वैसे तो जैविक खेती में बहुत सी खादों का प्रयोग किया जाता है लेकिन खाद के प्रयोग से भूमि की स्थिति में सुधार हो जाता है तथा भूमि में वायु का संचार अच्छे से होता है और जीवांश पदार्थों का निर्माण होता है। पौधों में वायुमंडल की नाइट्रोजन का स्थिरीकरण बढ़ जाता है और इनके फलस्वरूप उत्पाद में वृद्धि होती है।
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जैविक खाद क्या है ? (What is Organic Fertilizer)
जीवों के मृत शरीर, मल मूत्र, अवशेष, फार्म पर उगाई गयी फसलों और उद्योगों के उत्पादों आदि के विघटन से निर्मित पदार्थ को जैव पदार्थ कहते हैं। अतः जब इन्हीं पदार्थों को खाद में रूपांतरण करके जो उत्पाद बनता है उसे जैविक खाद कहते हैं। इसको जीवांश खाद या कार्बनिक खाद भी कहा जाता है। इससे भूमि की अवस्था में सुधार होता है और मृदा में वायु संचार बढ़ता है। इसके प्रयोग से विभिन्न रसायनों के दुष्प्रभाव से भूमि, पर्यावरण व कृषि उत्पाद को बचाया जा सकता है।
भूमि में उपस्थिति सूक्ष्म जीवाणु वायुमण्डल की नाइट्रोजन को पौधों की जड़ों में स्थिर करने का कार्य करते हैं। दलहनी पौधों की जड़ों पर कुछ विशेष प्रकार की ग्रंथिया पायी जाती हैं। जिनमें ये सूक्ष्म जीवाणु रहते हैं। सूक्ष्म जीवाणुओं की विभिन्न प्रजातियाँ उपलब्ध है, जो वायुमण्डल की नाइट्रोजन को अलग-अलग दर पर स्थिर करने का कार्य करती हैं। वायुमंडल में लगभग 74 % नाइट्रोजन होती है। इसको यह सूक्ष्म जीवाणु पौधों की जड़ों में एकत्रित करते रहते हैं। दलहनी फसलों में उड़द, मूंग, सोयाबीन, लोबिया आदि है। जिनको उगाने से भूमि की उत्पादकता व उर्वरा शक्ति बढ़ती है।
पोषक तत्व आसानी से पौधों को उपलब्ध होने लगते है तथा भूमि के वातावरण में तेजी से सुधार होता है। इस प्रकार जैविक खाद का प्रयोग कार्बनिक खेती के उद्देश्य की पूर्ति करता है। जैविक खाद के क्षय व अपघटन के फलस्वरूप पौधों को पोषक तत्वों की आपूर्ति होती है।
जैविक खाद कितने प्रकार की होती है ?
जैविक खाद के प्रमुख प्रकार
1. गोबर की खाद ( Farm Yard Manure )
2. कम्पोस्ट ( Compost )
3. वर्मी कम्पोस्ट ( Vermi Compost )
4. हरी खाद ( Green Manure )
5. जैविक खाद ( Biotic Manures )
प्रमुख हैं।
जैविक खाद के प्रकार एवं जैविक खाद बनाने की विधियाँ।
1. गोबर की खाद ( Farm Yard Manure in hindi )
गोबर की खाद में 0.5 – 1.5 % नाइट्रोजन, 0.4 – 0.8 % फॉस्फोरस व ( 0.5 – 1.9 % ) पोटाश पाया जाता है। गोबर की खाद पशुओं के मल-मूत्र व बिछावन और व्यर्थ चारे व दाने का मिश्रण होती है। गोबर की खाद का संगठन पशु की आयु और अवस्था, प्रयोग किये जाने वाले चारा व दाना, बिछावन की प्रकृति और उसका भंडार आदि कारकों पर निर्भर करती है। पशुओं की गोबर, मूत्र व बिछावन आदि को गड्डों में एकत्रित किया जाता है। गड्डों में एकत्रित गोबर खुले में होने के कारण लीचिंग ( leaching ) तथा वाष्पशीलता(Volatilization) के कारण पोषक तत्वों की हानि होती रहती है।
2. कम्पोस्ट खाद ( Compost Meaning in hindi )
ग्रामीण क्षेत्रों में तैयार की गयी कम्पोस्ट में 0.4 – 0. 8 % नाइट्रोजन, 0.3 – 0.6 % फॉस्फोरस तथा 0-7-1-0 % पोटाश पायी जाती है। विभिन्न फसलों के अवशेष, सूखे डंठल, गन्ने की सूखी पत्तियों व फसलों के अन्य अवशेषों को गड्डों में सड़ाकर बनायीं गयी खाद कम्पोस्ट खाद कहलाती है। इन अवशिष्ट पदार्थों को गड्डों में भर दिया जाता है। गड्डों को भरने के पश्चात् उसको मिटटी से ढक देते हैं। गच्चों में भरे अवशिष्ट पदार्थों के बीच-बीच में भी मिटटी की परतें डाली जाती है। ऐसा करने से गड्डों में सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा अपघटन की क्रिया तीव्रता से होती रहती है। कम्पोस्ट खाद बनाने में प्रयोग होने वाले पदार्थों को ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों से प्राप्त व्यर्थ के कूड़े-करकट को एकत्रित किया जाता है और गड्डों में भरते रहते हैं।
कम्पोस्ट खाद बनाने के लिए विभिन्न विधियाँ प्रयोग में लायी जाती है।
कोयंबटूर विधि
इंदौर विधि
बंगलौर विधि
3. वर्मी कम्पोस्ट क्या है एवं वर्मी कम्पोस्ट बनाने की विधि ( Vermi Compost in hindi )
वर्मी कम्पोस्ट में कुल नाइट्रोजन 0.5 – 1.5 % उपलब्ध फॉस्फोरस 0.1 – 0.3 % व उपलब्ध सोडियम 0.6 – 0.3 % पाया जाता है। वर्मी कम्पोस्ट एक ऐसी जैविक खाद है, जो केचुओं के द्वारा बनाई जाती है। वर्मी कम्पोस्ट के मिश्रण में कास्टिग, केचुएँ, सूक्ष्म-जीवाणु, मल आदि पाए जाते हैं। केचुओं के सहायता से बनाई गयी इस जैविक खाद को वर्मी कम्पोस्ट कहते हैं।
इस प्रकार बनाई गयी खाद की प्रक्रिया वर्मी कम्पोस्टीकरण कहलाती है। इस क्रिया में केचुएँ मिट्टी को खाकर उसको मल के रूप में पाचन के उपरान्त बाहर निकालते रहते हैं। ऐसा अनुमान है कि 2000 केचुएँ एक वर्गमीटर जगह की मिट्टी को खाकर एक वर्ष में 100 मीट्रिक टन ह्यूमस का निर्माण करते हैं।
4. हरी खाद ( Green Manure in hindi )
जैविक खेती में हरी खाद ( Green Manure in hindi ) का एक महत्वपूर्ण स्थान है। हरी खाद वाली फसलें भूमि में उगाकर कोमल अवस्था में बुआई के 30-35 दिन बाद गिराकर दवा दी जाती है। सड़ने और गलने के पश्चात इन फसलों से भूमि के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में सुधार होता है। भूमि में वायु संचार व पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है।
भूमि पर हरी खाद उगाने से भूमि कटाव पर भी नियंत्रण होता है। सनई व देचां प्रमुख हरी खाद वाली फसलें हैं। इनके अतिरिक्त ग्वार, मूंग, लोबिया आदि फसलें भी हरी खाद के रूप में प्रयोग की जाती हैं। हरी खाद उगाने से भूमि में नाइट्रोजन की भी वृद्धि होती है। नाइट्रोजन की मात्रा प्रयोग की गई फसल एवं पलटने की अवस्था पर निर्भर करती है। ऐसा अनुमान है कि हरी खाद की विभिन्न फसलों से 75 – 150 किलो नाइट्रोजन प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि को प्राप्त होती है।
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कृषि में जैविक खाद का महत्व ( Importance of Organic Manure in hindi )
भारत एक कृषि प्रधान देश है।
उन्नत कृषि करने के लिए आवश्यक है कि मृदा को पोषक तत्त्व पर्याप्त मात्रा में प्रदान किये जायें। फार्मयार्ड FYM तथा कम्पोस्ट आदि अच्छी जैविक खाद ( organic manure in hindi ) हैं। भारतीय किसान जैविक खादों का प्रयोग अधिक करने लगे हैं। क्योंकि मृदा में इनका प्रभाव कई वर्षों तक रहता है और ये कृत्रिम खादों की अपेक्षा सस्ते पड़ते हैं।