नीम के विविध नाम :
निम्ब, निम्बन, अरिष्ट,कीटक, पारिभद्रक, पीतसार, मालक, रविप्रिय, राजभद्रक, शीर्षपर्णी, सर्वतोभद्र, सुभद्र।
नीम के सामान्य परिचय :
नीम -इस धरती का सबसे अधिक उपयोगी, लाभदायक और महत्वपूर्ण वृक्ष है। मानव -शरीर में होने वाले प्रत्येक रोग का उपचार नीम के द्वारा किया जा सकता है। नीम की इतनी उपयोगिता के कारण ही तो किसी कवि ने लिखा है कि-
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सुना है अपने गाँव में, रहा न अब वो नीम।
जिसके आगे मन्द थे, सरे वैध -हकीम।।
कहने का तात्पर्य यह है कि -इस पूरी धरती पर खिन भी नीम से अधिक श्रेष्ठ वनस्पति कोई नहीं है।
नीम के उत्पत्ति एवं प्राप्ति -स्थान :
यह प्रायः पुरे भारत देश में पाया जाता है। इसकी उपयोगिता के कारण इसको -बड़े -बड़े घरों (कोठियों ), उद्यानों, मन्दिरों, सड़कों के किनारों आदि पर लगाया जाता है।
नीम के स्वरूप :
इसके पेड़ लगभग 8 फुट से लेकर 15-20 फुट की ऊँचाई तक जाते हैं। इसके पत्ते नुकीले और छोटे होते हैं। बसन्त में (मार्च के महीने के आस -पास )इस पर नई पत्तियाँ आती हैं जो कि प्रारम्भ में हल्के लाल रंग की होती हैं लेकिन धीरे -धीरे उनका रंग हरा हो जाता है। फिर इस पर सफेद -पीले रंग के बहुत छोटे -छोटे फूल आते हैं और इन फूलों से ही फलों का निर्माण होता है जिन्हें ‘निबौरी’ खा जाता है। यह निबौरी प्रारम्भ में हरे रंग की होती हैं और फिर वर्षा प्रारम्भ होने पर धीरे -धीरे पककर पिले रंग की हो जाती हैं।
गुण -धर्म :
नीम -शीतल, अत्यन्त पवित्र, विषनाशक, कृमिनाशक और सभी प्रकार के रोगों को दूर करने वाला होता। यह वायुमण्डल को शुद्ध करता है। यों तो नीम की पत्तियाँ और निबौरी -कड़वी होती हैं लेकिन फिर भी यह अत्यन्त उपयोगी होती हैं। मानव -शरीर में होने वाले प्रायः सभी रोगों का उपचार नीम से हो सकता है। नीम का प्रयोग करने से -नेत्र रोग, दाँतों के रोग, रक्त -विकार, कृमि -रोग,कोढ़, विविध प्रकार के विष ,बुखार, प्रमेह, गुप्त -रोग आदि रोग स्थायी रूप से समाप्त हो जाते हैं।
इसलिये प्रत्येक मनुष्य को इसके अधिक से अधिक पेड़ लगाने का प्रयास करना चाहिये क्योंकि इसके द्वारा मानव -जाति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
प्रकार :
यों तो ‘नीम’ केवल एक ही प्रकार का होता। लेकिन कहीं -कहीं पर एक अन्य प्रकार के नीम -‘मीठे नीम‘ -का उल्लेख भी मिलता है लेकिन यह ‘मीठा नीम’ उतना उपयोगी नहीं होता है और इसका प्रयोग केवल कुछ विशेष प्रकार के भोजन बनाने में ही किया जाता है। अतः जँहा पर ‘नीम’ शब्द का प्रयोग किया गया हो तो उसका तात्पर्य ‘ कड़वे नीम’ से ही समझना चाहिये।
बिच्छू का विष उतारने के लिये -जबकि किसी व्यक्ति को बिच्छू ने काट लिया हो और विष नहीं उतर पा रहा हो तो कोई अन्य व्यक्ति नीम की 10 -12 पत्तियाँ अपने मुख में डालकर चबाये और फिर अपने मुख से पीड़ित व्यक्ति (जिसे बिच्छू ने कटा हो ) के कण में फूँक मार दे तो बिच्छू का विष उतर जाता है
प्रत्येक प्रकार का विष दूर करने के लिये -जबकि कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार के विष से पीड़ित हुआ हो और उसका उपचार भी कराया जा रहा हो लेकिन उसको कोई लाभ नहीं हो रहा हो तो ऐसी दशा में यह प्रयोग करें –नीम की ढेर सारी पत्तियाँ लाकर बिछा दें और उसके ऊपर पीड़ित व्यक्ति को लिटा दें। लिटाने से पहले व्यक्ति के सरे वस्र उतार देने चाहिये, केवल गुप्तांगों को ही ढका रहने देना चाहिये। फिर उस व्यक्ति के ऊपर भी नीम की पत्तियाँ बिछा दें, केवल साँस लेने के लिये नाक -मुख को खुला हुआ छोड़ दें। इस प्रकार से पीड़ित व्यक्ति को आवश्यकतानुसार समय तक लिटाये रखने से विष का प्रभाव कम हो जाता है। लेकिन यदि इस प्रयोग से पहले ही पीड़ित व्यक्ति के आन्तरिक अंग पूरी तरह से क्षत -विक्षत हो चुके हों तो इस प्रयोग से कोई लाभ नहीं होगा।
नीम का औषधीय प्रयोग :
पायोरिया, दाँतों में कीड़ा लगना -पीड़ित व्यक्ति को प्रतिदिन सुबह -शाम नीम की दातुन करनी चाहिये।
पेट में कीड़े होना, पुरानी कब्ज -रोगी को प्रतिदिन नीम की 10 -12 ताजी पत्तियाँ चबानी चाहिये। यह प्रयोग लम्बे समय तक करना चाहिये, इससे उक्त समस्यायें पूर्ण रूप से समाप्त हो जाती हैं। कुछ वैद्यों का कथन है कि -नीम की निबौलियों को पीसकर रोगी व्यक्ति की नाभि के निचे लेप करें। यह प्रयोग कई दिनों तक करने से भी पेट के कीड़े मर जाते हैं।
चर्म -रोग, कोढ़ -शरीर में किसी भी प्रकार का चर्म -रोग हो और भले ही वह कितना ही पुराना हो -रोगी व्यक्ति को पतिदिन नीम की 15 -20 ताजी पत्तियाँ चबा -चबाकर खानी चाहिये। इसके अतिरिक्त, नीम के पेड़ की पत्तियाँ आवश्यकतानुसार मात्रा में ले आयें और उनको पानी में डालकर उबाल लें फिर पानी को आग से उतारकर ठण्डा होने दें और तब इस पानी से अपने रोगग्रस्त अंग को धोयें। इस प्रक्रिया से चर्म -रोग धीरे -धीरे दूर होने लगते हैं। लेकिन ध्यान रखने की बात यह है कि -रोग जितना पुराना होगा, यह प्रयोग उतने ही अधिक समय तक करना होगा। रोगी को मीठा एवं नमक का प्रयोग कम क्र देना चाहिये।
उपंदश -जबकि किसी पुरुष या महिला के गुप्तांगों के आस -पास के क्षेत्र में फुन्सियाँ, दाने, घाव आदि हो जायें तो पीड़ित व्यक्ति को प्रतिदिन नीम की 15 -20 ताजी पत्तियाँ चबानी चाहिये और उपरोक्त बताई गई विधि से नीम की पत्तियों का पानी तैयार करके उससे अपने गुप्तांगों को धोना चाहिये। यह प्रयोग कई दिनों तक करना चाहिये। लेकिन ध्यान रखने की बात यह है कि -यह प्रयोग सूजाक रोग में नहीं करना चाहिये। उपंदश रोग में -गुप्तांग के ऊपर फुन्सी -घाव होते हैं, जबकि, सूजाक रोग में गुप्तांगों के अन्दर घाव आदि होते हैं दोनों में यह प्रमुख अन्तर होता है।
साँप का विष दूर करने के लिये -जबकि किसी व्यक्ति को साँप ने काटा हो तो तुरन्त ही काटे गये पर किसी तेज धार वाले अस्त्र (जैसे -ब्लेड, चाकू आदि )से जोड़ के चिन्ह के रूप में (+)निशान लगाकर विषैला खून बहा दें। इसके साथ ही, उस काटे गये स्थान के ऊपर और नीचे -रस्सी आदि से खूब कड़ा बाँध दें ताकि वह विषैला रक्त ह्रदय तक न पहुँचने पाये। फिर पीड़ित व्यक्ति को नीम की ताजी पत्तियाँ चबाने के लिये दें। जब तक शरीर में विष रहेगा -वह पत्तियाँ कड़वी लगने लगेंगी। अतः जब तक पत्तियाँ मीठी लगती रहें, उस व्यक्ति को खिलाते रहें। जब तक पत्तियाँ कड़वी लगने लगें तो विष का प्रभाव समाप्त समझें।
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