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आम की फसल पर लगने वाले कीटों व रोगों की रोकथाम करें।

Mango Plant

फलों का राजा आम हमारे देश का सबसे महत्वपूर्ण फल है। आम की खेती उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, उड़ीसा, महाराष्ट्र और गुजरात में व्यापक स्तर पर की जाती है। जनवरी महीने से आम के पेड़ों में बौर आना शुरू हो जाता है। इसलिए किसानों को अच्छा उत्पादन पाने के लिए अभी से इसकी देखभाल करनी होगी क्योंकि जरा सी चूक से रोग और कीट पूरी फसल को बर्बाद कर सकते हैं। “फसल के शुरू होने से पहले ही किसानों को बाग में सिंचाई कर देनी चाहिए, जिससे नमी बनी रहे। किसानों को इस समय पेड़ों पर कीटनाशकों का छिड़काव कर देना चाहिए। इसके बाद दूसरा छिड़काव जब फल चने के बराबर हो जाएँ तब करना चाहिए। जिस समय पेड़ों पर बौर लगा हो उस समय किसी भी कीटनाशक का छिड़काव नहीं करना चाहिए क्योंकि इसका परागण हवा या मक्खियों द्वारा होता है। अगर कीटनाशक का छिड़काव कर दिया तो मक्खियाँ मर जाएँगी और बौर पर नमी होने के कारण परागण नहीं हो पायेगा, जिससे फल बहुत कम आ सकते है।”

आम की फसल में इस समय हॉपर कीट लगने का खतरा रहता है। यह कीट पत्तियों और बौर से रस चूसता रहता है, इसका असर अगर ज्यादा हो गया तो पेंड में फल नहीं आता है। इसलिए समय पर कीटनाशकों का प्रयोग करें।

आम पर लगने वाले कीट 

गुठली का घुन (स्टोन वीविल) :- यह कीट आम की गुठली में छेद करके घुस जाता है और उसके अंदर ही अपना भोजन बनाता रहता है। कुछ दिनों बाद यह गूदे में पहुँच जाता है और उसे हानि पहुँचाता है। इसकी वजह से कुछ देशों ने इस कीट से ग्रसित बागों से आम का आयात पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया था। 

रोकथाम :- इस कीड़ें को नियंत्रित करना थोड़ा कठिन होता है इसलिए जिस भी पेंड से फल नीचे गिरे उस पेंड की सूखी पत्तियों और शाखाओं को नष्ट कर देना चाहिए। इससे कुछ हद तक कीड़े की रोकथाम हो जाती है। 

जाला कीट (टेन्ट केटरपिलर) :- प्रारंभिक अवस्था में यह कीट पत्तियों की ऊपरी सतह को तेजी से खाता है। उसके बाद पत्तियों को जाल या टेन्ट बनाकर उसके अन्दर छिप जाता है और पत्तियों को खाना जारी रखता है। 

रोकथाम :- पहला उपाय तो यह है कि एजाडिरेक्टिन 3000 पीपीएम ताकत का 2 मिली लीटर को पानी में घोलकर छिड़काव करें। दूसरा संभव उपाय यह है कि जुलाई के महीने में कुइनोलफास 0.05 % या मोनोक्रोटोफास 0.05 % का 2 – 3 बार छिड़काव करें। 

दीमक :- दीमक सफेद, चमकीले और मिट्टी के अंदर रहने वाले कीट हैं। यह जड़ को खाता है। उसके बाद सुरंग बनाकर ऊपर की ओर बढ़ता जाता है। यह तने के ऊपर कीचड़ का जमाव करके अपने आप को सुरक्षित करता है। 

रोकथाम :- तने के ऊपर से कीचड़ के जमाव को हटाना चाहिए। तने के ऊपर 1.5 % मेलाथियान का छिड़काव करें। दीमक से छुटकारा मिलने के बाद पेंड के तने को मोनोक्रोटोफास (1 मिली / लीटर ) से मिटटी पर छिड़काव करें। 

भुनगा कीट :- यह कीट आम की फसल को सबसे अधिक नुकसान पहुँचाते हैं। इस कीट के लार्वा एवं वयस्क कीट कोमल पत्तियों और पुष्पक्रमों का रस चूसकर हानि पहुँचाते हैं। इसकी मादा 100 – 200 तक अंडे नयी पत्तियों एवं प्ररोह में देती हैं और उनका जीवनचक्र 12 – 22 दिनों में पूरा हो जाता है। इसका प्रकोप जनवरी – फरवरी से शुरू हो जाता है। 

रोकथाम :- इस कीट से बचने के लिए बिवेरिया बेसिआना फफूँद के 0.5% घोल का छिड़काव करें। नीम तेल 3000 पीपीएम प्रति 2 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर, घोल का छिड़काव करके भी निजात पाया जा सकता है। इसके आलावा कार्बोरील 0.2 % या कुइनोलफास 0.063 % का घोल बनाकर छिड़काव करने से भी राहत मिल जाएगी।

आम पर लगने वाले रोग व उनसे बचाव के उपाय 

सफेद चूर्णी रोग (पॉवडरी मिल्ड्यू) :- बौर आने की अवस्था में यदि मौसम बदली वाला हो या बरसात हो रही हो तो यह बीमारी लग जाती है। इस बीमारी के प्रभाव से रोगग्रस्त भाग सफेद दिखाई पड़ने लगता है। इसकी वजह से मंजरियां और फूल सूखकर गिर जाते हैं। इस रोग के लक्षण दिखाई देते ही आम के पेड़ों पर 5 % वाले गंधक के घोल का छिड़काव करें। इसके आलावा 500 लीटर पानी में 250 ग्राम कैराथेन घोलकर छिड़काव करने से भी बीमारी पर काबू पाया जा सकता है। जिन क्षेत्रों में बौर आने के समय मौसम असामान्य रहा हो वहाँ हर हालत में सुरक्षात्मक उपाय के आधार पर 0.2 % वाले गंधक के घोल का छिड़काव करें एवं आवश्यकतानुसार दोहराएं। 

कालवूणा ( एन्थ्रेक्नोस ) :- यह बीमारी अधिक नमी वाले क्षेत्रों में अधिक पायी जाती है। इसका आक्रमण पौधों के पत्तों, शाखाओं और फूलों जैसे मुलायम भागों पर अधिक होता है। प्रभावित हिस्सों में गहरे भूरे रंग के धब्बे आ जाते हैं। 0.2 % जिनैब का छिड़काव करें। जिन क्षेत्रों में इस रोग की सम्भावना अधिक हो वहाँ सुरक्षा के तौर पर पहले ही घोल का छिड़काव करें। 

ब्लैक टिप ( कोएलिया रोग ) :- यह रोग ईंट के भट्टों के आसपास के क्षेत्रों में उससे निकलने वाली गैस सल्फर डाई ऑक्साइड के कारण होता है। इस बीमारी में सबसे पहले फल का आगे का भाग काला पड़ने लगता है इसके बाद ऊपरी हिस्सा पीला पड़ता है। इसके बाद गहरा भूरा और अंत में काला हो जाता है। यह रोग दशहरी किस्म में ज्यादा होता है। इस रोग से फसल बचाने का सबसे अच्छा उपाय यह है कि ईंट के भट्टों की चिमनी आम के पूरे मौसम के दौरान लगभग 50 फुट ऊँची रखी जाएँ। इस रोग के लक्षण दिखाई देते ही बोरेक्स 10  ग्राम/लीटर पानी की दर से बने घोल का छिड़काव करें। फलों के बढ़वार की विभिन्न अवस्थाओं के दौरान आम के पेड़ों पर 0.6 % बोरेक्स के दो छिड़काव फूल आने से पहले और जब फल मटर के दाने के बराबर हो जाएँ तो 15 दिन के अंतराल पर तीन छिड़काव करने चाहिए। 

गुच्छा रोग :- इस बीमारी का मुख्य लक्षण यह है कि इसमें पूरा बौर नपुंसक फलों का एक ठोस गुच्छा बन जाता है। बीमारी का नियंत्रण प्रभावित बौर और शाखाओं को तोड़कर किया जा सकता है। अक्टूबर माह में 200/10 लक्षांश वाले नेप्थलीन एसिटिक एसिड का छिड़काव करना और कलियाँ आने की अवस्था में जनवरी के महीने में पेंड बौर तोड़ देना भी लाभदायक रहता है क्योंकि इससे न केवल आम की उपज बढ़ जाती है बल्कि इस बीमारी के आगे फैलने की संभावना भी कम हो जाती है। 

पत्तों का जलना :- उत्तर भारत में आम के कुछ बागों में पोटेशियम की कमी से एवं क्लोराइड की अधिकता से पत्तों के जलने की गंभीर समस्या पैदा हो जाती हैं। इस रोग से ग्रसित वृक्ष के पुराने पत्ते दूर से ही जले हुए जैसे दिखाई देते हैं। इस समस्या से फसल को बचाने हेतु पौधों पर 5% पोटेशियम सल्फेट के छिड़काव की सिफारिश की जाती है। यह छिड़काव उसी समय करें जब पौधों पर नयी पत्तियाँ आ रही हों। ऐसे बागों में पोटेशियम क्लोराइड उर्वरक प्रयोग ंन करने की सलाह भी दी जाती है। 0.1 % मेलाथिऑन का छिड़काव भी प्रभावी होता है। 

डाई बैक :- इस रोग में आम की टहनी ऊपर से नीचे की ओर सूखने लगती है और धीरे – धीरे पूरा पेंड सूख जाता है। यह फफूंद जनित रोग होता है, जिससे तने की जलवाहिनी में भूरापन आ जाता है और वाहिनी सूख जाती है और जल ऊपर नहीं चढ़ पाता है इसकी रोकथाम के लिए रोग ग्रसित टहनियों के सूखे भाग को 15 सेमी नीचे से काट कर जला दें। कटे स्थान पर बोर्डो पेस्ट लगाएं तथा अक्टूबर माह में कॉपर ऑक्सी क्लोराइड का 0.3 % घोल का छिड़काव करें।   

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