुर्वेद में गिलोय के नाम से जाना जाता है। संस्कृत में इसे अमृता कहा जाता है, क्योंकि यह कभी नहीं मरता है। गिलोय भारतीय मूल की बहुवर्षीय बेल है। इसके बीज काली मिर्च की तरह होते हैं। इसे मई और जून में बीज या कटिंग के रूप में बोया जा सकता है। मानसून के वक्त यह तेजी बढ़ता है। इसे बहुत धूप की जरुरत नहीं होती है। कई प्रदेशों में इसकी खेती होती है।

गिलोय का इस्तेमाल (use of Giloy )

कोविड- 19 से बचाव के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए गिलोय का इस्तेमाल हो रहा है। लोग पाउडर, जूस और काढ़े के रूप में इसका इस्तेमाल कर रहें हैं। इसके पत्ते और तना दोनों का इस्तेमाल किया जाता है। इसे घर के गमलों, किचन गार्डन, टेरेस गार्डन और बगीचे में आसानी से लगाया जा सकता है। इन सभी जगहों पर गिलोय की बेल आसानी से फैल सकती है। इसका तना ऊँचा चढ़ता है तथा हवा से नमी लेता है। फसल के तौर पर इसे तैयार होने में करीब 10 महीने लगते हैं। एक हेक्टेयर में इसकी खेती कर 60 से 70 हजार का मुनाफा हो सकता है। 

गुणों की खान है गिलोय 

  • गिलोय की खासियत के कारण इसके कई नाम हैं। मसलन, अमृता, गुडची, गुणबेल
  • यह एंटी बैक्टीरियल, एंटी एलर्जिक, एंटी डायबिटीज़ और दर्द निवारक होता है। 
  • इसके तने को जूस, पाउडर, टेबलेट,काढ़े या अमृतारिष्ट के रूप में लेने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। 
  • जिन लोगो की इम्युनिटी कम हो, उन्हें गिलोय का सेवन करने की सलाह दी जाती है। 
  • यह ऑटो इम्यून डिसार्डर, बुखार, हाथ पैर की जलन, शरीर दर्द, डायबिटीज, लाइफ स्टाइल डिसार्डर और पेशाब की जुड़ी समस्याएँ दूर करने में काम आती हैं। 
  • गिलोय का रोजाना इस्तेमाल बीमारियों से दूर रखता है। कोई बीमारी हो भी जाये तो इलाज के दौरान भी इसका सेवन ज्यादा प्रभावकारी होता है। 

फाइबर और प्रोटीन भी

गिलोय में 15.8 % फाइबर होता है। इसके साथ 4.2 से 11.2 % तक प्रोटीन, 60 फीसदी कार्बोहाइड्रेड और 3 फीसदी से कम फैट मिलता है। इसके आलावा पोटैशियम, आयरन और कैल्शियम भी होते हैं।

कैसे करें इस्तेमाल 

  • आयुर्वेद के मुताबिक, गिलोय के तने का इस्तेमाल करना चाहिए। इसके लिए 5 से 6 इंच लम्बा और अंगूठे के बराबर मोटा तना लें। पानी मिलाकर इसे कूटें और रस निकल लें। इस रस को रोजाना 10 से 20 मिली इस्तेमाल किया जा सकता है। 
  • काढ़े के इस्तेमाल के लिए तने को चार गुने पानी लेकर उबाल लें। काढ़ा आधा या चौथाई रह जाये तो उसे छान कर पी लें। 
  • पाउडर के तौर पर इस्तेमाल के लिए गिलोय के तने छाँव में सूखा लें। फिर कूट लें। इसके बाद मिक्सर में पाउडर बना लें और कपड़े से छान लें। 
  • बाजार में गिलोय की गोलियाँ भी मिलती हैं। वैद्य या चिकित्सक की सलाह पर इनका सेवन कर सकते हैं। 
  • बाजार में अमृतारिष्ट भी आता है। इसे भोजन के बाद आधा कप पानी के साथ ले सकते हैं। इसके अलावा अमृतादि गुग्गुल का भी फार्मुलेशन मिलता है। 

लागत 15 से 20 हजार

गिलोय को अमूमन फलों के बाग में उगाया जाता है। खेतों में उगाने पर लागत थोड़ी बढ़ जाती है। सहफसली के तौर पर एक हेक्टेयर में 15 से 20 हजार और खेत में 30 से 40 हजार की लागत लगती है। एक हेक्टेयर खेत में करीब 2500 कटिंग की जरुरत पड़ती है। इसकी कटिंग 3 मीटर की दूरी पर लगनी चाहिए और गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट का ही इस्तेमाल करना चाहिए। मई जून में कटिंग लगाने के बाद फरवरी मार्च में इसके तने इस्तेमाल के लायक हो जाते हैं। एक हेक्टेयर में 10 से 8 कुन्टल तना मिलता है। इसकी कीमत 23 से 30 रुपये प्रति किलोग्राम होती है। दिल्ली की नर्सरी में आमतौर पर गिलोय उगाया जाता है। दिल्ली सरकार की नर्सरी में गिलोय निःशुल्क लिया जा सकता है जबकि आमतौर पर गिलोय की बेल गमले में लगाने के लिए लगभग 30 से 50 रुपये में मिल जाती है। कोरोना काल में खुदरा मार्केट में यह कहीं-कहीं 100 रुपये तक भी बिक रहा है। इसकी मांग लगभग दो गुनी हो चुकी है।

बीज बोएं तो 2 से 3 इंच का फासला रखें

गिलोय के बीज एक घंटा पानी में भिगो दें। थाली जैसे किसी बर्तन में, मिटटी, खाद और मौरंग के मिश्रण की 2 से 3 इंच मोटी परत लगायें। बीज बोयें और 2 से 3 इंच का फासला रखें।  फिर हल्के पानी का छिड़काव कर दें। पौधा निकल आये तो दूसरे गमले में लगा दें।

कटिंग वही रोपें, जहाँ गांठ हो 

कटिंग रोपने के लिए पेंसिल के बराबर मोठे तने का इस्तेमाल करें, जिसमें गांठें हो। एक तने की लम्बाई एक बालिश तक लें। ऊपर से तिरछा और नीचे से गोल रखें। कटिंग को गोल वाले हिस्से को जमीन, गमले या थैले में दबा दें। गांठ से नए कल्ले निकल आएंगे। 

गिलोय सत्व से भी अच्छी कमाई 

बाजार में गिलोय सत्व की भी खूब डिमांड है। ऐसे में यह भी कमाई का अच्छा जरिया बन सकता है। सत्व निकालने के 20 किलो गिलोय का तना इकट्ठा करें। इसके छोटे-छोटे टुकड़े करें। एक बार पानी में साफ कर दुबारा इसका पानी निकाल लें। छाने गए पानी को रात भर छोड़ दें। नीचे स्टार्च जमा हो जायेगा। अगले दिन ऊपर का पानी हटा दें। फिर नीचे जमा सत्व को सूखा लें। लगभग 5 किलो गिलोय में 100 ग्राम सत्व निकलता है। बाजार में इसकी कीमत करीब 8000 रुपये किलो तक है।   

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जानें Soil Booster का उपयोग और फायदे।

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Soil Booster क्या है। (What is Soil Booster)

Soil Booster एक आर्गेनिक फ़र्टिलाइज़र होता है। यह पूरी तरह केमिकल फ्री (Chemical Free ) होता है। Soil Booster को सभी प्रकार की मिटटी में use किया जा सकता है। 

Soil Booster को 

नीम खली 

सरसों खली 

बोनेमिक्स 

कोको पिट 

वर्मी कम्पोस्ट 

Chicken Manure 

आदि गुणकारी चीजों से मिलाकर बनाया जाता है। 

प्रयोग/use 

बड़े गमले में 100 ग्राम व छोटे गमले में 50 ग्राम प्रति पौधे व जमीन में पौधों की उम्र के हिसाब से प्रयोग करना चाहिए। Soil Booster को मिटटी में मिलाकर तुरन्त पानी देना चाहिए ताकि Soil Booster मिटटी में अच्छी तरह मिल जाये।

फायदे/Benefits 

1. Soil Booster मिटटी की उर्वरा शक्ति को बढ़ा देता है। 

2. Soil Booster मिटटी की प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ा देता है। 

3. Soil Booster मिलाने से पौधों की ग्रोथ अच्छी तरह होती है। 

4. Soil Booster को मिटटी में मिलाने से मिटटी के रोग खत्म हो जाते हैं। 

5. Soil Booster पौधों में लगने वाले रोगों से पौधे की रक्षा करता है। 

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अब Rose King से होगी गुलाबों के फूलों की बरसात।

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Rose King क्या है। ( What is Rose King )

Rose King एक आर्गेनिक फर्टिलाइज़र है। Rose King को DAP, वर्मी कम्पोस्ट, बूनमिल और अन्य सामग्री को मिलाकर तैयार किया जाता है। Rose King को आप गुलाब के साथ-साथ अन्य सभी प्रकार के फूलों व पौधों के विकास के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं। 

प्रयोग विधि ( Use )

Rose King का इस्तेमाल बहुत ही आसान है। Rose King के 2 चम्मच प्रति पौधा, एक चम्मच प्रति छोटा पौधा तथा कांट – छांट के समय भी डाल सकते हैं। जब पौधे में नयी पत्तियाँ निकल रहीं हों तब Rose King का इस्तेमाल करना बहुत ही फायदेमंद रहता है। Rose King को मिटटी में मिलाकर तुरंत पानी दें ताकि मिटटी में मिलकर अधिक गुणकारी हो सके। Rose King को 15 दिनों की अवधि पर फिर डाला जा सकता है। 

फायदे ( Benefits )

1. Rose King को मिटटी में मिलाने से मिटटी के रोग ख़त्म हो जाते है। हानिकारक कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। 

2. Rose King के प्रयोग से पौधा और उसकी पत्तियां चमक जाती हैं। 

3. Rose King पौधे की प्रति-रोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायक होता है। 

4. Rose King के प्रयोग से पौधा कीटाणु मुक्त होकर अधिक फल-फूल देता है। 

5. Rose King के प्रयोग से पौधा मजबूत और टिकाऊ हो जाता है।  

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नीम खली के 10 बेहतरीन फायदे और प्रयोग विधि जानें।

नीम खली क्या है। ( What is Neem Khali )

Neem Khali

नीम खली एक आर्गेनिक फर्टिलाइज़र होती है। जो आपको कही भी आसानी से मिल जाएगी। नीम खली ऐसी फर्टिलाइज़र है, जिसमे NPK, नाइट्रोज़न, फॉस्फोरस, पोटैशियम, ज़िंक, कॉपर, सल्फर,कैल्शियम, मैग्नीशियम, ऑयरन और माइक्रो नुट्रिसिएंश पाए जाते हैं। नीम खली में NPK के आलावा

नाइट्रोज़न             5 %

फॉस्फोरस            1 %

पोटैशियम             2 %

कैल्शियम             3 %

ज़िंक                    60 PPM ( PARTS PER MILLION )

कॉपर                   20 PPM

 सल्फर                  3 %

मैग्नीशियम             1 %

ऑयरन                 1200 PPM 

मात्रा में पाये जाते हैं 

उपयोग/Use

बड़े गमले में 100 ग्राम व छोटे गमले में 50 ग्राम प्रति पौधे व जमीन में पौधों की उम्र के हिसाब से प्रयोग कर पौधों के तने से 2 व 3 इंच की दूरी छोड़कर हल्की गोड़ाई करने से नीम खली मिटटी में अच्छी तरह से मिल जाता है। इसके उपरान्त हल्के पानी का प्रयोग करें। 

फायदे/Benefits  

 1. नीम खली के प्रयोग से पौधों की पत्तियों एवं तनों में चमक आती है। 

2. इसके प्रयोग से पौधे कीटाणु मुक्त होकर फल – फूल देने लगते हैं। 

3. यह पौधे के विकास में अत्यंत उपयोगी है। 

4. नीम खली के प्रयोग से पौधे मजबूत और टिकाऊ होते हैं तथा बहुत दिनों तक जीवित रहते हैं।

5.  नीम खली को शोभाकार पौधों के अतिरिक्त खेतों में भी डाला जा सकता है।

6. नीम खली के प्रयोग से पौधों में चीटियाँ एवं फन्गस नहीं लगते हैं। 

7. नीम खली के प्रयोग से पौधों में एमिनो एसिड का लेवल बढ़ता है। जो क्लोरोफिल का लेवल बढ़ाती है। जिस वजह से पौधा हरा भरा दिखता है।

8. नीम खली के प्रयोग से जमीन में उगने वाला घास-फूस व तिनके खत्म हो जाते हैं।

9. नीम खली जमीन के रोगों को खत्म कर उसकी फर्टिलिटी को बढाती है और बंजर भूमि को भी उपजाऊ बना देती है।

10. नीम खली के प्रयोग से पौधों की जड़ में जो गाँठ वाली बीमारी हो जाती है वो नहीं होती है और गाँठो को बढ़ाने वाले कीटाणुओं को नष्ट कर देती है।  

Neem Khali
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जानें Taiwan Red Lady 786 Papaya की खेती कैसे की जाती है।

इस महीने कर सकते हैं पपीते की खेती, मिलेगी बढ़िया पैदावार
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Taiwan Red Lady 786 Papaya की सबसे खास बात यह है कि इसकी फसल बहुत कम समय में ज्यादा मुनाफा देती है। आप इसकी खेती करके एक एकड़ में 4 लाख तक की कमाई कर सकते हैं। 

ऐसे करें खेती। …. 

पपीते की खेती के लिहाज से भारत एक उपयुक्त जलवायु वाला देश है। इसे अधिकतम 38 से 44 डिग्री सेल्सियस तक तापमान होने पर भी उगाया जा सकते हैं। ऐसा तापमान लगभग पुरे भारत में पाया जाता है। 

पपीता फार्मिंग के लिए जलवायु या उचित वातावरण। …. 

पपीते की खेती के लिए न्यूनतम तापमान 5 डिग्री होना चाहिए। मतलब आप इसे पहाड़ों से सटे इलाकों में भी आसानी से उगा सकते हैं। इस लिहाज से आप भारत के किसी भी कोने में रहते हो तो आप पपीते की खेती कर सकते हो। पिछले कुछ वर्षों में पपीते की खेती की तरफ किसानों का रुझान बढ़ रहा है।

पैदावार की दृष्टि से यह हमारे देश का पाँचवाँ लोकप्रिय फल है। 

यह बारहों महीने होता है, लेकिन यह फरवरी-मार्च से मई से अक्टूबर के मध्य विशेष रूप से पैदा होता है, क्योंकि इसकी सफल खेती के लिए 10 डिग्री से. से 40 डिग्री से. तापमान उपयुक्त है। 
पपीता विटामिन A और C का अच्छा स्रोत होता है। 

विटामिन के साथ पपीते में पपेन नामक एंजाइम पाया जाता है जो शरीर की अतरिक्त चर्बी को कम करता है।

स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होने के साथ ही पपीता सबसे कम दिनों में तैयार होने वाले फलों में से एक है जो कच्चे और पके दोनों ही रूप में उपयोगी है। 

इसका आर्थिक महत्व ताजे फलों के अतिरिक्त पपेन के कारण भी है, जिसका प्रयोग बहुत से औद्योगिक कामों ( जैसे कि फ़ूड प्रोसेसिंग, कपडा उद्योग आदि ) में होता है। 

पपीता फार्मिंग के लिए जमीन/भूमि 

बलुई दोमट मिट्टी में मिलेगी अच्छी उपज पपीते की खेती के लिए बलुई दोमट प्रकार की मिट्टी सर्वोत्तम है। पपीते के खेतों में यह ध्यान रखना होगा की जल का भराव न होने पाये। पपीते के लिहाज से मिट्टी की PH मान 6 से 7 तक होना चाहिए। 

बीज या पौधा लगाने से पहले भूमि की ठीक प्रकार से गहरी जुताई के साथ खर-पतवार को निकाल देना जरुरी होता है। 

किस्मों का चयन 

रेड लेडी 786 
लाल परी – यूनाइटेड जेनेटिक्स (united genetics )
विनायक – वी एन आर सीड्स ( VNR Seeds )
सपना – ईस्ट वेस्ट इंटरनेशनल ( East West International )

इन संकर बीजों की पैकिंग का आकार 50 बीज, 1 ग्राम, 5 ग्राम, 10 ग्राम, 500 बीज में होता है। उपरोक्त सभी वेराइटी पर्थेनोकार्पिक हैं अतः नर पौधों की कोई संभावना नहीं होगी। सभी पौधे मादा होते हैं और लगभग 1 क्विंटल प्रति पौधा होता है। 

अपनी जलवायु के हिसाब से करें किस्मों का चयन पपीते के किस्मों का चुनाव खेती के उद्देश्य के अनुसार करना जैसे कि अगर औद्योगिक प्रयोग के लिए वे किस्में जिनसे पपेन निकाला जाता है, पपेन किस्में कहलाती हैं। इस वर्ग की महत्वपूर्ण किस्में O – 2 AC O – 5  और C.  O – 7 है। 

इसके साथ दूसरा महत्वपूर्ण वर्ग है फूड वेराइटी जिन्हे हम अपने घरों में सब्जी के रूप में या काट कर खाते हैं। इसके अंतर्गत परम्परागत पपीते की किस्में ( जैसे बड़वानी लाल, पीला वाशिंगटन, मधुबिंदु, कुर्ग हनीड्यू, को – 1 एंड 3 ) और नयी संकर किस्में जो उभयलिंगी होती हैं।

For Example :- पूसा नन्हा, पूसा डिलिशियस, CO – 7, पूसा मैजेस्टी आदि ) आती हैं। 

नर्सरी क्यारियों में लगाएं

एक एकड़ के लिए 30 ग्राम बीज काफी हैं। एक एकड़ में तकरीबन 1200 पौधे ठीक रहते हैं।

उन्नत किस्म के चयन के बाद बीजों को क्यारियों में नर्सरी बनाने के लिए बोना चाहिए, जो जमीं सतह से 15 सेंटीमीटर ऊँची व 1 मीटर चौड़ी तथा जिनमें गोबर की खाद, कम्पोस्ट या वर्मी कम्पोस्ट को अच्छी मात्रा में मिलाया गया हो।

पौधे को जड़ गलन रोग से बचाने के लिए क्यारियों को फॉर्मलीन के 1 : 40 के घोल से उपचारित करके बोना चाहिए। 1/2′ गहराई पर 3′ X 6′ के फासले पर पंक्ति बनाकर उपचारित बीज बोयें और फिर 1/2′ गोबर की खाद से ढक कर लकड़ी से दबा दें ताकि बीज ऊपर न रह जाएँ।

नमी बनाये रखने के लिए (Mulching)

नमी बनाये रखने के लिए क्यारियों को सूखी घास या पुआल से ढकना एक सही तरीका है।

सुबह शाम पानी देते रहने से, लगभग 15 – 20 दिन भीतर बीज जम( Germination ) जाते हैं। पौधे की ऊंचाई जब 15 सेंटीमीटर हो तो साथ ही 0.3 % फफूंदीनाशक घोल का छिड़काव कर देना चाहिए। 

जब इन पौधों में 4 – 5 पत्तियाँ और ऊँचाई 25 CM हो जाये तो 2 महीने बाद खेत में प्रतिरोपण करना चाहिए, प्रतिरोपण से पहले गमलों को धूप में रखना चाहिए। 

पौधों के रोपण के लिए खेत को अच्छी तरह तैयार करके 2 x 2 मीटर की दूरी पर 50 x 50 x 50 सेमी आकार के गड्डे मई के महीने में खोद कर 15 दिनों के लिए खुले छोड़ देने चाहिए। अधिक तापमान व धूप, मिट्टी में उपस्थित हानिकारक कीड़े-मकोड़े, रोगाणु इत्यादि नष्ट कर देती है।

पौधे लगाने के बाद गड्डे को मिट्टी और गोबर की खाद 50 ग्राम एल्ड्रिन (कीटनाशक ) मिलाकर इस प्रकार भरना चाहिए कि वह जमीन से 10 – 15 सेमी ऊँचा रहे। इससे दीमक का प्रकोप नहीं रहता। 
रोजाना दोपहर के बाद हलकी सिंचाई करनी चाहिए। खाद व उर्वरक का रखें खास ख्याल खाद और उर्वरक के प्रभाव में पपीते के पौधे अच्छी वृद्धि करते हैं।

पौधा लगाने से पहले गोबर की खाद मिलाना एक अच्छा उपाय है, साथ ही 200 ग्राम यूरिया, 200 ग्राम DAP और 400 ग्राम पोटाश प्रति पौधा डालने से पौधे की उपज अच्छी होती है। इस पुरे उर्वरक की मात्रा को 50 से 60 दिनों के अंतराल में विभाजित कर लेना चाहिए और कम तापमान के समय इसे डालें।

पौधे के रोपण के 4 महीने बाद ही उर्वरक का प्रयोग करना उत्तम परिणाम देगा। पपीते के पौधे 90 से 100 दिनों के अंदर फूलने लगते हैं और नर फूल छोटे-छोटे गुच्छों में लम्बे डंठल युक्त होते हैं।

नर पौधे पर पुष्प 1 से 1.3 मीटर के लम्बे तने पर झूलते हुए और छोटे होते हैं। प्रति 100 मादा पौधों के लिए 5 से 10 नर पौधे छोड़ कर शेष नर पौधों को उखाड़ देना चाहिए।

मादा पुष्प पीले रंग के 2.5 सेमी लम्बे और तने के नजदीक होते हैं। गर्मियों में 6 से 7 दिनों के अंतराल पर तथा सर्दियों में 10 से 12 दिनों के अंतराल पर सिंचाई के साथ खरपतवार प्रबंधन, कीट और रोग प्रबंधन करना चाहिए। 

पपीते के पौधे में रोग नियंत्रण। …. 

मोजैक लीफ कर्ल, डिस्टोसर्न, रिंगस्पॉट, जड़ व तना सड़ना, एन्थ्रेक्नोज, और कली व पुष्प वृंत का सड़ना आदि रोग लगते हैं।

इनके नियंत्रण में ( बोर्डोे मिश्रण बनाने के लिए एक किलो ग्राम अनबुझा चूना, 1 किलो नीला थोथा एवं 100 लीटर पानी 1 -1 -100 रखा जाता है। बोर्डोे मिश्रण बनाने के लिए सर्वप्रथम नीला थोथा व चुना को अलग-अलग प्लास्टिक के बर्तनों में घोला जाता है जब मिश्रण घुल जाये तब दोनों को एक बर्तन में डाल दिया जाता है।  मिश्रण के परीक्षण के लिए छोटे से लोहे के टुकड़े को मिश्रण में डुबाकर 5 मिनट तक रखकर परीक्षण किया जाता है जब लोहे में रंग आ जाये तब मिश्रण सही नहीं बना है इसको सही करने के लिए पुनः थोड़ा चुना मिला लिया जाता है।  )

5 : 5 : 20 के अनुपात का पेड़ों की सड़न गलन को खरोच कर लेप करना चाहिए। अन्य रोग के लिए  बलाइटोक्स 3 ग्राम या ड्राईथेन M – 45, 2 ग्राम प्रति लीटर अथवा मैंकोजेब या जिनेव 0.2 % से 0.25 % का पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए अथवा कॉपर आक्सीक्लोराइड 3 ग्राम या व्रासीकाल 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।

पपीते के पौधे को कीटों से नुकसान पहुँचता है फिर भी कीड़ें लगते हैं जैसे माहू, रेड स्पाइडर माइट, निमेटोड आदि हैं। नियंत्रण के लिए डाइमेथोएड 30 ई. सी. 1. 5 मिली लीटर या फास्फोमिडान 0.5 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से माहू आदि का नियंत्रण होता है। निमेटोड पपीते को बहुत नुकसान पहुँचाता है और पौधे की वृद्धि को प्रभावित करता है। इथीलियम डाइब्रोमाइड 3 किग्रा प्रति हे. का प्रयोग करने से इस बिमारी को नियंत्रित किया जा सकता है। साथ ही अंत्रश्य गेंदा का पौधा लगाने से निमेटोड की वृद्धि को रोका जा सकता है।

9 से 10 महीने में तैयार हो जाती है। …. 

पपीते की फसल 9 से 10 महीने के बाद फल तोड़ने  जाती है। जब फलों का रंग हरे से बदलकर पीला होने लगे एवं फलों पर नाखून लगने से दूध की जगह पानी तथा तरल निकलने लगे, तो फलों को तोड़ लेना चाहिए।

फलों के पकने पर चिड़ियों से बचाना अति आवश्यक है अतः फल पकने से पहले ही तोड़ लेना चाहिए।

फलों को तोड़ते समय किसी प्रकार के खरोच या दाग-धब्बे से बचाना चाहिए वरना उसके भण्डारण से ही सड़ने  सम्भावना होती है। 

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घर की छत पर सब्जियाँ उगाने के सबसे सरल तरीके और लाभ

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साग-सब्जियों का हमारे दैनिक भोजन में महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि ये विटामिन, खनिज लवण, कार्बोहाइड्रेड, वसा व प्रोटीन के अच्छे स्रोत होते हैं। बाजार में आज कल सभी प्रकार की सब्जियाँ उपलब्ध हैं पर यह जरुरी नहीं की वह ताजी हों। 

विशेष तौर पर शाकाहारियों के लिए आज के दौर में शुद्ध सब्जी मिलना बहुत मुश्किल हो गया है। इसीलिए आप अपने घर के आँगन में, घर की छत पर या आपके पास कोई खली जमीन हो तो आप आसानी से सब्जी बगीचा  (किचन गार्डन) बना सकते हैं। इससे आपको शुद्ध सब्जियाँ भी मिलेंगी और साथ ही इन्हे बेचकर आप कुछ पैसे भी कमा सकते हैं। भोजन शास्त्रियों एवं वैज्ञानिकों के अनुसार संतुलित भोजन के लिए एक व्यस्क व्यक्ति को प्रतिदिन 85 ग्राम फल एवं 300 ग्राम सब्जियों का सेवन करना चाहिए। जिसमे लगभग 125 हरी पत्तेदार सब्जियाँ, 100 ग्राम जड़ वाली सब्जियाँ और 75 ग्राम अन्य प्रकार की सब्जियों का सेवन करना चाहिए। परन्तु वर्तमान में इनकी उपलब्धता मात्र 190 ग्राम है। 

इसमें जगह का चुनाव, किस्मो का चयन स्थिति के आधार पर ही सुनिश्चित किया जाता है। सब्जी बगीचा का आकर भूमि की उपलब्धता एवं व्यक्तियों की सँख्या पर निर्भर करती हैं। सामान्यतः चार से पाँच व्यक्तियोँ वाले परिवार के लिए 200-300 वर्ग मीटर भूमि पर्याप्त होती है और कम पड़े तो भी निराश होने की जरुरत नहीं है। अपने पास उसके लिए और भी कई विकल्प हैं। ….. 

घर पर सब्जियां कहा-कहा लगा सकते हैं। …….  

घर के आस-पास खली पड़ी जमीन पर :- हमारे घर के आस-पास ऐसी बहुत खाली जगह पड़ी होती है। जिसका उपयोग सब्जी उगाने के लिए किया जा सकता है। यदि वहाँ की मिट्टी ठोस हो तो उसे खुदाई करके खेत जैसा बना लें और संभव हो सके तो उसमें किसी तालाब की उपजाऊ मिट्टी या गोबर की खाद डालकर अच्छी तरह जुताई कर लें। उसके बाद उसमें छोटी-छोटी क्यारियाँ बना कर, उसमें आप अपनी मन पसंद की सब्जियाँ ऊगा सकते हैं। यदि आपको सिंचाई के पानी की कमी हो तो किचन से निकले व्यर्थ पानी को आप पाइप के द्वारा सब्जियों की सिंचाई कर सकते हैं।

गमले और प्लास्टिक ट्रे में :- गमले में सब्जी उगाने के लिए आपको ज्यादा जगह  जरुरत नहीं पड़ती है, बालकनी या ऐसी थोड़ी सी भी जगह जहाँ गमले रख सकते हैं वहाँ बहुत आसानी से सब्जियाँ उगा सकते हैं। गमला मिटटी का हो तो बहुत अच्छा होता है। इसके आलावा आप अपने घर पर पड़ी ख़राब बाल्टियों, तेल के पीपे, लकड़ी की पटरियाँ आदि उपयोग कर सकते हैं। बस उनके नीचे 2 – 3 छेद करके पानी की निकासी जरूर कर दें। गमलों में टमाटर, बैंगन, गोभी जैसी सब्जियाँ आसानी से उगाई जा सकती हैं। टिन या प्लास्टिक ट्रे जिसमे 2 या 3 इंच मिट्टी आती हो उसमें हम हरा धनिया, मेथी, पुदीना आदि सब्जियाँ उगा सकते हैं। 

 घर की छत पर :- सब्जियां लगाने से पहले छत पर एक मोटी प्लास्टिक की चादर बिछा दें फिर ईंटों या लकड़ी के पट्टों से चार दीवारी बना लें उसमें सामान सामान रूप से मिट्टी बिछा दें और पानी की निकासी भी रखे। छत पर सब्जियां लगाने से गर्मी के दिनों में आपका घर भी ठंडा रहता है जिससे आपको काफी राहत मिलेगी। 

घर में कौन-कौन सी सब्जी लगा सकते हैं। ….

रबी के मौसम की सब्जियाँ :- रबी में सब्जियाँ सितम्बर-अक्टूबर में लगा सकते हैं जैसे फूल गोभी, पत्तगोभी, शलजम, बैंगन, मूली, गाजर, टमाटर, मटर, सरसों, प्याज, लहसुन, पालक, मेथी आदि।

खरीफ के मौसम की सब्जियाँ :- खरीफ में लगाने का समय जून-जुलाई है। इस समय भिंडी, मिर्च, लोबिया, अरबी, टमाटर, करेला, लौकी, तरोई, शकरकंद आदि सब्जियों को उगा सकते हैं।

जायद की सब्जियाँ :- जायद में सब्जियां फरवरी, मार्च या अप्रैल में लगाई जाती है। इसमें टिंडा, खरबूजा, तरबूज, खीरा,ककड़ी, टेगसी, करेला, लौकी, तरोई, भिंडी जैसी सब्जियां लगा सकते हैं।

सब्जी बगीचे के लाभ :- 

1 . घर के चारों ओर खाली भूमि और व्यर्थ पानी व कूड़ा-करकट का सदुपयोग हो जाता है। 
2 . मनपसंद सब्जियों की प्राप्ति होती है। 
3 . साल भर स्वास्थ्यवर्धक, गुणवत्ता युक्त  व सस्ती सब्जी, फल व फूल प्राप्त होते रहते हैं। 
4 . परिवार के सदस्यों का मनोरंजन व व्यायाम का अच्छा साधन है, जिससे शरीर स्वस्थ रहता है।
5 . पारिवारिक व्यय में बचत होती है। 
6 . सब्जी खरीदने के लिए अन्यत्र जाना नहीं पड़ेगा।

सब्जी बगीचा लगाने हेतु ध्यान देने योग्य बातें :- 

1 . घर के पिछले हिस्से में ऐसी जगह का चयन करें जहाँ सूरज की रोशनी पहुँचती हो क्योंकि सूरज की रोशनी से ही पौधे का विकास संभव है। पौधों को रोज 5 – 6 घंटे की धुप मिलना जरुरी होता है। इसीलिए बगीचा छाया वाली जगह पर न बनायें।

2 . सब्जी बगीचे के एक किनारे पर खाद का गड्डा बनायें जिसमें घर का कचरा, पौधों का अवशेष डाला जा सके जो बाद में सड़कर खाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सके। 

3 . बगीचे की सुरक्षा के लिए कंटीले झांडी व तार से बाड़ लगाएं, जिसमे लता वाली सब्जियां लगाएं। 

4 . सब्जियों व पौधों की देखभाल एवं आने-जाने के लिए छोटे-छोटे रास्ते बनायें।  

5 . आवश्यकतानुसार सब्जियों के लिए छोटी-छोटी क्यारियां और क्यारियों के सिंचाई हेतु नालियाँ बनाये। 

6 . फलदार वृक्षों को पश्चिम दिशा में किनारों पर लगाएं जिससे छाया का प्रभाव अन्य पौधों पर न पड़ें। 

7 . मनोरंजन के लिए उपलब्ध भूमि के हिसाब से मुख्य मार्ग पर लॉन(हरियाली ) लगाएं। 

8 . फूलों को गमलों में लगाएं एवं रास्तों के किनारे पर रखें। 

9 जड़ वाली सब्जियों को मेड़ों पर उगायें। 

10 . समय-समय पर निराई – गुड़ाई एवं सब्जियों और फल-फूलों के तैयार होने पर तुड़ाई करते रहें। 

11 . सब्जियों का चयन इस प्रकार करें की साल भर उपलब्धता बानी रहे। 

12 . कीटनाशकों व रोगनाशक रसायनों का प्रयोग कम से कम करें यदि फिर भी उपयोग जरुरी हो तो तुड़ाई के बाद एवं  प्रभाव वाले रसायनों का प्रयोग करें। 

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Top 7 Herbal Plant you must have in Kitchen Garden

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What is Herb?
Any seed-bearing plant which does not have a woody stem and dies down to the ground after flowering. Usually aromatic plants, such as tulsi, ginger, bay leaf, black pepper, curry patta, lavender and mint.

Tulsi
Tulsi, also known as holy basil, is a medicinal herb used in Ayurveda, a form of alternative medicine that originated in India.

Ginger
Growing your own ginger is easy and rewarding. Once planted, the ginger needs nothing but water and patience to mature into a delicious, spicy ingredient. This guide focuses on the edible species, but most flowering ornamental ginger plants grow in similar conditions.

Bay Leaf
Bay Leaf plants are slow growing trees with leaves that are used as seasoning in cooking. It is also known as bay laurel. If you enjoy growing herbs, this is a great one to try, since it has a very aromatic flavor.

Black Pepper
Black Pepper is the dried fruit of the Black Pepper plant. Each fruit contains a single seed, and that seed will germinate if the fruit is planted in fertile soil that maintains the required temperature until the seed sprouts. Black Pepper found in grocery stores should not be planted.While there is a small possibility they could germinate if planted properly, it is very unlikely. So it is advisable to avoid using culinary black pepper and instead obtain seeds meant for growing.

Curry Patta
Growing curry leaf tree in the home garden is only advisable in areas without freezes. Curry leaf plant is frost tender but it can be grown indoors. Plant the tree in a well drained pot with good potting mix and place in a sunny area. Feed it weekly with a diluted solution of seaweed fertilizer and trim the leaves as needed.

Lavender
Lavender repels many harmful insect pests, making it especially useful when planted as a border around the vegetable garden. It is a great companion plant for a variety of other plants. For example, lavender is highly effective in repelling cabbageworms that infest vegetables.

Mint
You can find mint growing outdoors in a pot of soil or even in a bottle of water. For starters, you need a container with adequate drainage for healthy plant growth. Pot up your mint plant with a good potting mix, either a regular commercial type or one with equal amounts of sand, peat, and perlite mixed in.

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How to get Bigger Fruits Using Organic Fertilizer

Do you want to grow size of fruits on your plant? Bonsai Plants Nursery Got an Ultimate Organic way To increase Fruit Size on Any Plant. By using Amratras Liquid fertilizer Farmers increased the size of fruits in their garden and earned extra. farmers say thanks to Amratras for adding extra money to their pocket. Order Amratras liquid fertilizer using this link now https://bonsaiplantsnursery.com/product/amrutras-liquid-organic-ferlizer-250-ml/

Amrutras means World’s best liquid organic ferlizer developed with
advanced technology which nourishes and protects all farm products

Specializaon of Amrutr on of Amrturas:

  • India’s first patented product(Liquid Organic Ferlizer).
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    potassium ferlizers.
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    Necessary for healthy nursery plants.
  • Easy to use.
  • Suitable for both drip and sprinkle methodology.
  • 15-45% increase in producon.
  • Suits green house.
  • Proven results on all types of crops.

Application :

  • 1 Litre Amrutras in 100 Litres
    water per Acre via drip.
  • 10 ml Amrutras to be
    sprinkled in 1 Litre water
    aer every 15-20 days
    of germinaon.

Things to take care while using Amrutras:

  • Do not mix any kind of chemical pescide or spreader with Amrutras.
  • Sprinkle Amrutras preferably early morning or in evening for best results
  • Store away from sunlight
  • Shake bole well before use.
  • If chemical ferlizer is already been used,
    kindly maintain a gap of atleast one week prior using Amrutras.

Advantages of Amrutr es of Amrutras :

  • Not only retains ferlity but also enriches soil and makes healthy plants.
  • It transforms non ferle land into nutrients enriched ferle land.
  • Amrutras slowly destroys poisonous substances from soil.
  • Amrutras reverses negave impact of chemical ferlizers on soil by
    enriching it with nutrients.
  • Use of Amrutras substanally increases producon/yield.
  • Amrutras helps crops/fruits retain their original color and taste.

Download user Guide

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How to Treat Unhealthy Plants – How to Save a plant thats about to die

Buy Fast Growing Quality Plants- https://bonsaiplantsnursery.com/ How to Treat Unhealthy Plants Plants, like people and animals, can develop a number of diseases. Whether you see it in your houseplants or out in the garden, diseases can destroy your greenery quickly if not treated, prevented, or destroyed Whenever plants begin to drop their leaves, it is certain that their health has been injured; this maybe due to over-potting, over-watering, over-heating, too much cold, or the application of such stimulants as guano, or to some other cause which has destroyed the fine rootlets by which the plant feeds, and induced disease that may lead to death. Natural Remedies Many of these treatments involve making and using a spray. It is best to use the spray in the early morning or in the evening. Do not spray when it is too hot, or it may burn your plant’s leaves. Before trying any spray, you would be wise to test it on one leaf first Apple cider vinegar Dilute one tablespoon of vinegar in one gallon of water and use to treat fungal infection on any type of plant. It can also help treat black spot on aspen trees and on roses. Baking soda Another fungicidal spray is made with baking soda. Mix one tablespoon of soda with two and a half tablespoons of vegetable oil and add to a gallon of water. Shake the mixture well and add to it one half teaspoon of castile soap. Chive spray. This mixture is useful for treating downy mildew on vegetables like pumpkins, squash, and cucumber. To make it, steep a large bunch of chopped chives in boiling water. Strain the chives out and use the liquid to treat the vegetables. It can also help prevent apple scab. Garlic To prevent fungal infections in any plants that you feel are susceptible to them, you can use this effective spray. To make it, you need, clematis leaves, and the papery outer covering of garlic. Chop them up together in a blender or food processor with water. Strain the liquid and use it as a spray. Pruning the Infected Area Once infection is noted in the plant. Its important to pruned it immediately.Pruning cuts should be cuts 12 inches below any discolored this is because discoloration is a chemical response of plants. Watering Regularly The amount of water may vary from species to species. Find out the average moisture needs of your particular plant and then get a moisture gauge. Monitoring Plant

Article Sources: https://chestofbooks.com/gardening-horticulture/Gardening-Pleasure/Chapter-XX-Unhealthy-Plants-The-Remedy.html

Treating Plant Diseases Naturally