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गमले में लगे कटहल के पौधे की देखभाल करने के 10 आसान तरीके।

Grafted Jackfruit Plant

Know what Vastu Shashtra has to says about House gardening - Plant & Our  Culture - NurseryLive Wikipedia
  1. अगर आप के घर के गमले में लगे कटहल के पौधे से अधिक फल पाना चाहते हैं तो आप उसकी प्रूनिंग कर सकते हैं। 
  2. आप जब भी कटहल का पौधा लगाये तो हमेशा ग्राफ्टेड पौधा ही लगाएं क्योंकि ग्राफ्टेड पौधा बहुत ही कम समय और देखभाल में फल देना प्रारंभ कर देता हैं। 
  3. अक्सर कटहल के तने व पत्तियों पर सफेद रंग के कीट लग जाते हैं तो आप उन पर नीम के पानी का छिड़काव कर सकते हैं। 
  4. कटहल के पेंड में तना छेदक नामक एक कीट लग जाता है जो तने के जीवित भाग को खाकर पूरी खोखला बना देती है। इसकी रोकथाम के लिए रुई या सूती कपडे को डीजल या केरोसीन में डुबोकर पेंड के तने में लगा दें और साथ ही चिकनी मिटटी भी लगा देनी चाहिए। 
  5. राइजोपस आर्टकारपाई नामक कवक जो की कटहल के फलों को सड़ा देता है। इसका प्रकोप छोटे फलों में ज्यादा होता है जो की सड़ कर गिरने लगते हैं। इसके रोकथाम के लिए एक लीटर पानी में 2 ग्राम कॉपर अक्सीक्लोराइड मिलाकर 12 से 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करते रहें। 
  6. मिली बिग नामक कीट जो कटहल के फल व फूलों से रस चूसते हैं जिनकी वजह से फल व फूल गिर जाते हैं। अतः इसके रोकथाम के लिए 3 मिली इंडोसल्फान प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। 
  7. कटहल के पौधे को धूप की आवश्यकता होती है अतः उसे ऐसी जगह लगाएं जहाँ पर्याप्त मात्रा में धूप मिलती रहे। 
  8. गमले में लगे कटहल के पौधे को गर्मियों में सुबह – शाम दोनों समय पानी देना चाहिए। सर्दियों के दिनों में एक बार पानी देना चाहिए। जब कटहल में फूल आ रहें हो तो 2 – 3 दिन के अंतराल पर पानी देना चाहिए। 
  9. अधिक दिनों से लगे गमले में कटहल का पौधा अगर मुरझाया – मुरझाया लगने लगे, फल देना बंद कर दे या उसकी जड़ें गमले में बहुत अधिक फैल गयी हों तो आपको उसकी किसी बड़े गमले में रिपोटिंग कर देनी चाहिए। 
  10. आपको समय – समय पर कटहल के पौधे की काट – छाँट करते रहना चाहिए। हर 15 दिन के अंतराल पर मिटटी की हल्की गुड़ाई करते रहें। 

नोट :- अगर आप पेंड – पौधे लगाने के शौकीन हैं लेकिन आप अपने पौधों को चाहते हुए भी समय न दे पा रहें हैं या किसी भी कारण वश आप इन उपायों को नहीं कर पा रहे हैं। आप चाहते हैं कि मेरे पौधे कम देखभाल में ही अच्छे परिणाम दें तो इसका भी उपाय है। जी हाँ आपने बिल्कुल सही समझा। 

ऊपर दिए गए चित्र में आप 12 पाउच को देख सकते हैं जो की 12 महीनों के लिए हैं। हर महीने में एक पाउच का इस्तेमाल करना है। इस आर्गेनिक फ़र्टिलाइज़र का नाम है। 

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गमले में लगे हुए संतरे के पौधे की देखभाल करने के 10 आसान तरीके और पायें ढेर सारे संतरे के फल।

advancedestore Live Dwarf Orange Plant Tangerine (Santra) origin  Darjeeling: Amazon.in: Garden & Outdoors
  1. संतरे के पौधे को धूप की ज्यादा जरुरत होती है। अतः आप संतरे के पौधे को ऐसी जगह रखें जहाँ उसे 6 से 8 घंटे की पर्याप्त धूप मिल सके। 
  2. आप अपने संतरे के पौधे की प्रूनिंग कर सकते हैं और पहले की अपेक्षा अधिक मात्रा में संतरे भी आने लगेंगे।
  3. अगर आपको लगता है कि आपका संतरा का पौधा मुरझाया – मुरझाया रहता है या उसकी जड़ें गमले में बहुत अधिक फैल गयी हैं तो आप उसकी रिपोटिंग कर सकते हैं। 
  4. संतरे के पौधे को पानी की आवश्यकता होती है, अतः इसे सुबह – शाम दोनों समय पर्याप्त मात्रा में पानी देना चाहिए। 
  5. जब संतरे पर फूल आ रहे हों तो संतरे को अधिक पानी नहीं देना चाहिए। इतना पानी दें की उसकी मिटटी नम हो जाये बस। अगर फ्लॉवरिंग के समय ज्यादा पानी दिया गया तो सारे फूल झड़ जायेंगे। 
  6. संतरे के पौधे की समय – समय पर काट – झाँट करते रहें। 
  7. संतरे के पौधे पर रासायनिक खाद का उपयोग नहीं करना चाहिए। 
  8. संतरे के पौधे को महीने में दो बार हल्की गुड़ाई करके वर्मी कम्पोस्ट या गोबर की खाद देते रहे। 
  9. आप जब भी संतरे का पौधा लगाएं तो ग्राफ्टेड संतरे का ही पौधा लगाएं। ग्राफ्टेड पौधे कम समय में ही फल देना प्रारंभ कर देते हैं। 
  10. अगर संतरे के पौधे पर कीट लग जाये तो उस पर नीम के पानी का छिड़काव करना चाहिए। 

नोट :- अगर आप पेंड – पौधे लगाने के शौकीन हैं लेकिन आप अपने पौधों को चाहते हुए भी समय न दे पा रहें हैं या किसी भी कारण वश आप इन उपायों को नहीं कर पा रहे हैं। आप चाहते हैं कि मेरे पौधे कम देखभाल में ही अच्छे परिणाम दें तो इसका भी उपाय है। जी हाँ आपने बिल्कुल सही समझा। 

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गर्मियों में बगीचे के पौधों की देखभाल करने के 10 बेहतरीन तरीके।

गर्मियों में बगीचे की देखभाल कैसे करें।
  1.  अगर आप Plant Lover हैं तो आपको अपने बगीचे तथा बगीचे के पौधों को बहुत अच्छी तरह से जान लेना चाहिए। यह जानकारी आपको पौधों की देखभाल करने में मददगार साबित होगी।
  2. गर्मियों के दिनों में तेज धूप के कारण मिटटी बहुत सूख जाती है। जिस वजह से पौधों को उचित मात्रा में पोषण नहीं मिल पाता है। अतः गर्मियों के दिनों में आपको सुबह – शाम दोनों समय पौधों को पानी देना चाहिए। 
  3. गर्मियों में बगीचे के पौधों को कीटों से दूर रखने के लिए आपको प्राकृतिक कीटनाशक का उपयोग करना चाहिए क्योंकि एक कीट लगा पौधा पुरे बगीचे को नुकसान पहुँचा सकता है। 
  4. कुछ पौधे ऐसे होते हैं जिन्हें ज्यादा धूप की जरुरत नहीं होती है, तो आप उन पौधों को छाया वाली जगह या जहाँ कम धूप आती हो वहाँ रख सकते हैं। 
  5. पौधों को धूप से बचाने के लिए आप अपने बगीचे को Green Net से ढक सकते हैं। 
  6. गर्मी के मौसम में पौधों को पानी उस समय दें जब धूप न हो यानि सुबह और शाम सूरज निकलने से पहले और शाम को सूरज डूबने के बाद ध्यान रहे पौधे के आस – पास पानी ठहरना नहीं चाहिए। शाम के समय आप पौधों को पानी की फुहार से नहला भी देना चाहिए। 
  7. गर्मियों में आप अपने पौधों में रासायनिक खाद न डालें तो ज्यादा बेहतर होगा क्योंकि रासायनिक खाद पौधों को जला सकती है। 
  8. गर्मियों में आप जैविक खाद या गोबर की खाद पौधों को महीने में दो बार देना चाहिए। लगभग 20 – 50 ग्राम खाद प्रति पौधा दे सकते हैं। ध्यान रहे आप जब भी पौधों को खाद दें तो मिटटी में नमी होनी चाहिए। आपको कभी भी खाद सूखी मिटटी होने की अवस्था में कतई नहीं देना चाहिए। 
  9. पौधों की सूखी टहनियां या सूखा भाग तुरंत काट देना चाहिए और नियमित रूप से मिटटी की गुड़ाई करते रहे। घास – फूस को निकालते रहिये। 
  10. पौधों पर Flowering होने के बाद आप Buds को काट दें। जिससे पौधों की एनर्जी पौधों की ग्रोथ में काम आएगी। Grafted पौधों में अगर कोई extra टहनी Graft एरिया के अलग भाग में निकल रही हो तो उसे तुरंत काट दें। वह केवल और केवल जंगली Branch ही बनेगी। उस पर कोई फल – फूल नहीं आएगा।
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गमले में लगे गुड़हल पर ज्यादा फूल पाने के 10 आसान उपाय।

The Secrets to Growing Hibiscus Indoors | Laidback Gardener
  1. आप जब भी कोई पौधा लगाएं तो कलमी ( Grafted ) पौधा ही लगाएं क्योंकि ग्राफ्टेड पौधे कम समय में ही फल – फूल देने लगते हैं। तो आप जब भी गुड़हल का पौधा लगाए तो ग्राफ्टेड पौधा ही लगाएं। 
  2. अगर आपके गुड़हल के पौधे में फूल नहीं आ रहें हैं तो उसकी आप 2G या 3G कटिंग कर सकते हैं।
  3. आपने जिस भी गमले में गुड़हल का पौधा लगाया है। उस गमले की मिटटी की समय – समय पर गुड़ाई करने से आपका गुड़हल का पौधा अधिक फूल देने लगता है। 
  4. समय – समय पर आप गुड़हल के पौधे की काट – छाँट करते रहें। जो टहनियाँ सूख जाएँ उन्हें काट कर अलग कर देना चाहिए। 
  5. गुड़हल के पौधे को धूप की अधिक आवश्यकता होती है। अतः उसे ऐसे स्थान पर रखें जहाँ से गुड़हल का पौधा 7 से 8 घंटे की धूप पा सके। 
  6. गुड़हल के पौधे को गर्मियों में सुबह – शाम दोनों वक्त पानी देना चाहिए। 
  7. अगर आप दो हफ्ते के अंतराल पर मिटटी की हल्की सी गुड़ाई करके उसमे 50 ग्राम वर्मी कम्पोस्ट डालते हैं तो आपका गुड़हल का पौधा पुनः फूल देना प्रारम्भ कर देगा। 
  8. कभी – कभी गुड़हल पर फूल न आने का कारण होता है, उसे पर्याप्त जगह न मिल पाना। अगर आपने गुड़हल का पौधा किसी गमले में लगाया है और फूल नहीं आ रहें तो आप उसकी रिपोटिंग कर सकते हैं। 
  9. अगर आप अपने गुड़हल को हल्का गुनगुना पानी (35 डिग्री सेल्सियस ) देते हैं तो यह आपके गुड़हल के पौधे के लिए बहुत ही लाभकारी साबित होगा। हफ्ते में केवल 3 से 4 बार गुनगुना पानी दें। 
  10. कभी भी आपको गुड़हल के पौधे में केमिकल फ़र्टिलाइज़र नहीं डालना चाहिए। आप इसमें जैविक खाद का उपयोग करे जो की पौधे के लिए लाभकारी होता है।  

नोट :- अगर आप पेंड – पौधे लगाने के शौकीन हैं लेकिन आप अपने पौधों को चाहते हुए भी समय न दे पा रहें हैं या किसी भी कारण वश आप इन उपायों को नहीं कर पा रहे हैं। आप चाहते हैं कि मेरे पौधे कम देखभाल में ही अच्छे परिणाम दें तो इसका भी उपाय है। जी हाँ आपने बिल्कुल सही समझा। 

ऊपर दिए गए चित्र में आप 12 पाउच को देख सकते हैं जो की 12 महीनों के लिए हैं। हर महीने में एक पाउच का इस्तेमाल करना है। इस आर्गेनिक फ़र्टिलाइज़र का नाम है। 

Organic BOM all purpose Plant Growth Booster – 120 gram ( 12 pouch of 10 gram )

ये आर्गेनिक फ़र्टिलाइज़र आपको बहुत की उचित कीमत पर दिया जा रहा। यह आपको मात्र 365 Rs में मिलेगा। नीचे दिए गए वीडियो में इस आर्गेनिक फ़र्टिलाइज़र के बारे में विस्तृत जानकारी दी गयी। इसकी होम डिलीवरी से लेकर इसके उपयोग तक की सारी जानकारी आपको इस वीडियो में मिल जाएगी। 

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All information needed for Watermelon Cultivation

It is a sweet, edible fruit that has a green rind on the outside and edible red-colored flesh with black-colored seeds on the inside. The color of the flesh varies from pink to red. There are some varieties of watermelon that have yellow flesh. According to botanists, this cool fruit has its origins in the African deserts about five thousand years ago. Some of its wild varieties are still found growing here. They found their way up north through Egypt and people began cultivating it during the Roman Era.

Information on Watermelon Plant
Botanically, watermelon is called Citrullus lanatus and it belongs to Cucurbitaceae family. All the different types of gourds are classified under Cucurbitaceae family. The melons grow on a vine that can reach a length of 3 meters. It is an annual plant, it can only survive in one growing season. The vines are covered with tiny hairs; they are thin and have groves in them. The flowers are yellow-colored. The specialty of this plant is that male and female flowers are produced separately on the same plant. The fruit varies in shape from oblong to spherical. The fleshy fruit is encased in a thick rind while the seeds are encased inside the flesh.

Ideal Conditions for Watermelon Farming
Watermelons need warm climate for growth. It can be grown all through the year in places like Tamil Nadu, Karnataka, Andhra Pradesh, Orissa, West Bengal and Rajasthan. It is however very sensitive to frost. Hence it can be only cultivated after the frost in places like Haryana. Otherwise, these must be grown in greenhouses that have adequate protection from frosts.

Climate for Water Cultivation
Being a warm season crop, the plant requires ample sunshine and dry weather for production of fruits. In case they are grown in places where winter is prevalent, then they must be provided with adequate protection from cold and frost. They are extremely sensitive to the slightest of frost and hence care must be taken to keep the frost away from the crop. 24-27°C is ideal for the seed germination and growth of watermelon plants. A cool night would ensure ample development of sugars in the fruit.

Watermelon Seasons in India
In India, since the climate is mostly tropical, all seasons are suitable for watermelon cultivation. However, watermelon is sensitive to cold and frost. Therefore, in parts of the country where winter is severe, watermelons are cultivated after the frost has passed. In places like Tamil Nadu, Maharashtra, Andhra Pradesh, etc. watermelon cultivation is possible almost any time of the year.

Soil for Watermelon Farming
Watermelons grow best in sandy loam soil that drains easily. It also grows well in black soil and sandy soil. However, they must have a good amount of organic content and must not withhold water. Water must easily drain off from the soil else the vines are likely to develop fungal infections.

pH for Watermelon Cultivation
The pH of the soil must be between 6.0 and 7.5. Acidic soil would result in withering away of the seeds. While soil with a neutral pH is preferred, it can also grow well even if the soil is slightly alkaline.

Irrigation for Watermelon Growing
Watermelon is a dry season crop and it must be planted with irrigation. The watermelon beds are irrigated two days prior to sowing and then again 5 days after sowing the seeds. As the plant grows, irrigation is done on a weekly basis. Attention must be paid to water stress at the time of irrigation since it can lead to fruit cracking. While irrigating, water must be restricted to the root zone of the plant. Wetting of vines or other vegetative parts must be avoided especially during flowering or fruiting time as wetting can lead to withering away of the flowers, fruits or even the plant as a whole. In addition, wetting of the vegetative parts can also lead to development of fungal diseases. Moisture must be maintained near the roots so that the plants develop taproot system. As the fruits near maturity, irrigation frequency is reduced and it is completely stopped during the harvesting stage. This helps in developing flavor and sweetness in the fruit.

Watermelon Varieties in India
Watermelons grow from seeds. However, it is advisable to sow the seeds of watermelons bought from trusted place. There are different varieties of watermelon in India yielding a good harvest such as Vandana, Kiran, Sugar Baby, Watermelon Sultan, Improved Shipper, Madhubala, Arjun, Asahi Yamato, Special No.1, Arka Jyoti, Arka Manik, Durgapura Meetha, Durgapura Kesar

There are a few exotic varieties like Watermelon Hybrid Yellow Doll and Watermelon Hybrid Red Doll from China and Mardi gras, Royal Flush, Dumara, Celebration, Paradise, Sangria, Oasis, Star Bright, Baron, Samos, Arriba, etc. from America.

Land Preparation and Planting Watermelon Seeds
The land is ploughed until the soil becomes very fine tilth. The land is then prepared according to the type of sowing to be done. Watermelons are generally seeded directly in the farms. However, in case it has to be protected from frosts, then it is seeded in nurseries or greenhouses and later transplanted into the main field.

It is sowed during the months of February to March in North India and then during November to January in west and North East India. The seeds are sown at a depth of 2-3 cm from the top soil. The spacing method during sowing varies according to the type of sowing being followed.

Solarisation
Solarisation of soil is generally not necessary if watermelon cultivation is being done during dry season. However, solarisation can rid the soil of unwanted moisture content and even pests.

Pollination in Watermelon Farming
This is a very important step in watermelon cultivation. Unlike most other crops, flowers on watermelon plants cannot develop into fruits on their own. As mentioned earlier, male and female flowers grow on the same plant, but, separately. The male flowers are smaller in size and appear first while female flowers are huge and appear later. The female flowers have a small fruit at the base. In case it shrivels, it means there would be no pollination. In nature, bees carry the pollen while hopping from flower to flower gathering nectar. Therefore, setting up an artificial beehive in the watermelon field is a good idea. One hive per acre of watermelon field is more than enough.

Weed Control in Watermelon Farming
Weeding is needed only in the initial stages of watermelon growth. Being a vine, use of herbicides must be done very carefully else the healthy plants may get affected. The first weeding is done about 25 days after sowing. Subsequently, weeding is done once a month. Once the vines begin to spread, weeding is not necessary as the vines take care of the weeds.

Diseases and Plant Protection in Watermelon Farming
Watermelon is affected by numerous diseases such as aphids, thrips, anthracnose, mildew, wilt, Alternaria Leaf Spot, Fusarium Wilt, Bud Necrosis, etc.

Harvesting Watermelon
Watermelons are ready for harvest when:

The tendrils near the stem start drying
The white colored part of the fruit touching the ground turn yellowish
A thudding sound is produced when the melons are thumped (a dense sound is produced from immature fruits).
Fruits only mature when they are attached to the vine. Hence immature fruits must be left untouched. For harvesting ripe fruits, the stem is cut about an inch away from the fruits with the help of a knife. Upon harvesting, the fruits are graded according to their sizes. Then they can be stored at 15°C for maximum two weeks. However, they must not be stored with apples or bananas since the latter lose the flavor.

Watermelon farm attracts some pests and diseases but proper farm management can give exceptional profits from watermelon cultivation.

Article Source:
https://www.farmingindia.in/watermelon-cultivation/

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आम की फसल पर लगने वाले कीटों व रोगों की रोकथाम करें।

Mango Plant

फलों का राजा आम हमारे देश का सबसे महत्वपूर्ण फल है। आम की खेती उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, उड़ीसा, महाराष्ट्र और गुजरात में व्यापक स्तर पर की जाती है। जनवरी महीने से आम के पेड़ों में बौर आना शुरू हो जाता है। इसलिए किसानों को अच्छा उत्पादन पाने के लिए अभी से इसकी देखभाल करनी होगी क्योंकि जरा सी चूक से रोग और कीट पूरी फसल को बर्बाद कर सकते हैं। “फसल के शुरू होने से पहले ही किसानों को बाग में सिंचाई कर देनी चाहिए, जिससे नमी बनी रहे। किसानों को इस समय पेड़ों पर कीटनाशकों का छिड़काव कर देना चाहिए। इसके बाद दूसरा छिड़काव जब फल चने के बराबर हो जाएँ तब करना चाहिए। जिस समय पेड़ों पर बौर लगा हो उस समय किसी भी कीटनाशक का छिड़काव नहीं करना चाहिए क्योंकि इसका परागण हवा या मक्खियों द्वारा होता है। अगर कीटनाशक का छिड़काव कर दिया तो मक्खियाँ मर जाएँगी और बौर पर नमी होने के कारण परागण नहीं हो पायेगा, जिससे फल बहुत कम आ सकते है।”

आम की फसल में इस समय हॉपर कीट लगने का खतरा रहता है। यह कीट पत्तियों और बौर से रस चूसता रहता है, इसका असर अगर ज्यादा हो गया तो पेंड में फल नहीं आता है। इसलिए समय पर कीटनाशकों का प्रयोग करें।

आम पर लगने वाले कीट 

गुठली का घुन (स्टोन वीविल) :- यह कीट आम की गुठली में छेद करके घुस जाता है और उसके अंदर ही अपना भोजन बनाता रहता है। कुछ दिनों बाद यह गूदे में पहुँच जाता है और उसे हानि पहुँचाता है। इसकी वजह से कुछ देशों ने इस कीट से ग्रसित बागों से आम का आयात पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया था। 

रोकथाम :- इस कीड़ें को नियंत्रित करना थोड़ा कठिन होता है इसलिए जिस भी पेंड से फल नीचे गिरे उस पेंड की सूखी पत्तियों और शाखाओं को नष्ट कर देना चाहिए। इससे कुछ हद तक कीड़े की रोकथाम हो जाती है। 

जाला कीट (टेन्ट केटरपिलर) :- प्रारंभिक अवस्था में यह कीट पत्तियों की ऊपरी सतह को तेजी से खाता है। उसके बाद पत्तियों को जाल या टेन्ट बनाकर उसके अन्दर छिप जाता है और पत्तियों को खाना जारी रखता है। 

रोकथाम :- पहला उपाय तो यह है कि एजाडिरेक्टिन 3000 पीपीएम ताकत का 2 मिली लीटर को पानी में घोलकर छिड़काव करें। दूसरा संभव उपाय यह है कि जुलाई के महीने में कुइनोलफास 0.05 % या मोनोक्रोटोफास 0.05 % का 2 – 3 बार छिड़काव करें। 

दीमक :- दीमक सफेद, चमकीले और मिट्टी के अंदर रहने वाले कीट हैं। यह जड़ को खाता है। उसके बाद सुरंग बनाकर ऊपर की ओर बढ़ता जाता है। यह तने के ऊपर कीचड़ का जमाव करके अपने आप को सुरक्षित करता है। 

रोकथाम :- तने के ऊपर से कीचड़ के जमाव को हटाना चाहिए। तने के ऊपर 1.5 % मेलाथियान का छिड़काव करें। दीमक से छुटकारा मिलने के बाद पेंड के तने को मोनोक्रोटोफास (1 मिली / लीटर ) से मिटटी पर छिड़काव करें। 

भुनगा कीट :- यह कीट आम की फसल को सबसे अधिक नुकसान पहुँचाते हैं। इस कीट के लार्वा एवं वयस्क कीट कोमल पत्तियों और पुष्पक्रमों का रस चूसकर हानि पहुँचाते हैं। इसकी मादा 100 – 200 तक अंडे नयी पत्तियों एवं प्ररोह में देती हैं और उनका जीवनचक्र 12 – 22 दिनों में पूरा हो जाता है। इसका प्रकोप जनवरी – फरवरी से शुरू हो जाता है। 

रोकथाम :- इस कीट से बचने के लिए बिवेरिया बेसिआना फफूँद के 0.5% घोल का छिड़काव करें। नीम तेल 3000 पीपीएम प्रति 2 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर, घोल का छिड़काव करके भी निजात पाया जा सकता है। इसके आलावा कार्बोरील 0.2 % या कुइनोलफास 0.063 % का घोल बनाकर छिड़काव करने से भी राहत मिल जाएगी।

आम पर लगने वाले रोग व उनसे बचाव के उपाय 

सफेद चूर्णी रोग (पॉवडरी मिल्ड्यू) :- बौर आने की अवस्था में यदि मौसम बदली वाला हो या बरसात हो रही हो तो यह बीमारी लग जाती है। इस बीमारी के प्रभाव से रोगग्रस्त भाग सफेद दिखाई पड़ने लगता है। इसकी वजह से मंजरियां और फूल सूखकर गिर जाते हैं। इस रोग के लक्षण दिखाई देते ही आम के पेड़ों पर 5 % वाले गंधक के घोल का छिड़काव करें। इसके आलावा 500 लीटर पानी में 250 ग्राम कैराथेन घोलकर छिड़काव करने से भी बीमारी पर काबू पाया जा सकता है। जिन क्षेत्रों में बौर आने के समय मौसम असामान्य रहा हो वहाँ हर हालत में सुरक्षात्मक उपाय के आधार पर 0.2 % वाले गंधक के घोल का छिड़काव करें एवं आवश्यकतानुसार दोहराएं। 

कालवूणा ( एन्थ्रेक्नोस ) :- यह बीमारी अधिक नमी वाले क्षेत्रों में अधिक पायी जाती है। इसका आक्रमण पौधों के पत्तों, शाखाओं और फूलों जैसे मुलायम भागों पर अधिक होता है। प्रभावित हिस्सों में गहरे भूरे रंग के धब्बे आ जाते हैं। 0.2 % जिनैब का छिड़काव करें। जिन क्षेत्रों में इस रोग की सम्भावना अधिक हो वहाँ सुरक्षा के तौर पर पहले ही घोल का छिड़काव करें। 

ब्लैक टिप ( कोएलिया रोग ) :- यह रोग ईंट के भट्टों के आसपास के क्षेत्रों में उससे निकलने वाली गैस सल्फर डाई ऑक्साइड के कारण होता है। इस बीमारी में सबसे पहले फल का आगे का भाग काला पड़ने लगता है इसके बाद ऊपरी हिस्सा पीला पड़ता है। इसके बाद गहरा भूरा और अंत में काला हो जाता है। यह रोग दशहरी किस्म में ज्यादा होता है। इस रोग से फसल बचाने का सबसे अच्छा उपाय यह है कि ईंट के भट्टों की चिमनी आम के पूरे मौसम के दौरान लगभग 50 फुट ऊँची रखी जाएँ। इस रोग के लक्षण दिखाई देते ही बोरेक्स 10  ग्राम/लीटर पानी की दर से बने घोल का छिड़काव करें। फलों के बढ़वार की विभिन्न अवस्थाओं के दौरान आम के पेड़ों पर 0.6 % बोरेक्स के दो छिड़काव फूल आने से पहले और जब फल मटर के दाने के बराबर हो जाएँ तो 15 दिन के अंतराल पर तीन छिड़काव करने चाहिए। 

गुच्छा रोग :- इस बीमारी का मुख्य लक्षण यह है कि इसमें पूरा बौर नपुंसक फलों का एक ठोस गुच्छा बन जाता है। बीमारी का नियंत्रण प्रभावित बौर और शाखाओं को तोड़कर किया जा सकता है। अक्टूबर माह में 200/10 लक्षांश वाले नेप्थलीन एसिटिक एसिड का छिड़काव करना और कलियाँ आने की अवस्था में जनवरी के महीने में पेंड बौर तोड़ देना भी लाभदायक रहता है क्योंकि इससे न केवल आम की उपज बढ़ जाती है बल्कि इस बीमारी के आगे फैलने की संभावना भी कम हो जाती है। 

पत्तों का जलना :- उत्तर भारत में आम के कुछ बागों में पोटेशियम की कमी से एवं क्लोराइड की अधिकता से पत्तों के जलने की गंभीर समस्या पैदा हो जाती हैं। इस रोग से ग्रसित वृक्ष के पुराने पत्ते दूर से ही जले हुए जैसे दिखाई देते हैं। इस समस्या से फसल को बचाने हेतु पौधों पर 5% पोटेशियम सल्फेट के छिड़काव की सिफारिश की जाती है। यह छिड़काव उसी समय करें जब पौधों पर नयी पत्तियाँ आ रही हों। ऐसे बागों में पोटेशियम क्लोराइड उर्वरक प्रयोग ंन करने की सलाह भी दी जाती है। 0.1 % मेलाथिऑन का छिड़काव भी प्रभावी होता है। 

डाई बैक :- इस रोग में आम की टहनी ऊपर से नीचे की ओर सूखने लगती है और धीरे – धीरे पूरा पेंड सूख जाता है। यह फफूंद जनित रोग होता है, जिससे तने की जलवाहिनी में भूरापन आ जाता है और वाहिनी सूख जाती है और जल ऊपर नहीं चढ़ पाता है इसकी रोकथाम के लिए रोग ग्रसित टहनियों के सूखे भाग को 15 सेमी नीचे से काट कर जला दें। कटे स्थान पर बोर्डो पेस्ट लगाएं तथा अक्टूबर माह में कॉपर ऑक्सी क्लोराइड का 0.3 % घोल का छिड़काव करें।   

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आप सर्दियों में अपने गार्डन में लगा सकते हैं ये 6 टेस्टी फल।

अगर आप सर्दियों में अपने घर में टेस्टी फल पाना चाहते हैं तो आज मैं आपको ऐसे फल के पौधों के बारे में बताऊँगा जिन्हें आप अपने घर के गार्डन में भी लगा सकते हैं और आप सर्दियों में भी फल पा सकते हैं। अब आप यह सोंच रहें होंगे कि घर में अगर जगह नहीं है तो यह कैसे होगा लेकिन अब इसकी चिंता करने की कोई जरुरत नहीं है क्योंकि आप इन फल के पौधों को गमलों में भी लगा सकते हैं। बस समय पर इन्हे जरुरी खाद और पानी देते रहें। क्योंकि इन पौधों की ज्यादा देखभाल की जरुरत होती है। तो आईये जाने कुछ ऐसे ही फल जिन्हे आप अपने घर में लगा सकते हैं।

अंगूर ( Grapes Plant )

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अंगूर एक बहुत ही रसीला और खट्टा मीठा फल होता है। इसे आप सर्दियों में अपने घर में ऊगा सकते हैं क्योंकि यह बेल की तरह उगता है इसलिए इसे सहारे की जरुरत पड़ती है। 

नीम्बू ( Lemon Plant )

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नीम्बू का पेंड लगाना बहुत कठिन काम है, क्योंकि इसके लिए आपको बहुत समय और जगह की जरुरत पड़ती है। इसलिए इसे लगाने से पहले इसकी पूरी जानकारी हासिल कर लें। 

पपीता ( Papaya Plant )

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पपीता बहुत ही स्वास्थ्य वर्धक फल है, इसमें विटामिन A अच्छी मात्रा में पाया जाता है। इसे काफी ज्यादा पानी और सूरज की किरणों की जरुरत पड़ती है, इस पेंड को ज्यादा देखभाल की जरुरत नहीं होती है। 

संतरा ( Orange Plant )

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संतरा नारंगी रंग का फल होता है, इसे आप अपने घर में आसानी से लगा सकते हैं। बस समय – समय पर इसमें खाद और पानी डालते रहें। 

अनार ( Pomegrant Plant )

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अनार काफी स्वास्थ्यवर्धक फल है, अगर आप के पास टाइम और संसाधन है तो ही इसे लगाये क्योंकि इस पेंड को देखभाल की जरुरत पड़ती है। 

स्ट्रॉबेरी ( Strawberry Plant )

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 स्ट्रॉबेरी का नाम सुनते ही हम सबके मुँह में पानी आ जाता है, इसमें विटामिन – C काफी मात्रा में पाया जाता है। इसे आप अपने घर में लगा सकते हैं। बस एक बात का ध्यान रखें कि इसे सूरज की पर्याप्त रोशनी मिलती रहे। 

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क्या आप जानते हैं, बैडरूम में इन पाँच पौधों को लगाने से अच्छी नींद आती है।

आज कल की भाग दौड़ भरी जिंदगी से तो सब वाकिफ हैं। किसी को टाइम नहीं है कि वो किसी से बात कर सके या थोड़ा सा आराम कर लें। थोड़ा सुस्ता लें। आज की भाग – दौड़ भरी जिंदगी में हम इतना तनाव ग्रस्त हो जाते हैं कि ठीक से सो भी नहीं पाते। नींद ना पूरी होने पर हम ठीक से काम भी नहीं कर पाते हैं। 

नींद एक ऐसी चीज है जो हमारी जिंदगी में बहुत महत्त्व रखती है या यूँ कहें की जिस प्रकार हमें खाने की जरुरत होती है ठीक उसी प्रकार हमें अच्छी नींद की जरुरत होती है। लेकिन आपको घबराने की कोई जरुरत नहीं है क्योंकि आज हम आपको कुछ ऐसे ही पौधों के बारे में बताएँगे। जिन्हें आप अपने बेडरूम में लगाने से अच्छी नींद आएगी। 

यहाँ तक की, हम जब प्रकृति के करीब होते हैं तो हमारा मन हमेशा अच्छा रहता है और तनाव भी नहीं रहता है। तो आईये जानते हैं उन पौधों को जिन्हें आप अपने बेडरूम में लगा सकते हैं। 

1. एलोवेरा (Aloe vera Plant)

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इस पौधे में कई सारे औषधीय गुण पाये जाते हैं जैसे यह आपकी त्वचा के लिए काफी लाभदायक है। शरीर के घाव को भी ठीक करता है। एलोवेरा को खाने से आपका शरीर भी डिटॉक्सफाइ हो जाता है। एलोवेरा का पौधा बैडरूम में लगाने से कमरे की हवा भी शुद्ध होती है। 

2. चमेली (Jessamine Plant)

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एक अध्ययन में यह पाया गया है कि चमेली के फूलों की महक से नींद अच्छी आती है। इसकी महक से व्यक्ति अच्छे से सो पाता है। साथ की घबराहट और मूड स्विंग को भी ठीक करता है।  

3. स्नेक प्लांट (Snake Plant)

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यह नाइट्रोजन ऑक्साइड और प्रदूषित हवा को अपने अंदर खींच लेता है। इसलिए इसे आप अपने बेडरूम में लगा सकते हैं, जिससे आपको शुद्ध हवा मिले। इस पौधे की एक और खास बात यह है कि रात में जब सारे पौधे नाइट्रोजन छोड़ते हैं तो यह ऑक्सीजन देता है। 

4. गार्डेनिया प्लांट (Gardenia Plant)

One or Two Gardenia Crown Jewels
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यह एक तरह का विदेशी फूल है, आप इस फूल को देखने से पहले ही इसकी खुशबू को महसूस कर लेंगे। तेज सुगंधित खुसबू वाला यह सफेद रंग का फूल, दिमाग को शांत रखता है। क्योंकि इसकी महक काफी तेज होती है, तो इसे अपने बेडरूम में लगाने से आपका कमरा भी महकने लगेगा और आप आराम से सो पायेंगे। 

5. लैवेंडर प्लांट (Lavender Plant)

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लैवेंडर का फूल काफी सारी चीजों में प्रयोग किया जाता है, इसकी महक साबुन, शैंपू और इत्र बनाने में इस्तेमाल की जाती है। इसकी खुसबू यहीं समाप्त नहीं होती है एरोमाथेरेपी में भी इसका प्रयोग होता है, क्योंकि यह दिमाग को सुकून पहुँचाता है और इसमें एंटीसेप्टिक व दर्द निवारक गुण होते हैं। लैवेंडर का तेल तंत्रिका थकावट और बेचैनी को दूर करने के लिए जाना जाता है। साथ ही यह मानसिक गतिविधि को बढ़ाता है और शांत भी रखता है। 

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घर में गुलाब का पौधा (Rose Plant) लगाने का सबसे सही तरीका।

गुलाब एक बहुत ही खूबसूरत, सुगंधित और आकर्षक फूल है। गुलाब को फूलों का राजा भी कहा जाता है। गुलाब का फूल भारत के पर्वतीय और मैदानी क्षेत्रों में उगाया जाता है। दूसरे फूलों की तुलना में गुलाब के फूल का व्यवसाय में सबसे अधिक महत्त्व है। गुलाब बहुवर्षीय पौधा है। गुलाब के पौधे को लगाते समय वातावरण ठंडा होना जरुरी है। सूर्य के प्रकाश का गुलाब के पौधों पर गहरा असर पड़ता है। इसे तेज धूप की जरुरत होती है, लेकिन ज्यादा प्रकाश की तीव्रता और कम तापमान में इसमें फूल नहीं आते। इसके आलावा भी गुलाब का पौधा लगाते वक्त कुछ जरुरी बातों का ध्यान रखना चाहिए। वो बातें निम्नवत हैं। 

How Do Your Roses Look? – BCLS Landscape Services
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1. सही मिट्टी का चयन जरुरी है। 

गुलाब को बलुई, दोमट मिट्टी, जिसमें कार्बनिक पदार्थ की मात्रा भरपूर हो, ऐसी मिटटी की जरुरत होती है। चिकनी मिट्टी में गुलाब फलता फूलता नहीं है। इसमें गोबर की खाद, फास्फोरस, पोटाश और दूसरे पोषक तत्व को मिलाकर मिट्टी तैयार करनी चाहिए। मिट्टी में गोबर की खाद और अन्य उर्वरक मिलाने के बाद भुर-भुरी होने पर क्यारी बनानी चाहिए और पौधे के लिए मिटटी को नम रखना चाहिए।

Planting bare root roses. | Rose Growing Tips
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2. लगाने का सही तरीका 

वैसे तो गुलाब के फूलों को सुखाकर उनके बीज तैयार किये जाते हैं। लेकिन इसे गुलाब की कलम द्वारा भी लगाया जा सकता है। यह सबसे सरल और कम लागत वाली विधि है। इसके द्वारा पौधा लगाने वाले खुद पौधा बना सकते हैं और एक साल पुरानी गुलाब की कलमों का इस्तेमाल किया जाता है। कलम लगाने के बाद उनमें अच्छी तरह जड़ें और तना विकसित होने के बाद उन्हें दूसरे स्थान पर रोपित करना चाहिए। 

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3. सिंचाई और देखभाल 

पौधे रोपने के बाद गुलाब के पौधों को फुहार विधि से सींचना चाहिए। अगर पौधे गमले में लगाएं हैं तो उन पर ऊपर से पानी का छिड़काव करना चाहिए। इससे पौधों में शाखाएँ जल्दी फूटती हैं। पानी की मात्रा पौधों की वृद्धि और सूर्य की रोशनी की तीव्रता पर निर्भर करती है। गुलाब के पौधे में अधिक पानी की जरुरत होती है। गुलाब के पौधों में पानी सुबह 9 बजे तथा शाम को 3 बजे के आस पास दे देना चाहिए। गुलाब के पौधों की वृद्धि के लिए अन्य पौधों की भाँति नाइट्रोजन युक्त खाद देनी चाहिए। इसके अलावा खाद में नाइट्रेट, फास्फोरस, कैल्शियम, मैग्नीशियम, मैगनीज, सल्फर जैसे महत्वपूर्ण पोषक तत्त्व गुलाब के पौधों के लिए अति आवश्यक हैं। समय – समय पर इनमें आने वाले खर-पतवार निकाल देने चाहिए और मिटटी की निराई गुड़ाई करते रहना चाहिए। 

5 Tips for Pruning Roses Like a Pro | Gardener's Path
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4. कीट – पतंगों से बचाव

गुलाब के पौधों पर एफिड की प्रजातियों का हमला होता है। हरे रंग वाला एफिड इसे नुकसान पहुँचा सकता है। इसके अलावा लाल मकड़ी, रेड स्केल, रोजवेफर जैसे कीट इनकी पत्तियों को नुकसान पहुँचाते हैं। इसके लिए इनमें कीटनाशकों का इस्तेमाल करना चाहिए।  

How to Grow Rose Plant | Growing Cultivation in India
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गार्डनिंग में कैसे करें केले के छिलकों का इस्तेमाल और जानें इसके फायदे।

Banana Peel Uses: 9 Ways Banana Peels Benefit Your Health | LittleThings.com

अगर आप केले के छिलकों को यूँ ही बर्बाद कर देते हैं या फेंक देते हैं तो रूक जाईये। अगर आप गार्डनिंग के शौकीन हैं तो केले के छिलके आपके गार्डन के लिए बहुत उपयोगी हैं। सभी के घर में केले खाये जाते हैं और खाने के बाद उन केले के छिलकों को आप डस्टबिन में फेंक देते हैं। ऐसा न करें, केले के छिलकों में भी काफी पोषक तत्व होते हैं और ये अच्छे उर्वरक होते हैं। जो गार्डन के पौधों को काफी पोषण प्रदान करते हैं। 

तो अब आप जानेंगे की केले के छिलकों को फ़र्टिलाइज़र के रूप में निम्न प्रकार से इस्तेमाल किया जा सकता है। 

1. छिलकों को काट लें और इसे खाद में मिला दें। कुछ दिनों बाद इसे पौधों में डालें, जिससे आपके पौधों को पोषण मिलेगा और आपके पौधे भी काफी अच्छे हो जायेंगे। 

2. केले के छिलकों को गर्म पानी में उबालकर रखा रहने दें। दो सप्ताह बाद इस पानी को पौधों में डाल दें, तब तक यह छिलके गल जायेंगे। 

3. केले के छिलकों को मिक्सी में पीस लें और इसे गर्म पानी में मिलाकर रख दें। जब यह ठंडा हो जाये तो पेंड और पौधों में डाल दें। 

अब जाने केले छिलकों के अद्भुद लाभ।

आपको सुनने में अजीब लग रहा होगा, लेकिन वास्तव में केले के छिलके कमाल के लाभकारी उपयोग वाले होते हैं। केला, भारत में मिलने वाला आम फल है। जो हर जगह, हर प्रान्त में मिलता है। लेकिन अब से इसके छिलके फेंकने से पहले आप सोचेंगे कि इन्हें फेंका जाये या नहीं। 

केले के छिलके में भरपूर मात्रा में पोषक तत्व और कार्बोहाइड्रेड होते हैं। इसमें विटामिन B – 6, B – 12, मैग्नीशियम और कार्बोहाइड्रेड होता है। इसमें शुगर की मात्रा भी काफी ज्यादा होती है। तो जानिए केले के छिलकों के अनोखे लाभ। 

1. चमकीले दांत पाएं :- केले के छिलके को हर दिन दांत में रगड़ने से उनमें चमक आ जाती है। 

2. मस्सा हटाएं :- इसे आप पैरों या हाथों में निकले वार्ट्स पर लगा सकते हैं। आपको केवल केले के छिलके को उस जगह पर रगड़ना होगा और रातभर ऐसे ही छोड़ देना होगा। इससे दुबारा उस जगह पर वार्ट्स नहीं निकलेंगे। 

3. खायें :- केले के छिलकों को खाया भी जा सकता है। भारतीय व्यंजनों में इन्हें पकाने की कई विधियाँ लिखी हुई हैं। टेंडर चिकेन बनाने में भी इनका उपयोग होता है। 

4. मुहांसे :- केले के छिलके को चेहरे और बॉडी में हर दिन 5 मिनट लगाने से मुंहासे दूर हो जाते हैं। 

5. रिंकल :- केले के छिकले स्कीन को हायड्रेट करते हैं। अंडे की जर्दी में केले के छिलके को मिलाकर चेहरे पर लगाएं, इससे झुर्रियां भाग जाएँगी। इस पेस्ट को चेहरे पर 5 मिनट के लिए लगाना होता है। 5 मिनट बाद धो लें। 

6. दर्द से राहत मिलती है :- जिस जगह पर भी बॉडी में दर्द होता हों, वहाँ केले के छिलके लगाने से आराम मिलती है। इसे लगातार 30 मिनट तक छोड़ दें, इससे भयंकर दर्द में भी राहत मिलती है। सब्जी आयल में इसे घिसकर लगाने में भी आराम मिलता है।  

7. सोराईसिस :- सोराईसिस होने पर केले के छिलकों को पीसकर लगाएं, इससे दाग भी चले जायेंगे और आराम मिलेगा। 

8. कीड़े के काटने पर :- अगर किसी कीड़े ने काट लिया हो, तो उस स्थान पर केले के छिलके को पीसकर लगा लें, इससे आराम मिलता है। 

9. शू, लेदर, सिल्वर पर पॉलिश का काम करता है :- केले के छिलके को शू , लेदर और सिल्वर पर लगाने से उसमें चमक आ जाती है। 

10. अल्ट्रा वॉयलेट किरणों से बचाव :- केले का छिलका आँखों की युवी किरणों से रक्षा करता है। आँखों पर केले के छिलके को थोड़ी देर के लिए रख लें। इससे राहत मिलेगी। 

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