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क्या आप जानते हैं, बैडरूम में इन पाँच पौधों को लगाने से अच्छी नींद आती है।

आज कल की भाग दौड़ भरी जिंदगी से तो सब वाकिफ हैं। किसी को टाइम नहीं है कि वो किसी से बात कर सके या थोड़ा सा आराम कर लें। थोड़ा सुस्ता लें। आज की भाग – दौड़ भरी जिंदगी में हम इतना तनाव ग्रस्त हो जाते हैं कि ठीक से सो भी नहीं पाते। नींद ना पूरी होने पर हम ठीक से काम भी नहीं कर पाते हैं। 

नींद एक ऐसी चीज है जो हमारी जिंदगी में बहुत महत्त्व रखती है या यूँ कहें की जिस प्रकार हमें खाने की जरुरत होती है ठीक उसी प्रकार हमें अच्छी नींद की जरुरत होती है। लेकिन आपको घबराने की कोई जरुरत नहीं है क्योंकि आज हम आपको कुछ ऐसे ही पौधों के बारे में बताएँगे। जिन्हें आप अपने बेडरूम में लगाने से अच्छी नींद आएगी। 

यहाँ तक की, हम जब प्रकृति के करीब होते हैं तो हमारा मन हमेशा अच्छा रहता है और तनाव भी नहीं रहता है। तो आईये जानते हैं उन पौधों को जिन्हें आप अपने बेडरूम में लगा सकते हैं। 

1. एलोवेरा (Aloe vera Plant)

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इस पौधे में कई सारे औषधीय गुण पाये जाते हैं जैसे यह आपकी त्वचा के लिए काफी लाभदायक है। शरीर के घाव को भी ठीक करता है। एलोवेरा को खाने से आपका शरीर भी डिटॉक्सफाइ हो जाता है। एलोवेरा का पौधा बैडरूम में लगाने से कमरे की हवा भी शुद्ध होती है। 

2. चमेली (Jessamine Plant)

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एक अध्ययन में यह पाया गया है कि चमेली के फूलों की महक से नींद अच्छी आती है। इसकी महक से व्यक्ति अच्छे से सो पाता है। साथ की घबराहट और मूड स्विंग को भी ठीक करता है।  

3. स्नेक प्लांट (Snake Plant)

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यह नाइट्रोजन ऑक्साइड और प्रदूषित हवा को अपने अंदर खींच लेता है। इसलिए इसे आप अपने बेडरूम में लगा सकते हैं, जिससे आपको शुद्ध हवा मिले। इस पौधे की एक और खास बात यह है कि रात में जब सारे पौधे नाइट्रोजन छोड़ते हैं तो यह ऑक्सीजन देता है। 

4. गार्डेनिया प्लांट (Gardenia Plant)

One or Two Gardenia Crown Jewels
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यह एक तरह का विदेशी फूल है, आप इस फूल को देखने से पहले ही इसकी खुशबू को महसूस कर लेंगे। तेज सुगंधित खुसबू वाला यह सफेद रंग का फूल, दिमाग को शांत रखता है। क्योंकि इसकी महक काफी तेज होती है, तो इसे अपने बेडरूम में लगाने से आपका कमरा भी महकने लगेगा और आप आराम से सो पायेंगे। 

5. लैवेंडर प्लांट (Lavender Plant)

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लैवेंडर का फूल काफी सारी चीजों में प्रयोग किया जाता है, इसकी महक साबुन, शैंपू और इत्र बनाने में इस्तेमाल की जाती है। इसकी खुसबू यहीं समाप्त नहीं होती है एरोमाथेरेपी में भी इसका प्रयोग होता है, क्योंकि यह दिमाग को सुकून पहुँचाता है और इसमें एंटीसेप्टिक व दर्द निवारक गुण होते हैं। लैवेंडर का तेल तंत्रिका थकावट और बेचैनी को दूर करने के लिए जाना जाता है। साथ ही यह मानसिक गतिविधि को बढ़ाता है और शांत भी रखता है। 

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घर में गुलाब का पौधा (Rose Plant) लगाने का सबसे सही तरीका।

गुलाब एक बहुत ही खूबसूरत, सुगंधित और आकर्षक फूल है। गुलाब को फूलों का राजा भी कहा जाता है। गुलाब का फूल भारत के पर्वतीय और मैदानी क्षेत्रों में उगाया जाता है। दूसरे फूलों की तुलना में गुलाब के फूल का व्यवसाय में सबसे अधिक महत्त्व है। गुलाब बहुवर्षीय पौधा है। गुलाब के पौधे को लगाते समय वातावरण ठंडा होना जरुरी है। सूर्य के प्रकाश का गुलाब के पौधों पर गहरा असर पड़ता है। इसे तेज धूप की जरुरत होती है, लेकिन ज्यादा प्रकाश की तीव्रता और कम तापमान में इसमें फूल नहीं आते। इसके आलावा भी गुलाब का पौधा लगाते वक्त कुछ जरुरी बातों का ध्यान रखना चाहिए। वो बातें निम्नवत हैं। 

How Do Your Roses Look? – BCLS Landscape Services
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1. सही मिट्टी का चयन जरुरी है। 

गुलाब को बलुई, दोमट मिट्टी, जिसमें कार्बनिक पदार्थ की मात्रा भरपूर हो, ऐसी मिटटी की जरुरत होती है। चिकनी मिट्टी में गुलाब फलता फूलता नहीं है। इसमें गोबर की खाद, फास्फोरस, पोटाश और दूसरे पोषक तत्व को मिलाकर मिट्टी तैयार करनी चाहिए। मिट्टी में गोबर की खाद और अन्य उर्वरक मिलाने के बाद भुर-भुरी होने पर क्यारी बनानी चाहिए और पौधे के लिए मिटटी को नम रखना चाहिए।

Planting bare root roses. | Rose Growing Tips
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2. लगाने का सही तरीका 

वैसे तो गुलाब के फूलों को सुखाकर उनके बीज तैयार किये जाते हैं। लेकिन इसे गुलाब की कलम द्वारा भी लगाया जा सकता है। यह सबसे सरल और कम लागत वाली विधि है। इसके द्वारा पौधा लगाने वाले खुद पौधा बना सकते हैं और एक साल पुरानी गुलाब की कलमों का इस्तेमाल किया जाता है। कलम लगाने के बाद उनमें अच्छी तरह जड़ें और तना विकसित होने के बाद उन्हें दूसरे स्थान पर रोपित करना चाहिए। 

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3. सिंचाई और देखभाल 

पौधे रोपने के बाद गुलाब के पौधों को फुहार विधि से सींचना चाहिए। अगर पौधे गमले में लगाएं हैं तो उन पर ऊपर से पानी का छिड़काव करना चाहिए। इससे पौधों में शाखाएँ जल्दी फूटती हैं। पानी की मात्रा पौधों की वृद्धि और सूर्य की रोशनी की तीव्रता पर निर्भर करती है। गुलाब के पौधे में अधिक पानी की जरुरत होती है। गुलाब के पौधों में पानी सुबह 9 बजे तथा शाम को 3 बजे के आस पास दे देना चाहिए। गुलाब के पौधों की वृद्धि के लिए अन्य पौधों की भाँति नाइट्रोजन युक्त खाद देनी चाहिए। इसके अलावा खाद में नाइट्रेट, फास्फोरस, कैल्शियम, मैग्नीशियम, मैगनीज, सल्फर जैसे महत्वपूर्ण पोषक तत्त्व गुलाब के पौधों के लिए अति आवश्यक हैं। समय – समय पर इनमें आने वाले खर-पतवार निकाल देने चाहिए और मिटटी की निराई गुड़ाई करते रहना चाहिए। 

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4. कीट – पतंगों से बचाव

गुलाब के पौधों पर एफिड की प्रजातियों का हमला होता है। हरे रंग वाला एफिड इसे नुकसान पहुँचा सकता है। इसके अलावा लाल मकड़ी, रेड स्केल, रोजवेफर जैसे कीट इनकी पत्तियों को नुकसान पहुँचाते हैं। इसके लिए इनमें कीटनाशकों का इस्तेमाल करना चाहिए।  

How to Grow Rose Plant | Growing Cultivation in India
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गार्डनिंग में कैसे करें केले के छिलकों का इस्तेमाल और जानें इसके फायदे।

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अगर आप केले के छिलकों को यूँ ही बर्बाद कर देते हैं या फेंक देते हैं तो रूक जाईये। अगर आप गार्डनिंग के शौकीन हैं तो केले के छिलके आपके गार्डन के लिए बहुत उपयोगी हैं। सभी के घर में केले खाये जाते हैं और खाने के बाद उन केले के छिलकों को आप डस्टबिन में फेंक देते हैं। ऐसा न करें, केले के छिलकों में भी काफी पोषक तत्व होते हैं और ये अच्छे उर्वरक होते हैं। जो गार्डन के पौधों को काफी पोषण प्रदान करते हैं। 

तो अब आप जानेंगे की केले के छिलकों को फ़र्टिलाइज़र के रूप में निम्न प्रकार से इस्तेमाल किया जा सकता है। 

1. छिलकों को काट लें और इसे खाद में मिला दें। कुछ दिनों बाद इसे पौधों में डालें, जिससे आपके पौधों को पोषण मिलेगा और आपके पौधे भी काफी अच्छे हो जायेंगे। 

2. केले के छिलकों को गर्म पानी में उबालकर रखा रहने दें। दो सप्ताह बाद इस पानी को पौधों में डाल दें, तब तक यह छिलके गल जायेंगे। 

3. केले के छिलकों को मिक्सी में पीस लें और इसे गर्म पानी में मिलाकर रख दें। जब यह ठंडा हो जाये तो पेंड और पौधों में डाल दें। 

अब जाने केले छिलकों के अद्भुद लाभ।

आपको सुनने में अजीब लग रहा होगा, लेकिन वास्तव में केले के छिलके कमाल के लाभकारी उपयोग वाले होते हैं। केला, भारत में मिलने वाला आम फल है। जो हर जगह, हर प्रान्त में मिलता है। लेकिन अब से इसके छिलके फेंकने से पहले आप सोचेंगे कि इन्हें फेंका जाये या नहीं। 

केले के छिलके में भरपूर मात्रा में पोषक तत्व और कार्बोहाइड्रेड होते हैं। इसमें विटामिन B – 6, B – 12, मैग्नीशियम और कार्बोहाइड्रेड होता है। इसमें शुगर की मात्रा भी काफी ज्यादा होती है। तो जानिए केले के छिलकों के अनोखे लाभ। 

1. चमकीले दांत पाएं :- केले के छिलके को हर दिन दांत में रगड़ने से उनमें चमक आ जाती है। 

2. मस्सा हटाएं :- इसे आप पैरों या हाथों में निकले वार्ट्स पर लगा सकते हैं। आपको केवल केले के छिलके को उस जगह पर रगड़ना होगा और रातभर ऐसे ही छोड़ देना होगा। इससे दुबारा उस जगह पर वार्ट्स नहीं निकलेंगे। 

3. खायें :- केले के छिलकों को खाया भी जा सकता है। भारतीय व्यंजनों में इन्हें पकाने की कई विधियाँ लिखी हुई हैं। टेंडर चिकेन बनाने में भी इनका उपयोग होता है। 

4. मुहांसे :- केले के छिलके को चेहरे और बॉडी में हर दिन 5 मिनट लगाने से मुंहासे दूर हो जाते हैं। 

5. रिंकल :- केले के छिकले स्कीन को हायड्रेट करते हैं। अंडे की जर्दी में केले के छिलके को मिलाकर चेहरे पर लगाएं, इससे झुर्रियां भाग जाएँगी। इस पेस्ट को चेहरे पर 5 मिनट के लिए लगाना होता है। 5 मिनट बाद धो लें। 

6. दर्द से राहत मिलती है :- जिस जगह पर भी बॉडी में दर्द होता हों, वहाँ केले के छिलके लगाने से आराम मिलती है। इसे लगातार 30 मिनट तक छोड़ दें, इससे भयंकर दर्द में भी राहत मिलती है। सब्जी आयल में इसे घिसकर लगाने में भी आराम मिलता है।  

7. सोराईसिस :- सोराईसिस होने पर केले के छिलकों को पीसकर लगाएं, इससे दाग भी चले जायेंगे और आराम मिलेगा। 

8. कीड़े के काटने पर :- अगर किसी कीड़े ने काट लिया हो, तो उस स्थान पर केले के छिलके को पीसकर लगा लें, इससे आराम मिलता है। 

9. शू, लेदर, सिल्वर पर पॉलिश का काम करता है :- केले के छिलके को शू , लेदर और सिल्वर पर लगाने से उसमें चमक आ जाती है। 

10. अल्ट्रा वॉयलेट किरणों से बचाव :- केले का छिलका आँखों की युवी किरणों से रक्षा करता है। आँखों पर केले के छिलके को थोड़ी देर के लिए रख लें। इससे राहत मिलेगी। 

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क्या आप भी टमाटर के शौकीन हैं, तो जान लीजिये रसीले टमाटर उगाने के बेहतर तरीकों को।

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अगर आप भी टमाटर के शौकीन हैं तो आपको यह जरूर जान लेना चाहिए कि टमाटर की लगभग 100 से ज्यादा किस्में मौजूद हैं जिनका अपना अलग-अलग स्वाद होता है। टमाटर के शौकीन लोगों को लगता है कि घर पर ही सबसे बेहतरीन टमाटर उगायें जा सकते हैं। लेकिन ये सच नहीं है। टमाटर का स्वाद उनके उगाने की स्थितियों पर निर्भर करता है। कई किसान कमर्शियल क़्वालिटी को ध्यान में रखते हुए ऐसे टमाटर की नस्ल को चुनते हैं जिनका छिलका थोड़ा सख्त हो और जिन्हें आसानी से शिपिंग कर सकें और दिखने में रंग गहरा लाल हो। इन सारी चीजों का ध्यान रखने के बाद ही इनके फ्लेवर पर ध्यान दिया जाता है। 

वहीं दूसरी ओर घर पर टमाटर इसीलिए उगाये जाते हैं ताकि खाने में बेहतरीन स्वाद मिल सके। अगर आप भी घर पर स्वाद में बेहतरीन टमाटर की खेती करना चाहते हैं तो आपको ये जरूर मालूम होना चाहिए कि आपको किस तरह का टमाटर चाहिए। पड़ोसी के किचन गार्डन, फार्म मार्किट और यहाँ तक कि सुपरमार्केट में मिलने वाले टमाटरों के स्वाद में बहुत फर्क होता है। आपको जो भी टमाटर पसंद है उसकी वैरायटी का पता लगाएं। सिर्फ देखकर ही नहीं बल्कि स्वाद से पहचानें। 

इसके आलावा अगर आपको टमाटर से जुड़ी ज्यादा जानकारी चाहिए तो इंटरनेट की सहायता भी ले सकते हैं। आमतौर पर बीज सबसे ज्यादा जरुरी होते हैं क्योंकि इनपर ही टमाटर की क़्वालिटी और किस्म निर्भर करती है। नॉन – हायब्रिड टमाटरों का स्वाद सबसे अच्छा होता है लेकिन हायब्रिड भी आप सामान्य यूज़ कर सकते हैं। 

ऐसे उगाएं घर पर रसीले टमाटर 

टमाटर को आधा बीच में से काट लें। एक गिलास में टमाटर को निचोड़ें और फिर चम्मच की मदद से सारे बीज निकाल लें। बीज के आसपास के जैली की तरह दिखने वाले फ्लूइड में अंकुरण को रोकने वाले इन्हिबिटर्स होते हैं। इन इन्हिबिटर्स को हटाने के लिए इनमें पानी मिलाएँ। दो से तीन दिन बाद एक पतली छलनी में बीजों को डालकर पानी निकाल लें। अब आप देखें कि इन्हिबिटर्स बीजों से अलग हो चुके होंगे। बीजों को सुखाने के लिए एक कागज पर रख दें। कागज को रोशनी व हवादार जगह पर रख दें। इनके सूखने के बाद बीजों को डिब्बे में स्टोर करके रख दें। ठंडी और सूखी जगह पर टमाटर के बीजों को चार साल तक ठीक रखा जा सकता है। 

6 सप्ताह का लगता है वक्त 

टमाटर उन सब्जियों में से एक है जिनकी खेती सबसे आसान होती है। वसंत शुरू होने के लगभग 6 सप्ताह पहले की तारीख को अपने कैलेंडर में नोट कर लें। इसी दिन आपको टमाटर के बीज बोने हैं। 6 सप्ताह के बाद आप देखेंगे कि बीजों ने अपना काम कर दिया। टमाटर की हर किस्म उगने में अलग – अलग समय लगता है। 

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क्या आपके घर में एक छोटा-सा किचन गार्डन होना चाहिए और क्यों, जानें इसके फायदे।

कई ऐसे लोग हैं जिनको गार्डेनिंग का बहुत शौक होता है। क्या आपको पता है, बागवानी का शौक रखने वाले लोग बहुत खुशनुमा होते हैं। घरों में छोटी-छोटी सब्जियों की बागवानी का शौक रखना चाहिए, इसके कई लाभ हैं। अगर आपके घर में सामने थोड़ी सी जमीन है तो उसे यूँ ही खाली न जानें दें और उसका उपयोग करें। आज इस आर्टिकल में हम आपको किचन गार्डन के लाभ बताएँगे। 

1. ताजी हर्ब मिलना 

तुलसी के पत्ते हों या मीठे नीम की पत्तियाँ, घर में किचन गार्डन होने पर आपको ये आसानी से मिल जाते हैं। आपको इन छोटी – छोटी हर्ब के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता है। 

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2. पेस्टीसाइड रहित सब्जी या साग

किचन गार्डन होने पर आपको मालूम रहता है कि आप क्या खा रहे हैं। आजकल बाजार में पेस्टीसाइड पड़ी हुई सब्जियाँ व साग मिलता है, लेकिन घर पर उगी हुई सब्जी, सही होती है। 

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3. सस्ता और अच्छा 

किचेन गार्डन में उगी सब्जियों को बनाने से आपका बजट मेंटेन रहता है। ये सब्जियाँ अच्छी और सस्ती होते हैं। आप मन मुताबिक समय पर उन्हें तोड़कर बना सकते हैं। 

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4. स्वास्थ्यवर्धक होना

घर पर तुलसी, धनिया और पुदीना जैसी चीजें उगाएं। इन्हे खाये, जिससे आपको कई रोगों में आराम मिलेगा। बुखार, अस्थमा, फेफड़ों के रोग आदि में ये फायदा करती हैं। ये सब आपको हेल्दी बनाती हैं। 

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5. तनाव से मुक्ति 

बागवानी करने से तनाव कम होता है। आपका दिमाग उसी में लगा रहता है। जिससे आप इधर – उधर की बातें सोच नहीं पाते हैं।

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6. कीड़े-मकोड़े कम होना 

घर में किचेन गार्डन होने से कीट आदि कम पैदा होते हैं क्योंकि खाली जगह का सदुपयोग हो जाता है। साथ ही कुछ विशेष प्रकार के पौधे, कीटों को भगाने में सक्षम होते हैं, जैसे – गेंदे के पौधे को हर 3 हर्ब के बाद लगाने से हर्ब हर्ब अच्छी बानी रहती हैं। 

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7. सकारात्मक परिवर्तन

बागवानी करने से आप में सकारात्मक परिवर्तन आ जाता है। आप खुद की केयर करना  शुरू कर देते हैं। पौधों की देखभाल करने में आपको संतुष्टि मिलती है। जिससे आपका स्वास्थ्य अच्छा हो जाता है। 

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जानें हाईब्रिड पपीते की खेती करने के बारे में पूरी जानकारी।

पपीता एक परिपूर्ण फल है जो भारत में उन्नतिशील फलों में प्रमुख स्थान रखता है। 

हाईब्रिड पपीता (Hybrid Papaya)

बीज की मात्रा :- 500 ग्राम प्रति हेक्टेयर

बुआई का समय :- फरवरी से सितम्बर तक 

पौधा रोपण :- जब पौधा 6 इंच का हो जाये तो उन्हें खेत में लगायें। 

विषेशताएँ ( Benefits )

1. वायरस अवरोधी 

2. मादा पौधों की संख्या अधिक। 15 % नर पौधे खेत में रखना जरुरी है। 

3. पौधा खेत में लगाने के लगभग 8 महीने बाद फल लगते हैं फिर 16 – 17 महीने तक फल मिलते रहते हैं।

4. फल कम ऊँचाई पर लगते हैं एवं भरपूर उपज देते हैं। 

5. अच्छे दिखने वाले चमकीले पीले रंग के फल, गुदा गहरे नारंगी रंग का मीठा एवं बाजार में अधिक कीमत देने वाला फल है। 

6. सुगन्धित एवं कठोर गुदा, फल के अधिक समय तक टिकने की क्षमता। ज्यादा दूरी के परिवहन के लिए उत्तम। 

रोपड़ पद्धति 

मानसून आने के पहले 1.5  अथवा 2 मीटर की दूरी पर लगाना चाहिए। इसके लिए गड्डे खोदने के बाद 15 दिनों तक गड्डों को खुली धूप में छोड़ने के बाद आवश्यकतानुसार गोबर की सड़ी खाद +  एक किलो नीम की खली एवं बोनोमिल मिटटी में मिलाकर 15 सेमी ऊँचाई तक भराव कर देना चाहिए। हल्की सिंचाई के बाद जब खाद व मिटटी बैठ जाये तथा हल्की नमी होने पर पौधा रोपना चाहिए। 

पौधा रोपड़ की दूरी 

5″ x 6″ के पॉली बैग में मिटटी खाद व रेत बराबर मात्रा में एवं प्रति थैली 2 ग्राम फ्यूराडान पाउडर डालें तत्पश्चात 2 बीज एक थैली में 1/2 सेमी0 की गहराई में डालें तथा नियमित रूप से पानी दें। तथा थैलियों व पौधों को धूप में रखें। नए पौधे उगने के बाद उन पर कैंटान 0.2 % घोल से छिड़काव करें तथा जब पौधे लगभग 6′ के हो जाये तब खेत में लगाएं। 

पौधों की मात्रा :- लगभग 2500 पौधे प्रति हेक्टेयर लगाये तथा 10 % पौधे गैप फिलिंग के लिए सुरक्षित रखें। 

गड्डों का आकार :- 0.3 x 0.3 x 0.3 मीटर के गड्डे बनायें। 

गड्डों का भराव :- गड्डों को 1 / 2 मिटटी 1 / 4 गोबर की खाद एवं 1 / 4 रेत मिलाकर प्रति गड्डा 10 ग्राम फ्यूराडान डालें।

पौधे लगाने की विधि 

पौधे की जड़ों को गड्डे की मिटटी में स्थापित कर दें। पौधे को अधिक गहराई में न लगायें अन्यथा जड़ सड़ने का खतरा रहता है। यदि अधिक हवा चल रही हो तो पौधों को लकड़ी का सहारा दें। सिंचाई आवश्यकतानुसार करें। 

कीड़ों और बीमारियों से रोकथाम 

वेटसल्फ 4 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें यदि मिटटी में कीड़ें हो तो फ्यूराडान मिटटी में डालें। अगर पत्तों में सड़न अथवा काले धब्बे हो तो डायथेन M – 45.02 % का छिड़काव करें। रस चूसने वाले कीड़े को नियंत्रित करने के लिए रोगोर अथवा साईपर मेथ्रिन का छिड़काव करें। 

उपज 

पौध रोपड़ के 3 – 4 माह बाद फूल लगकर फल लगना प्रारम्भ हो जाते हैं तथा 8 – 9 माह में फल पकना प्रारम्भ हो जाता है। 24 माह तक पौधों में अच्छे फल प्राप्त होंगे। पूरे जीवन में 85 से 125 फल प्राप्त होंगे। जिनका औसत वजन 1 से 1.5 किग्रा का होगा। इस प्रकार प्रति पौधा उपज 125 से 85 किग्रा प्राप्त हो सकती है। यदि कृषि कार्य पद्धति पूर्ण रूप से अपनाई जाये। मौसम एवं खेती करने के लिए अनुकूल वातावरण रहें। 

ध्यान देने योग्य सुझाव 

  1. निचली एवं दलदली जमीन पर इसकी खेती न करे। 
  2. पौधों को अधिक गहराई में न रोपें। 
  3. तेज हवाओं से पौधों को बचायें। 
  4. अधिक पानी न दें। 
  5. फल जब 40% से 50% पीले रंग के दिखे तभी तोड़ें अन्यथा हरे फलों में मीठापन कम होता है। 
  6. पौधे ढलान वाली भूमि में लगायें यदि ढलान वाली भूमि न हो तो अधिक वर्षा का समय समाप्त होने पर पौधे लगायें। 
  7. बीज बोने से पहले 30 मिनट बीजों को गुनगुने पानी में भिगोकर रखें तत्पश्चात सूखे कपड़े में बीजों को बांधकर लटका दें। 7 – 8 घंटे बाद पानी हट जाने पर बोये। इससे अंकुरण अधिक व शीघ्र होगा। 

विशेष :- उपरोक्त जानकारी हमारे कानपुर स्थित फार्म पर किये गये परिक्षण के आधार पर है विभिन्न जलवायु, मौसम, तापक्रम एवं वातावरण खेती करने के तरीके, खाद, पानी से विभिन्न अंतर आ सकते हैं उपरोक्त जानकारी से सफल खेती करने में मदद मिल सकती है।  

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1 महीने के अंदर ये सब्जियाँ आपके बगीचे की सुंदरता बढ़ा देंगी।

दुनिया में बागबानी से अच्छा शौक शायद ही कोई और होगा। इसमें आप अपनी मेहनत से कई फल और सब्जियाँ ऊगा सकते है। ये एक विज्ञान है और इसमें बीज से पौधा बनाने के लिए बहुत प्लानिंग की जरुरत होती है,साथ ही ये एक कला का काम भी है। खूबसूरत बगीचे का ख्याल रखने के लिए ढेर सारी कला की जरुरत होती है। 

इस काम में बहुत मेहनत और समय की भी जरुरत होती है क्योंकि बीज से फल निकालने के लिए बहुत अनुभव और समय चाहिए होता है। हम सभी में इतना धैर्य नहीं होता है। ऐसे में जो लोग पहली बार बागबानी करते हैं वो धैर्य की कमी से इसे छोड़ देते हैं। ऐसी किसी परिस्थित से बचने क्र लिए बेहतर होगा कि आप अपनी बागबानी की शुरुआत ऐसी सब्जियों से करें जो कम समय में ही तेजी से उग जाती हों। इसमें आपको अपनी मेहनत का तुरंत असर दिखेगा और आपको प्रोत्साहन भी मिलेगा। तो चलिए जानते हैं उन सब्जियों के बारे में जो एक महीने के अंदर ही उग जाती हैं। 

मूली (Radish)

कई पोषक तत्वों से भरपूर मूली कई भारतीय आहार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मूली उगाने की सबसे खास बात ये है कि इसे किसी भी मौसमी परिस्थिति की जरुरत नहीं होती है और ये किसी भी मौसम में उग सकती है। मूली उगाने के लिए जमीन में मूली के बीज गाड़ दें और 1 से 2 दिन में पानी डालें। आमतौर पर मूली को उगने में 25 दिन लगते हैं। कुछ मामलों में इसे 30 दिन भी लग जाते हैं। 

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खीरा (Cucumber)

इस सब्जी को आप कच्चा भी खा सकते हैं और कई रेसिपीज में भी इसका प्रयोग कर सकते हैं। साल में किसी भी मौसम में उगने वाली ये सब्जी ज्यादा समय भी नहीं लेती है लेकिन इसे जगह की ज्यादा जरुरत होती है। इसीलिए इसे अपने किचन में अलग से जगह बनाकर उगायें। इसके लिए आप ट्रेलिसेस का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इसमें 3 से 4 हफ़्तों में खीरे आने लगते हैं। 

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पालक (Spinach)

पालक हमारे आहार की सबसे स्वास्थवर्धक सब्जी है पालक जोकि 4 से 5 हफ्तों में उग जाती है इसके लिए आपको बढ़िया क़्वालिटी की खाद में बीज बोने होंगे। रोज पौधों को पानी डालें। अगर आप रोज इस पौधे को पानी डालतें हैं तो कुछ ही हफ़्तों में पालक के हरे पत्ते निकल आएंगे। 

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बेबी पालक (Baby Spinach)

ये बेबी पालक, पालक का ही छोटा भाई है। इसकी पत्तियाँ पालक के मुकाबले थोड़ी छोटी होती हैं। इसको घर के बगीचे में लगाने के बाद यह आपके बगीचे की शोभा बढ़ाने के साथ – साथ आपकी सेहत का भी ख्याल रखेगा। यह भी पालक की तरह ही 4 से 5 हफ़्तों में निकल आता है। 

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लाल पालक (Red Spinach)

लाल पालक, यह भी पालक के परिवार से ही सम्बंधित है। तो क्या हुआ यह लाल है तो, आखिर है तो पालक ही न। लाल पालक कई विटामिन्स और मिनिरल्स का स्रोत है। इसमें विटामिन A, विटामिन C, विटामिन K के साथ ही फोलेट, रिबोफ्लेविन और कैल्शियम भी मौजूद होता है। इसके आलावा यह पाचन शक्ति बढ़ाने में भी मददगार है। 

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जानें सर्दियों में गुलाब के पौधों की देखभाल करने के तरीके।

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क्या आपको पता है पौधों को सबसे ज्यादा खतरा किस मौसम में होता है। पौधों को सबसे ज्यादा खतरा सर्दियों के मौसम में होता है और खासकर तो गुलाब के पौधों पर गहरा असर पड़ता है क्योंकि सर्दी के मौसम में ठंडी हवा चलती है, ऐसे में बगीचे के संवेदनशील पौधों के खराब होने का डर रहता है। बगीचे के सबसे सुन्दर पौधे गुलाब के पौधों को सर्दी के दिनों में सबसे ज्यादा देखभाल की जरुरत पड़ती है। गुलाब की पत्तियाँ बहुत ही नाजुक होती है, तापमान के कम या ज्यादा होने पर सबसे ज्यादा फर्क इन्हीं पर पड़ता है। तो जाहिर सी बात है कि सर्दी के मौसम में गुलाब के पौधे की अधिक देखभाल की जाये। 

अतः इसी चीज को ध्यान में रखते हुए आज यहाँ आपको कुछ टिप्स दिये जा रहें हैं की सर्दी के दिनों में गुलाब के पौधों की देखभाल कैसे करें। 

1. पौधे को ढक दें :- सर्दियों के दिनों में रात के समय ठंडी हवाएं चलने पर गुलाब के पौधे को किसी बड़ी पॉलीथीन से ढक दें। आप चाहें तो कार्डबोर्ड बॉक्स या प्लास्टिक बॉक्स का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। इस तरह से गुलाब का पौधा सुरक्षित रहेगा। 

 2. गन्दगी साफ कर दें :- गुलाब के पौधे सबसे ज्यादा संवेदनशील होते है। उन्हें सबसे ज्यादा केयर की जरुरत होती है। अगर आपके घर में गुलाब के पौधों के पास गन्दगी या सूखी पत्तियाँ हों, तो उसे तुरंत साफ कर दें। इस पौधे को संक्रमण या कण्डव रोग सबसे ज्यादा लगता है, इसलिए पौधे के आस – पास स्वच्छता बनाये रखें। 

3. पानी दें :- सर्दियों के दिनों में गुलाब के पौधे बहुत जल्दी ड्राई और डिहाइड्रेट हो जाते है। ऐसे में आप हर दिन उन्हें पानी दें ताकि वह ताजे रहें और उनमें पानी की कमी न रहे, क्योंकि हम सभी को पता है की पौधा या कोई सजीव वस्तु उसे पानी की पर्याप्त मात्रा की आवश्यकता होती है। सही मात्रा में पानी देने से पौधे का विकास भी अच्छी तरह होता है। 

4. जड़ों को ढक दें :- अगर आपके घर में गुलाब का पौधा काफी बड़ा हो चूका है और उसे अंदर रखना या पूरा ढकना मुश्किल है तो उसकी जड़ों को ढक लें। जड़ों को ढकने से पूरे पौधे और तने को सर्द हवाओं के संपर्क में आने से बचाया जा सकता है। किसी घास से भी गुलाब के पौधे की जड़ों को ढंका जा सकता है। 

5. इनडोर गार्डनिंग करें :- अपने घर में गुलाब के पौधे को गमले में लगाएं ताकि आप उसे उठाकर घर में रख सकें। आप चाहें तो घर के अंदर भी इनडोर गार्डेनिंग कर सकते हैं। इस तरह से गुलाब को जलने या ख़राब होने से आसानी से बचाया जा सकता है। अगर पौधे को धूप की आवश्यकता है तो उसे धूप दिखा दें वरना छाँव में ही रखा रहने दें। गुलाब को कभी भी पाला या ओस में खुला न छोड़ें और ठंडी हवाओं से इसका बचाव करें। 

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वर्मी कम्पोस्ट क्या है और जानें इसके लाभ और उपयोग विधि।

वर्मी कम्पोस्ट क्या है। ( What is Vermi Campost )

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केचुओं की मदद से कचरे को खाद में परिवर्तित करने हेतु केंचुओं को नियंत्रित वातावरण में पाला जाता है। इस क्रिया को वर्मी कल्चर कहते हैं, केंचुओं द्वारा कचरा खाकर जो कास्ट निकलती है उसे एकत्रित रूप से वर्मी कम्पोस्ट कहते हैं। 

वर्मी कम्पोस्ट में साधारण मृदा की तुलना में 5 गुना अधिक नाइट्रोजन, 7 गुना अधिक फास्फेट, 7 गुना अधिक पोटाश, 2 गुना अधिक मैग्नीशियम व कैल्शियम होते हैं। प्रयोगशाला जाँच करने पर विभिन्न पोषक तत्वों की मात्रा इस प्रकार पायी जाती है। 

नाइट्रोजन :- 1.0% – 2.25%

फॉस्फोरस :- 1.0 % – 1.50 %

नाइट्रोजन :- 2.5 % – 3.00 %

वर्मी कापमोस्ट के लाभ ( Benefits of Vermi Campost )

  1. वर्मी कम्पोस्ट को भूमि में बिखेरने से भूमि भुरभुरी एवं उपजाऊ बनती है। इससे पौधों की जड़ों के लिए उचित वातावरण बनता हैं। जिससे पौधों का अच्छा विकास हो पाता है। 
  2. भूमि एक जैविक माध्यम है तथा इसमें अनेक जीवाणु होते हैं जो इसको जीवन्त बनाये रखते हैं। इन जीवाणुओं को भोजन के रूप में कार्बन की आवश्यकता होती है। वर्मी कम्पोस्ट मृदा से कार्बनिक पदार्थों की वृद्धि करता है तथा भूमि में जैविक क्रियाओं को निरंतरता प्रदान करता है। 
  3. वर्मी कम्पोस्ट में आवश्यक पोषक तत्व प्रचुर व संतुलित मात्रा में होते हैं। जिससे पौधे संतुलित मात्रा में विभिन्न आवश्यक तत्व प्राप्त कर सकते हैं। 
  4. वर्मी कम्पोस्ट के प्रयोग से मिटटी भुरभुरी हो जाती है जिससे उसमें पोषक तत्व व जल संरक्षण की क्षमता बढ़ जाती है व हवा का आवागमन भी मिट्टी में ठीक रहता है। 
  5. वर्मी कम्पोस्ट क्योंकि कूड़ा-करकट, गोबर व फसल अवशेषों से तैयार किया जाता है अतः गन्दगी में कमी करता है तथा पर्यावरण को सुरक्षित रखता है। 
  6. वर्मी कम्पोस्ट टिकाऊ खेती के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है तथा यह जैविक खेती की दिशा में एक नया कदम है इस प्रकार की प्रणाली प्राकृतिक प्रणाली और आधुनिक प्रणाली जो की रासायनिक उर्वरकों पर आधारित है, के बीच समन्वय और सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है। 

उपयोग विधि 

वर्मी कम्पोस्ट जैविक खाद का उपयोग विभिन्न फसलों में अलग – अलग मात्रा में किया जाता है। खेती की तैयारी के समय 2.5 से 3.0 टन प्रति हेक्टेयर उपयोग करना चाहिए। खाद्यान फसलों में 5.0  से 6.0 टन प्रति हेक्टेयर मात्रा का उपयोग करें। फल वृक्षों में आवश्यकतानुसार 1.0 से 10 किग्रा / पौधा वर्मी कम्पोस्ट उपयोग करें तथा किचन, गार्डन और गमलों में 100 ग्राम प्रति गमला खाद का उपयोग करें तथा सब्जियों में 10 – 12 टन/हेक्टेयर वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग करें। 

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जैविक खाद क्या है। यह कितने प्रकार की होती है और इसे बनाने की विधियाँ।

वैसे तो जैविक खेती में बहुत सी खादों का प्रयोग किया जाता है लेकिन खाद के प्रयोग से भूमि की स्थिति में सुधार हो जाता है तथा भूमि में वायु का संचार अच्छे से होता है और जीवांश पदार्थों का निर्माण होता है। पौधों में वायुमंडल की नाइट्रोजन का स्थिरीकरण बढ़ जाता है और इनके फलस्वरूप उत्पाद में वृद्धि होती है। 

जैविक खाद क्या है ? (What is Organic Fertilizer)

जीवों के मृत शरीर, मल मूत्र, अवशेष, फार्म पर उगाई गयी फसलों और उद्योगों के उत्पादों आदि के विघटन से निर्मित पदार्थ को जैव पदार्थ कहते हैं। अतः जब इन्हीं पदार्थों को खाद में रूपांतरण करके जो उत्पाद बनता है उसे जैविक खाद कहते हैं। इसको जीवांश खाद या कार्बनिक खाद भी कहा जाता है। इससे भूमि की अवस्था में सुधार होता है और मृदा में वायु संचार बढ़ता है। इसके प्रयोग से विभिन्न रसायनों के दुष्प्रभाव से भूमि, पर्यावरण व कृषि उत्पाद को बचाया जा सकता है। 

भूमि में उपस्थिति सूक्ष्म जीवाणु वायुमण्डल की नाइट्रोजन को पौधों की जड़ों में स्थिर करने का कार्य करते हैं। दलहनी पौधों की जड़ों पर कुछ विशेष प्रकार की ग्रंथिया पायी जाती हैं। जिनमें ये सूक्ष्म जीवाणु रहते हैं। सूक्ष्म जीवाणुओं की विभिन्न प्रजातियाँ उपलब्ध है, जो वायुमण्डल की नाइट्रोजन को अलग-अलग दर पर स्थिर करने का कार्य करती हैं। वायुमंडल में लगभग 74 % नाइट्रोजन होती है। इसको यह सूक्ष्म जीवाणु पौधों की जड़ों में एकत्रित करते रहते हैं। दलहनी फसलों में उड़द, मूंग, सोयाबीन, लोबिया आदि है। जिनको उगाने से भूमि की उत्पादकता व उर्वरा शक्ति बढ़ती है। 

पोषक तत्व आसानी से पौधों को उपलब्ध होने लगते है तथा भूमि के वातावरण में तेजी से सुधार होता है। इस प्रकार जैविक खाद का प्रयोग कार्बनिक खेती के उद्देश्य की पूर्ति करता है। जैविक खाद के क्षय व अपघटन के फलस्वरूप पौधों को पोषक तत्वों की आपूर्ति होती है। 

जैविक खाद कितने प्रकार की होती है ? 

जैविक खाद के प्रमुख प्रकार 

1. गोबर की खाद ( Farm Yard Manure )

2. कम्पोस्ट ( Compost )

3. वर्मी कम्पोस्ट ( Vermi Compost )

4. हरी खाद ( Green Manure )

5. जैविक खाद ( Biotic Manures )

प्रमुख हैं। 

जैविक खाद के प्रकार एवं जैविक खाद बनाने की विधियाँ। 

1. गोबर की खाद ( Farm Yard Manure in hindi )

गोबर खाद का प्रयोग पौधों में कैसे करें। - Homegardennet.com

गोबर की खाद में 0.5 – 1.5 % नाइट्रोजन, 0.4 – 0.8 % फॉस्फोरस व ( 0.5 – 1.9 % ) पोटाश पाया जाता है। गोबर की खाद पशुओं के मल-मूत्र व बिछावन और व्यर्थ चारे व दाने का मिश्रण होती है। गोबर की खाद का संगठन पशु की आयु और अवस्था, प्रयोग किये जाने वाले चारा व दाना, बिछावन की प्रकृति और उसका भंडार आदि कारकों पर निर्भर करती है। पशुओं की गोबर, मूत्र व बिछावन आदि को गड्डों में एकत्रित किया जाता है। गड्डों में एकत्रित गोबर खुले में होने के कारण लीचिंग ( leaching ) तथा वाष्पशीलता(Volatilization) के कारण पोषक तत्वों की हानि होती रहती है।

2. कम्पोस्ट खाद ( Compost Meaning in hindi )

कम्पोस्ट खाद बनाने की विधियां और लाभ

ग्रामीण क्षेत्रों में तैयार की गयी कम्पोस्ट में 0.4 – 0. 8 % नाइट्रोजन, 0.3 – 0.6 % फॉस्फोरस तथा 0-7-1-0 % पोटाश पायी जाती है। विभिन्न फसलों के अवशेष, सूखे डंठल, गन्ने की सूखी पत्तियों व फसलों के अन्य अवशेषों को गड्डों में सड़ाकर बनायीं गयी खाद कम्पोस्ट खाद कहलाती है। इन अवशिष्ट पदार्थों को गड्डों में भर दिया जाता है। गड्डों को भरने के पश्चात् उसको मिटटी से ढक देते हैं। गच्चों में भरे अवशिष्ट पदार्थों के बीच-बीच में भी मिटटी की परतें डाली जाती है। ऐसा करने से गड्डों में सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा अपघटन की क्रिया तीव्रता से होती रहती है। कम्पोस्ट खाद बनाने में प्रयोग होने वाले पदार्थों को ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों से प्राप्त व्यर्थ के कूड़े-करकट को एकत्रित किया जाता है और गड्डों में भरते रहते हैं। 

कम्पोस्ट खाद बनाने के लिए विभिन्न विधियाँ प्रयोग में लायी जाती है। 

कोयंबटूर विधि 

इंदौर विधि 

बंगलौर विधि 

3. वर्मी कम्पोस्ट क्या है एवं वर्मी कम्पोस्ट बनाने की विधि ( Vermi Compost in hindi )

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वर्मी कम्पोस्ट में कुल नाइट्रोजन 0.5 – 1.5 % उपलब्ध फॉस्फोरस 0.1 – 0.3 % व उपलब्ध सोडियम 0.6 – 0.3 % पाया जाता है। वर्मी कम्पोस्ट एक ऐसी जैविक खाद है, जो केचुओं के द्वारा बनाई जाती है। वर्मी कम्पोस्ट के मिश्रण में कास्टिग, केचुएँ, सूक्ष्म-जीवाणु, मल आदि पाए जाते हैं। केचुओं के सहायता से बनाई गयी इस जैविक खाद को वर्मी कम्पोस्ट कहते हैं।  

इस प्रकार बनाई गयी खाद की प्रक्रिया वर्मी कम्पोस्टीकरण कहलाती है। इस क्रिया में केचुएँ मिट्टी को खाकर उसको मल के रूप में पाचन के उपरान्त बाहर निकालते रहते हैं। ऐसा अनुमान है कि 2000 केचुएँ एक वर्गमीटर जगह की मिट्टी को खाकर एक वर्ष में 100 मीट्रिक टन ह्यूमस का निर्माण करते हैं। 

4. हरी खाद ( Green Manure in hindi )

लाभकारी और किफायती - हरी खाद | KRISHAK JAGAT

जैविक खेती में हरी खाद ( Green Manure in hindi ) का एक महत्वपूर्ण स्थान है। हरी खाद वाली फसलें भूमि में उगाकर कोमल अवस्था में बुआई के 30-35 दिन बाद गिराकर दवा दी जाती है। सड़ने और गलने के पश्चात इन फसलों से भूमि के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में सुधार होता है। भूमि में वायु संचार व पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है। 

भूमि पर हरी खाद उगाने से भूमि कटाव पर भी नियंत्रण होता है। सनई व देचां प्रमुख हरी खाद वाली फसलें हैं। इनके अतिरिक्त ग्वार, मूंग, लोबिया आदि फसलें भी हरी खाद के रूप में प्रयोग की जाती हैं। हरी खाद उगाने से भूमि में नाइट्रोजन की भी वृद्धि होती है। नाइट्रोजन की मात्रा प्रयोग की गई फसल एवं पलटने की अवस्था पर निर्भर करती है। ऐसा अनुमान है कि हरी खाद की विभिन्न फसलों से 75 – 150 किलो नाइट्रोजन प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि को प्राप्त होती है।

कृषि में जैविक खाद का महत्व ( Importance of Organic Manure in hindi )

भारत एक कृषि प्रधान देश है। 

उन्नत कृषि करने के लिए आवश्यक है कि मृदा को पोषक तत्त्व पर्याप्त मात्रा में प्रदान किये जायें। फार्मयार्ड FYM तथा कम्पोस्ट आदि अच्छी जैविक खाद ( organic manure in hindi ) हैं। भारतीय किसान जैविक खादों का प्रयोग अधिक करने लगे हैं। क्योंकि मृदा में इनका प्रभाव कई वर्षों तक रहता है और ये कृत्रिम खादों की अपेक्षा सस्ते पड़ते हैं।